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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

सऊदी अरब से इतनी मोहब्बत क्या सचमुच धो डालेगी नफ़रत का दाग ?

India-Saudi Arabia Relation: हम अपनी जमीन पर भले ही एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चाहे जितना नफ़रत का माहौल पैदा करते रहें, लेकिन किसी भी देश की सरकार अगर इन्हीं उसूलों पर चलने लगे तो उस मुल्क को बर्बाद होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. इसीलिये कोई भी सरकार उन्मादी भीड़ की भावनाओं को देखकर नहीं, बल्कि देश की बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के आधार पर ही विदेशों के साथ अपने रिश्ते तय करती है और उन्हें आगे बढ़ाती है, जिसे हम फॉरेन डिप्लोमेसी (Foreign Diplomacy) या विदेश कूटनीति कहते हैं. इस मामले में भारत फिलहाल बहुत आगे निकल गया है. 

शायद आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले बीजेपी की तत्कालीन प्रवक्ता के दिये एक विवादास्पद बयान से तमाम मुस्लिम राष्ट्र आगबबूला हो गए थे, लेकिन बड़ी बात ये है कि अब उस तल्ख़ी को दूर करते हुए सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का जिस तहज़ीब के साथ स्वागत-सम्मान किया है, वह दो देशों के बीच गहराते रिश्तों की एक अनोखी मिसाल पेश करता है. इसे हम लोग शायद हल्के में लेने की गलती कर सकते हैं लेकिन सऊदी अरब भी उन देशों में शुमार था, जिसने पैगम्बर हज़रत मोहम्मद के बारे में दिए उस बयान को बेहद अपमानजनक बताते हुए उसकी तीखी आलोचना भी की थी.

सबसे अहम ये है कि भारत के विदेश मंत्री एस जयंशंकर (S Jaishankar) का ये सऊदी अरब का पहला दौरा है और सऊदी अरब ने उनका जिस गर्मजोशी से इस्तक़बाल किया है, उसने दुनिया के बाकी मुल्कों को ये जता दिया है कि वह भारत के साथ भविष्य में कैसे रिश्ते रखना चाहता है. शायद इसलिये रुस समेत बाकी पश्चिमी मुल्कों की भौंहे भी तन गई है कि भारत कूटनीति का आखिर ये कौन-सा खेल खेल रहा है.

दरअसल, विदेश मंत्री जयशंकर दोनों देशों के बीच रिश्तों को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए शनिवार को तीन दिवसीय यात्रा पर सऊदी अरब पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने रविवार को जेद्दा में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिया गया लिखित संदेश भी सौंपा. उस बैठक के दौरान, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के साथ ही उन्हें और गहरा कैसे बनाया जा सकता है, इसके रास्ते भी तलाशे गए और हाल ही में जो ताजा क्षेत्रीय हालात पैदा हुए हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ भी हो रहा है,उस मसले पर भी दोनों के बीच खुलकर चर्चा हुई है.

अब समझिये कि सऊदी अरब के साथ गहरी दोस्ती रखना हमारे लिए क्यों जरुरी है. पिछले कई महीनों से रुस व यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी हुई है. बीते जून तक रुस हमें अपनी जरुरत का 24 फीसदी कच्चा तेल कुछ सस्ता दे रहा था, लेकिन उससे गुजारा भला कैसे चलता? लिहाजा, इराक से भारत 21 फीसदी जबकि सऊदी अरब से 18 फीसदी कच्चा तेल आयात करता आ रहा है, जिस पर कोई रियायत नहीं है.

अब सवाल है कि हमें सऊदी के युवराज का दरवाजा आखिर क्यों खटखटाना पड़ा? हमारी मजबूरी का एक बड़ा कारण ये है कि तेल उत्पादक देशों का एक समूह है- ओपेक. वही ये तय करता है कि किस देश को कितनी मात्रा में कच्चा तेल निर्यात करने की छूट है. जब कच्चे तेल की क़ीमत अंतराष्ट्रीय बाज़ार में 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी, तब भी और जब वो 90 डॉलर से नीचे आ गई, तब भी निर्यात के मामले में ओपेक की ही मर्जी चलती है. तेल उत्पादक मुल्कों को उसे मानना, उनकी मजबूरी बन जाती है.

बड़ी बात ये है कि रुस ने यूरोप को गैस सप्लाई रोक देने की धमकी दी हुई है और ऐसी हालत में ओपेक न सिर्फ कच्चे तेल के निर्यात की मात्रा में कटौती करने के बारे में सोच रहा है, बल्कि वो इसकी कीमत बढ़ाने से भी पीछे नहीं हटेगा. चूंकि अगले कुछ दिनों में उत्तरी गोलार्द्ध भीषण सर्दी की चपेट में आ जायेगा, लिहाजा पश्चिमी देशों में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने के साथ ही ये भी तय होगा कि किस देश को कितना तेल निर्यात करना है. 

बता दें कि इसी साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव हैं और अगले साल पांच राज्यों में भी चुनाव होने है.ऐसे हालात में अगर भारत को महंगे दामों पर कच्चा तेल खरीदना पड़ा,तो जाहिर है कि पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ जाएंगी,तो उसका सीधा असर इन चुनावो पर भी पड़ेगा, इसलिये विदेश नीति के विश्लेषक मानते हैं कि यही कारण है कि भारत ने अपने विदेश मंत्री को वहां भेजकर अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता देते हुए सऊदी अरब से ज्यादा कच्चा तेल देने की गुहार लगाई है.

वैसे बता दें कि वित्त वर्ष 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान दोनों देशों के बीच करीब 29.28 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जो बेहद मायने रखता है. अगर आंकड़ों के लिहाज़ से गौर करें तो इस अवधि में सऊदी अरब से भारत का आयात तकरीबन 22.65 अरब डॉलर का था, जबकि भारत से सऊदी अरब को निर्यात की गई वस्तुओं की कीमत करीब 6.63 अरब डॉलर थी.

गौरतलब है कि दुनिया के मुसलमानों के लिए सऊदी अरब बेहद अहम मुल्क है क्योंकि वहीं पर इस्लाम के दो पवित्र स्थान मक्का और मदीना है, जहां का दीदार करने के लिए दुनिया के मुस्लिम हज पर इकठ्ठा होते हैं, लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि ये इकलौता ऐसा मुस्लिम मुल्क है, जहां आज 22 लाख से भी ज्यादा भारतीय रहते हैं. वे जमकर मेहनत करते हैं, खूब कमाते हैं और अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा अपने घर भेजते हैं, जो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में इज़ाफ़ा करता है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि सऊदी अरब (Saudi Arabia) में भारत (India) की 745 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं जो वहां कारोबार कर रही हैं. इनमें से कुछ की साझेदारी है, लेकिन अधिकांश ऐसी हैं, जो अपने बूते पर ही व्यापार कर रही हैं, जिनका निवेश 2 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. इसलिये सऊदी अरब से अपने रिश्तों में गहराई लाना सिर्फ तेल के मकसद से ही नहीं बल्कि दोस्ती को और गहरा करने के लिए भी जरूरी है, ताकि मोहब्बत के पानी से नफ़रत के दाग को हमेशा के लिए धो दिया जाये!

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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