प्रधानमंत्री का जी-7 का विजिट बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि भारत इस साल जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है. प्रधानमंत्री इस नाते भी आमंत्रित थे और उनकी कोशिश थी कि जी7 और जी20 के एजेंडे को कॉमन ग्राउंड पर ला सकें. जी20 चूंकि जी7 के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, तो साझा लक्ष्य और काम अगर तय हुए, तो बहुत बेहतर रहेगा. इससे भारत के एजेंडे को भी मदद मिलेगी. अब चूंकि वहां विभिन्न देशों के शीर्ष नेतृत्व मौजूद थे, तो द्विपक्षीय वार्ता भी पीएम ने कीं. ये एक ऐसा मौका है, जहां पर भारत को दुनिया एक नए नजरिए से देख रही है. भारत में राजनीतिक स्थिरता है, मजबूत नेतृत्व है और आर्थिक प्रगति के पथ पर हम हैं, तो इन सबका प्रभाव पड़ता है. ये हम सभी ने देखा. भारत के साथ एंगेज करने को सारे लीडर्स इच्छुक थे.


जो बाइडेन ने जिस तरह पीएम मोदी की बड़ाई की और बताया कि मोदी कितने पॉपुलर हैं और वह उनकी विजिट का इंतजार कर रहे हैं, वह इस बात को रेखांकित करता है कि जी7 के देशों में ज्यादातर जो नेतृत्व करनेवाले हैं, उस तरह की लोकप्रियता अपने देशों में नहीं पाते, जितनी मोदी को भारत में है. भारत के लोकतंत्र के प्रति भी दुनिया का रुख है औऱ वे देख रहे हैं कि भारत के हितों को जिस तरह मोदी दुनिया के सामने रख रहे हैं, पेश कर रहे हैं, उसको देखते हुए दुनिया में भारत के प्रति काफी उत्सुकता है. प्रधानमंत्री जिस तरह भारत में सुधारों को आगे बढ़ा रहे हैं, उसको लेकर एक उत्सुकता भी है. उन्होंने जिस तरह जी7 में अपनी बात रखी और ग्लोबल साउथ के मसले उठाए, उसका प्रभाव पड़ा और आनेवाले समय में उसका लाभ भारत को मिलेगा. 



भारत ग्लोबल साउथ का अहम साझीदार 


प्रधानमंत्री का जिस तरह पापुआ न्यू गिनी में स्वागत हुआ. वहां और फिजी में जिस तरह उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला. वह अभूतपूर्व है. यह दिखाता है कि  पैसिफिक आइलैंड नेशन जो हैं, वे भारत की बढ़ती भूमिका को देख रहे हैं. वे अमेरिका और चीन के विवाद या प्रतिस्पर्द्धा का हिस्सा नहीं बनना चाहते, उससे अलग रहना चाहते हैं. भारत उनके लिए एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ है, अहम साझीदार है. पीएम ने भी  ऐसी ही भूमिका के तौर पर भारत को पेश किया और ग्लोबल साउथ की बात की है. 


सामरिक लिहाज से भारत की स्थिति हिंद प्रशांत क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण है. वह बेहद क्रिटिकल भूमिका में है. दुनिया के देश जब देख रहे हैं कि वैश्विक संतुलन और समीकरण बदल रहे हैं, तो वह भारत की भूमिका को भी देख रहे हैं. चीन जैसे देश दुनिया में अस्थिरता फैलाते हैं और उनका विस्तारवादी नजरिया किसी को नहीं भाता है. रूस जैसे देश को लेकर यूरोप चिंतित है. भारत एक उभरती हुई ताकत है, लेकिन वह दुनिया में स्थिरता लाने का काम कर रहा है. सारे देश चाहते हैं कि भारत को और सुदृढ़ बनाया जाए, स्थिर बनाया जाए, क्योंकि वह भरोसेमंद है. पीएम मोदी ने भी केवल भारत नहीं, बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के बारे में बात की. जिनकी बात वैश्विक प्लेटफॉर्म पर नहीं सुनी जाती, उनकी बात कही. उन्होंने कहा कि छोटे देशों को नजरअंदाज न किया जाए, उनकी बात भी सुनी जाए. वह वैश्विक नेता की भूमिका में थे और भारत की छाप छोड़ने में कामयाब रहे. 


प्रधानमंत्री ने जब  हिंद-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (FIPIC) की तीसरी मीटिंग में हिस्सा लिया, तो वह भारत की भूमिका को ही बढ़ा रहे थे. इसमें 14 छोटे द्वीपीय देश हैं और वे सभी भारत की ओर उम्मीद से देख रहे हैं. अब तक भारत की विदेश नीति में माना जाता था कि जो साउथ पैसिफिक है, वह इतना दूर है कि भारत भला वहां क्या कर पाएगा, हालांकि फिजी जैसे देशों में 50 फीसदी भारतीय रहते हैं, लेकिन किन्हीं वजहों से वे अब तक अनदेखी किए गए थे. अब भारत की विदेश नीति भी बदली है और भारत हरेक जगह अपनी छाप छोड़ रहा है. चाहे वो ईस्टर्न यूरोप हो, नॉर्डिक देश हों या फिर साउथ पैसिफिक के देश हों, भारत सभी से एंगेजमेंट बढ़ा रहा है. पहले जहां साउथ पैसिफिक को महत्व नहीं दिया जाता था, अब भारत को लगता है कि हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां कुछ भी कभी भी हो तो उसका प्रभाव आप पर भी पड़ता है. जिन देशों की हम बात कर रहे हैं, वे भारत की ओर इसलिए देख रहे हैं ताकि चीन और अमेरिका के संघर्ष में किसी एक का पक्ष लेने के बजाय वे एक ऐसे देश के साथ जा सकें, जो उनके असली और जमीनी मुद्दे बता सके.


क्लाइमेट चेंज हो, सस्टेनेबल डेवलपमेंट हो या इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की बात हो, ये सभी मुद्दे असली हैं और भारत ने यह दिखाय है कि वह एक रिलायबल पार्टनर यानी भरोसेमंद सहयोगी है. भारत इन मुद्दों की बात भी करता है. इसलिए, ये देश उसकी तरफ बड़ी उम्मीद से देख भी रहे हैं. 2014 से जब से भारत ने हिंद-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (FIPIC) बनाया है, तब से यह तीसरा शिखर सम्मेलन है. इससे वह यह संकेत दे रहा है कि भारत हल्के में इन देशों को नहीं लेता न ही हल्के तौर पर इन देशों के साथ उसका एंगेजमेंट है, बल्कि यह एक सतत नीति है, लगातार वार्ता है और भारत की सोची-समझी हुई रणनीति है. 


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)