भारत इस वक्त विदेश नीति के मामले में कुछ जटिल समीकरणों में उलझा है. रूस और यूक्रेन के युद्ध को आज डेढ़ साल से अधिक हो गए, लेकिन भारत ने खुल कर किसी का भी साथ नहीं लिया, अपनी बेहद नाजुक स्थिति को डिप्लोमेसी से संभाला. इसके जरिए अमेरिका और रूस दोनों के ही साथ संबंधों को ठीक रखा. इसी तरह सऊदी अरब के साथ भी भारत के संबंध ठीक हो रहे हैं. भारत अब इन देशों के बीच संतुलन को कायम कर अपनी डिप्लोमेटिक छुरी को धार चढ़ा रहा है. 


सऊदी अरब को बनना है इस्लामी जगत का अगुआ


सऊदी अरब और इजरायल के समीकरण को समझने के लिए पहले थोड़ा सा इतिहास में झांकना होगा. उसके बाद ही हम इन दो देशों के संबंध और भारत की विदेश नीति का संतुलन समझ पाएंगे. सऊदी अरब की जो चुनौतियां हैं, वहां की जो परिस्थितियां हैं, उसको हमें समझना होगा.


जरा गौर से याद कीजिए कि जो 'फर्स्ट वर्ल्ड' या विकसित देश हैं यूरोप-अमेरिका के, उनकी पहले या दूसरे महायुद्ध के बाद क्या स्थिति हुई थी? सऊदी अरब की जिस तरह से नीतियां बदल रही हैं, पड़ोसियों के साथ, जो उदारवादी चेहरा वह पेश करने की कोशिश कर रहा है, उसके कारण आर्थिक हैं. हम जानते हैं कि हरेक देश की अपनी स्थिति होती है, अपनी संस्कृति होती है और अपनी विशेषता होती है. सऊदी अरब की जो अर्थव्यवस्था है, वह पूरी तरह पेट्रोलियम और गैस इत्यादि पर निर्भर है. इस खजाने को निकालने की जो भी तकनीक है, वह पूरी की पूरी पश्चिम की है. तो, दोनों तरफ से जब तक समन्वय बना रहता है, तब तक बना रहता है.



सऊदी अरब के पास उसकी अपनी कोई आर्मी नहीं है. उसका पूरा ध्यान अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की है. दूसरे, जो उसकी एक छवि है, इमेज है- इस्लामिक दुनिया के अगुआ होने की, वह भी उसे बनाकर रखनी है. वहीं इजरायल-फलस्तीन का भी मसला है. तो, इन सभी बातों और मुद्दों को सोचकर यही लगता है कि सऊदी अरब को यह पता है कि उसने अगर खुद को आधुनिक नहीं बनाया, तो आने वाले समय में वह अलग-थलग पड़ जाएगा. इसके अलावा, मज़हब के नाम पर जिस तरह आतंक को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह पूरी दुनिया में नासूर बन गया है. अमेरिका इससे पीड़ित है, फ्रांस इससे पीड़ित है, भारत सबसे अधिक पीड़ित है...तो सऊदी अरब को लगता है कि उदारवादी चेहरा दिखाना ही ठीक रहेगा.



कुछ ताकतें हमेशा चाहेंगी अशांति


चाणक्य ने बहुत पहले ही अर्थनीति में बता दिया था कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. अभी अमेरिका में ट्रंप के मुकाबले बाइडेन के आने के बाद स्थितियां बदली हैं. ईरान की भूमिका इसलिए मुश्किल थी, क्योंकि अमेरिका में पहले रिपब्लिकन थे. एक कारण आर्म्ड इक्विपमेंट की कंपनियां भी हैं. उनके हिसाब से अगर सेंट्रल एशिया और मिडल ईस्ट में शांति हो जाएगी, तो फिर दिक्कतें ही फैलेंगी.


मिस्र की धरती से हमास की जो भूमिका है, उसे भी हम सब जानते हैं. इजरायल का संघर्ष उसके अस्तित्व का है, वहीं कुछ ताकतें हैं जो उधर लगातार कुछ न कुछ आग लगाए रखना चाहती हैं. जैसे, दक्षिण पूर्व एशिया में आप पाएंगे कि पाकिस्तान और चीन को लगातार भारत के साथ इंगेज किया जा रहा है, ताकि यहां संघर्ष बना रहे, फिर हथियारों की बिक्री हो. मोदी सरकार के आने के बाद भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा है. अभी मेक इन इंडिया को लेकर भी काम चल रहा है. तो, दुनिया की जो दिशा है, वह फिलहाल तो भारत की तरफ केंद्रित होगी ही.


भारत साध रहा है 'फाइन बैलेंस'


भारत लगातार एक फाइन बैलेंस कायम रख रहा है. चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध में हो या अरब-इजरायल मसला हो, हमारा देश किसी एक के पक्ष में नहीं जाता. भारत के संबंध सऊदी अरब के साथ पुराने समय से है. इजरायल के साथ हमारे संबंध हैं, लेकिन उसके साथ खुलकर भारत नहीं आता है. इसका कारण है. अगर इजरायल को खुलेआम समर्थन दिया गया तो हमारा पीओके और अक्साई चिन वाला मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर पड़ेगा.


2040 तक हम जीवाश्म-ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. सऊदी अरब के साथ हमारे आर्थिक संबंध भी हैं. सस्ते दर पर ऊर्जा मिलने से लेकर सऊदी अरब में जो हमारा डायस्पोरा है, जो प्रवासी भारतीय हैं, वह भी हमारे संबंधों को तय करने में बड़ी भूमिका तय करता है. ये सारी चीजें कहीं न कहीं भारत को एक क्लियर स्टैंड लेने से रोकती हैं. पीओके और 28 सीट का जो मुद्दा है, उसकी वजह से भारत दोनों देशों के माध्यम से डिप्लोमेसी के जरिए ही सावधानी और संतुलन बरतता है.


आज जो दुनिया है, वहां Might is right रहा है. भारत ने हमेशा यह दिखाया है कि वह आक्रामक नहीं है, भरोसेमंद है. हाल ही में कोविड के दौरान दुनिया ने देखा और भारत का लोहा माना कि भारत ने किस तरह पूरी दुनिया की मदद की. चीन का विस्तारवादी रवैया दुनिया को नहीं सुहाता और उसे काउंटर करने के लिए भारत की तरफ ही चाहे वह अमेरिका हो या रूस हो या कोई भी ताकतवर देश हो, देख रहे हैं. वैसे भी, आप देखें तो ब्रिटिशर्स जहां कहीं भी सत्ता छोड़ कर भागे हैं, वहां कुछ न कुछ विवाद पैदा करके चले गए. जैसे 1947 में भारत को पाकिस्तान का नासूर देकर गए, फिर 1948 में इजरायल भी उन्होंने ही बनाया. जहां से वे गए हैं, विवादित बना कर गए हैं. भारत इन सभी से दूर, बहुत ही संतुलित तरीके से पूरी दुनिया में अपनी पैठ बना रहा है, बिना किसी का पक्ष लिए वह दुनिया में अपनी धमक दिखा रहा है और बिना किसी को धमकी दिए वह सबका प्रिय बन रहा है. जाहिर तौर पर भारत अरब को भी साध चुका है और इजरायल को भी. भारत बिना दुश्मन बढ़ाए अपने दोस्तों की संख्या बढ़ा रहा है. 



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