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पुतिन-जेलिंस्की को एक साथ साध पीएम मोदी ने वैश्विक शांति की दिशा में भारत की भूमिका को लेकर दिया बड़ा संदेश

भारत में लोकसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है. अगले महीने चुनाव शुरू हो जाएगा. 19 अप्रैल को पहले चरण का वोट डाला जाएगा. चार जून को नतीजे आएंगे. इससे ठीक पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने फोन पर बातचीत की. ये थोड़ा चौंकाऊ है. हाल में ही पुतिन पांचवीं बार रूस के राष्ट्राध्यक्ष बने हैं, उनसे बातचीत कर उनको बधाई दी होगी, यह तो समझ मे आता है लेकिन ज़ेलेंस्की से भी मोदी ने बातचीत की. उन दोनों नेताओं ने भी ऐसे ही प्रतिक्रिया दी, जैसे कि मान चुके हैं की नरेंद्र मोदी ही चुनाव जीत रहे हैं. इसके साथ ही भारत की पूरी दुनिया के कूटनीतिक हलके में चर्चा हो रही है. 

रूस और यूक्रेन को साधता भारत

प्रधानमंत्री मोदी के दो कार्यकाल को पूरे विश्व ने देखा है. जिस तरह से काम हुआ है. भारत विश्व-गुरू बनने की राह पर अग्रसर है. पहले भारत की डिप्लोमैसी या कूटनीति की बात कहीं नहीं होती थी, लेकिन अब हर प्लेटफार्म पर भारत की चर्चा होती है. भारत के राजनैतिक नेतृत्व की शुरुआती चर्चा पहली बार अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2016-17 में की. अमेरिका के राष्ट्रपति जो अपने कार्यकाल में श्वेत पत्र निकालते हैं, वैश्विक सुरक्षा और कूटनीति को लेकर तो पहली बार डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत का नाम कुल 17 बार आया था. उसके बाद सामने आया कि भारत को नेतृत्व लेने की जरूरत है. मोदी के कार्यकाल में भारत का विश्व में ग्राफ काफी तेजी से आगे की ओर बढ़ा है.

इससे पहले कोई कान्फलिक्ट हो तो उसमें भारत की भूमिका बिलकुल ना के बराबर होती थी, क्योंकि 2014 से पहले की सरकारें संघर्ष-समाधान (कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन) में उतना ध्यान नहीं देती थी. भारत अपनी ताकत, समझौतों और कूटनीतिक बातचीत को द्विपक्षीय स्तर पर रखता था. वर्तमान समय में यूक्रेन और रूस में जो युद्ध चल रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए मुश्किल है. पुतिन हालांकि पांचवीं बार जीत कर आए है. जेलेंस्की भी काफी मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. यूएस सीनेट से 60 बिलियन डॉलर की मदद मिलने वाली थी, लेकिन वो नहीं आयी.  रूस अभी काफी मजबूती में देखा जा रहा है. छह महीने पूर्व यूएस और नाटो ने जो यूक्रेन के लिए 'काउंटर आफेन्सिव' करवाया,  वो भी कहीं न कहीं फेल हो गया है.

दो सालों से ऐसी स्थिति चल रही है. इससे पूरे विश्व के देशों की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर देखा जा सकता है. रूस आश्चर्यजनक तौर से अपनी अर्थव्यवस्था को मंदी से निकाल कर बाहर आ गया है, लेकिन कहीं न कही यूक्रेन अब तबाह होने के कगार पर आ गया है. ऐसी स्थिति को देखते हुए भारत ने यह कदम अठाया है. चूंकि, भारत पीएम मोदी के नेतृत्व में अग्रणी देश की भूमिका निभा रहा है. भारत की ये सोच है कि रूस के राष्ट्रपति और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच कोई कुटनीतिक वार्ता शुरू हो सके. सउदी अरब, कतर, अमेरिका और तुर्की-इन देशों की तरह अब भारत भी मध्यस्तता करने को तैयार है. ये पहली बार मोदी ने नहीं किया है. हर पांच से छह महीने में वो इन चीजों को सुझलाने का प्रयास करते हैं.

भारतीयों के लिए पुतिन ने किया था युद्धविराम

पहली बार नरेंद्र मोदी 2018 में रूस गए थे. चुनाव से ठीक पहले भूटान की भी यात्रा करना और युद्ध की जगह बातचीत करना दोनों को साहसिक कदम के तौर पर देखा जा सकता है. देखा जाए तो पीएम नरेंद्र मोदी ही एक मात्र नेता हैं तो पुतिन के सामने बोले थे कि यह समय युद्ध का नहीं बल्कि वार्ता का है. हालांकि. पुतिन वैसे नेता है जो अपनी बात पर अडिग रहते हैं, लेकिन उन्होंने पीएम मोदी की बात का खंडन नहीं किया था..मोदी की बातों को पुतिन पूरी तरह से सुनते हैं. अभी दो साल पहले की बात देखें तो रूस से जब अपने स्पेशल मीलिट्री ऑपरेशन को लांच किया था, तो उस समय भारत के कई छात्र कीव, मारियोपोल और डोनेस्क में थे. भारत में रह रहे छात्रों के परिजनों को काफी चिंता थी, यहां तक की सरकार भी इस बात को लेकर चिंतित थी. उसके लिए सरकार ने एक स्पेशल ऑपरेशन चलाया, उसके बाद रूस से टेलिफोनिक वार्ता कर बताया गया कि भारत के करीब 12 हजार से ज्यादा छात्र मारियोपोल और डोनेस्क में फंसे हुए हैं, उनको निकालने के लिए अगर कुछ समय के लिए युद्ध को रोक दें तो पास के देशों में उनको एक सेफ कॉरिडोर बनाकर उनको निकाल लिया जाएगा.

यह एक बहुत बड़ी कूटनीतिक और राजनीतिक सफलता रही. उसके बाद पुतिन ने पीएम मोदी की बात मानी और भारत के सारे छात्र सुरक्षित वापस आ गए. इस दौरान कैबिनेट के यंग मंत्रियों ने इस काम में अपनी भूमिका खूब निभाई. बड़ी बात है कि रूस एक तरह से महाशक्ति वाली देश है.  देखा जाए तो 1971 में फ्रेंडशिप एंड को-ऑपरेशन ट्रीटी आफ पीस के बाद से या उससे पहले और न्यूक्लियर मसला हो या युद्ध का समय, रूस हमारे साथ रहा है. अमेरिका ने कई मौकों पर यूएनएससी रिजुलेशन को अपोज किया है तो वहीं रूस से भारत को सपोर्ट किया है. भारत और रूस के आपसी संबंध हमेशा से ही अच्छे रहे हैं.

तनी हुई रस्सी पर चलना है भारत को

भारत जब अमेरिका के साथ जब ज्यादा जुड़ने लगा था तब रूस से कुछ रिश्तों में खटास आई थी. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप और मोदी जब करीब आए तो उस समय रूस से रिश्तों में थोड़ी कड़वाहट आई थी. हालांकि अभी सीएए लागू होने के बाद अमेरिका के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने बयान दिया है कि अमेरिका इसक मॉनिटरिंग करेगा कि सीएए से अल्पसंख्यकों को कोई प्रताड़ना और परेशानी तो नहीं हो रही है. ऐसा नहीं है कि रूस आज भारत के करीब हुआ है. ऐतिहासिक नजर से देखें तो इंदिरा गांधी पीएम थी तब भी रूस से भारत के अच्छे संबंध रहे हैं. जब जब भी भारत को राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर जरूरत पड़ी तो रूस ने इसमें भरपूर मदद की है. भारत के लिए अभी विदेश नीति मानो संतुलन बनाने और कसी हुई रस्सी पर चलने की परीक्षा है. अमेरिका से भी भारत के रिश्ते काफी करीब है. दूसरी ओर रूस से भारत की दोस्ती पुरानी है. उधर जेलेंस्की चाह रहे हैं कि पीएम मोदी युद्ध में दखल दें. इसके अलावा कई देश भी बोल चुके हैं कि इस पर भारत को खुल कर बोलना चाहिए.

अभी दो साल पहले बाइडेन ने बयान दिया था कि एनर्जी, फ्यूल आदि अगर रूस से भारत लेता है तो जो प्रतिबंध रूस पर लगाया गया है वहीं प्रतिबंध भारत पर भी लगाया जाएगा. लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर और पीएम मोदी ने इस बात पर अमेरिका को दो टूक जवाब दिया है. उस समय कहा कि दोनों मित्र देश है लेकिन जहां से सस्ता इंधन मिलेगा भारत वहां से लेने के लिए स्वतंत्र होगा, चाहें वो रूस हो, सऊदी अरब हो या खुद अमेरिका क्यों ना हो. देखा जाए तो जेलेंस्की को भी बदनाम किया गया है कि वो जोकर हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. करप्शन जो यूक्रेन में एक मुद्दा था, उस पर काम करते हुए यूक्रेन 144वें स्थान से खुद को 104 नंबर पर लाया. हालांकि, अगर भारत को विश्व गुरू के तौर पर रहना है तो भारत को दोनों देशों के बीच मध्यस्तता की भूमिका अदा करनी होगी. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.] 

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