इजरायल और हमास के बीच जंग चल रही है. भारत का पुराना स्टैंड फिलिस्तान के साथ खड़ा होने का रहा है, भारत ऐसा मानता रहा है कि फिलिस्तीन के साथ अन्याय हुआ. ऐसे में भारत की जो वर्तमान सरकार है, उसने उस स्टैंड के साथ समझौता किया है. सबसे बड़ी बात ये है कि गांधी के देश का प्रतिनिधि अगर यूएन में वोटिंग होती है तो युद्धविराम के पक्ष में वोटिंग न करे. 


दुनिया में कहीं भी लड़ाई हो तो ये मानवता का सिद्धांत है कि हर समझदार और शांति प्रिय आदमी लड़ाई रुकवाने की बात करता है. मगर ये अफसोस है कि गांधी के देश के प्रतिनिधि ने उस वक्त बहिष्कार किया, जब यूएन में सीजफायर की बात हो रही थी. जिस वजह से भारत दुनियाभर में जाना जाता है, उसके साथ मौजूदा सरकार ने समझौता किया.


कभी इजरायल का औपचारिक तौर पर समर्थन कर दिया जाता है, पीएम की तरफ से समर्थन में ट्वीट कर दिया जता है. उसके बाद सरकार कुछ बोल देती है, विदेश मंत्री कुछ और बोल देते हैं. इतने पुराने देश जिसका जनतंत्र दुनियाभर में बड़ा है, उसका स्टैंड अगर हर 2 घंटे पर बदल जाता हो, तो इससे देश की छवि खराब होती है. सरकार करती है लेकिन नाम तो देश का बदनाम होता है या देश का अच्छा नाम होता है, अगर सरकार अच्छा काम करती है.



मोदी सरकार ने पुराना स्टैंड बदला


नरेन्द्र मोदी सरकार ने एक निंदनीय काम यही किया कि उसने अपना स्टैंड एक नहीं रखा. इजरायल के अंदर भी धर्म की बात लोग बताते हैं, उन्होंने भी प्रदर्शन किया, जूलूस निकाला. शायद दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं बचा, जहां प्रदर्शन न हुआ है, 42-45 मुस्लिम देशों में तो प्रदर्शन हुआ ही, इसके साथ ही, चाहे ऑस्ट्रेलिया हो, न्यूजीलैंड हो कोई ऐसा देश नहीं बचा, जहां पर प्रदर्शन नहीं हुआ.



इजरायल के खिलाफ अस्पताल, हाउसिंग सोसाइटी पर हमला करने का, बच्चों की जो लाशें नजर आईं, ये बहुत ही निंदनीय काम इजरायल ने किया. एक तरह से ऐसा लगा कि कहीं न कहीं एक तरह से जो भारत का शासनतंत्र है, भारत के जो प्रधानमंत्री हैं, वो इनके पक्ष में हैं. इसलिए, कहीं न कहीं इस पूरे मामले में भारत की छवि पर असर हुआ है.


इजरायल और हमास की लड़ाई में भारत ने जिस तरह का स्टैंड लिया, वो बिल्कुल भी ठीक नहीं है. लेकिन अब भी समय है कि एक मजबूत स्टैंड के साथ भारत को अपनी बात कहनी चाहिए और युद्धविराम के लिए हर तरह की कोशिश करनी चाहिए.


ये सिर्फ धर्म का मामला नहीं


इजरायल और हमास के बीच ये सारा धर्म का ही मामला भर नहीं है. यहूदी के जो पैगंबर थे, हम भी उन्हें पैगंबर मानते हैं. हम तीनों हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के संतानों में हैं. आप जिनके बारे में कुर्बानी के बारे में सोचते होंगे, तो जिनके नाम से शुरू होता है और उन्हीं के नाम से ये सिलसिला शुरू हुआ. उन्हीं के सब संतान हैं. सबसे पहले मोजेज, जो यहूदी के पैगंबर थे और हमलोग भी उनको मुस्लिम के तौर पर उनको पैगंबर मानते हैं.


इसके 700-800 साल के बाद ईसा-मसीह क्राइस्ट और उसके फिर 700-800 साल के बाद जो इस्लाम के पैगंबर हुए हजरत मोहम्मद सल्ला वाले वसल्लम, जो इस्लाम के पैगंबर हुए. ये सब वहीं से निकला हुआ धर्म है. आपस में हम एक दूसरे के पैगंबर ही कहते हैं, चाहे वो यहूदियों के पैगंबर हों या चाहे ईसाइयों के पैगंबर हों या इस्लाम के पैगंबर हों. 


स्वभाविक रुप से, इन सबको आपस में मेल हो और दुनियाभर में शांति हो, इसके लिए हर देश को पहल करनी चाहिए. लेकिन, भारत जैसा शांति प्रिय देश, जिसकी पहचान महात्मा गांधी की नीतियों की वजह से होती है, हमारे प्रधानमंत्री कहीं जाते हैं तो वे देश के अंदर हों या बाहर गांधी जी की मूर्ति पर माल्यार्पण करते हैं, लेकिन, सिर्फ नमन ही नहीं बल्कि आप प्रैक्टिकली तौर पर क्या कुछ कर रहे हैं, हिंसा को रोकने के लिए आपने और आपकी सरकार ने क्या कुछ पहल किया, इसमें हमें लगता है कि इस सरकार ने भारत की छवि खराब की है.



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