बल्लेबाज-गेंदबाज नहीं डरा पाए तो अब पिच से डराने की कोशिश
10 दिसंबर के बाद से ऑस्ट्रेलियाई खेले में खलबली मची हुई है. कंगारुओं को इस बात की आदत नहीं थी कि अपने ही घर में उन्हें हार का सामना करना पड़े. अपने ही घरेलू दर्शकों के मुंह से ये सुनना पड़े कि ये टीम एलन बॉर्डर, स्टीव वॉ या रिकी पॉन्टिंग वाली टीम नहीं लग रही है.
10 दिसंबर के बाद से ऑस्ट्रेलियाई खेले में खलबली मची हुई है. कंगारुओं को इस बात की आदत नहीं थी कि अपने ही घर में उन्हें हार का सामना करना पड़े. अपने ही घरेलू दर्शकों के मुंह से ये सुनना पड़े कि ये टीम एलन बॉर्डर, स्टीव वॉ या रिकी पॉन्टिंग वाली टीम नहीं लग रही है. लेकिन हुआ यही है. एडिलेड में भारत के हाथों 31 रनों से मिली हार ने उसे ‘बैकफुट’ पर ला दिया है.
ये पहला मौका है जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारतीय टीम को उसी के घर में सीरीज के पहले ही टेस्ट मैच में जीत मिली हो. अब अगला टेस्ट मैच 14 तारीख से है. अगला टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया के उस मैदान में खेला जाना है जहां की परंपरागत पिच पर खेलने से बड़े से बड़े बल्लेबाज को घबराहट होती थी. वो पिच है पर्थ की. पर्थ के तेज विकेट पर रन बनाना बल्लेबाजों के लिए कड़ी चुनौती रहा है.
ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इसी बात का फायदा उठाते हुए टीम इंडिया को डराने की कोशिश शुरू कर दी है. मौजूदा कोच से लेकर पूर्व कप्तान तक हर कोई पर्थ की पिच के बहाने विराट कोहली की टीम को डराने की कोशिश में लग गया है. अब तक पूर्व कप्तान रिकी पॉन्टिंग, मौजूदा कोच जस्टिन लैंगर और मौजूदा कप्तान टिम पेन पर्थ की पिच के तेज और अलग होने की बात कह चुके हैं. इन खिलाड़ियों के एक जैसे बयानों में ‘माइंडगेम’ की बू आ रही है.
वाकई तेज हुई पिच तो कैसे बचेंगे कंगारू
ऑस्ट्रेलियाई टीम के दिग्गज शायद पहले टेस्ट मैच के आंकडे भूल रहे हैं. कंगारुओं को याद रखना चाहिए कि पहले टेस्ट मैच में भारतीय तेज गेंदबाजों ने मिलकर 14 विकेट झटके थे. 6 विकेट स्पिनर आर अश्विन को मिले थे. जबकि ऑस्ट्रेलियाई टीम के तेज गेंदबाजों ने 12 विकेट ही लिए थे. उनकी तरफ से सबसे ज्यादा 8 विकेट नैथन लॉएन ने लिए थे. उसमें भी लॉएन ने 6 विकेट दूसरी पारी में लिए थे.
अब अगर थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि पर्थ की पिच बहुत तेज होगी तो उसपर ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को कहीं लेने के देने ना पड़ जाएं. यूं भी पहले मैच के बाद आलोचना ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों की हो रही है. गेंदबाजों ने तो फिर भी दोनों पारियों में अच्छी गेंदबाजी की थी. असली परेशानी तो ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों को लेकर है जो ना सिर्फ आउट ऑफ फॉर्म हैं बल्कि हार के डर से अति रक्षात्मक खेल दिखा रहे थे. ऐसे में अगर पर्थ की विकेट अपेक्षाकृत तेज हुई भी तो वो भारतीय बल्लेबाजों के मुकाबले कहीं ज्यादा ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के लिए चिंता का सबब बनने वाली है.
भूल गए 2008 में भारत को मिली जीत
जनवरी 2008 की बात है. अनिल कुंबले टीम के कप्तान हुआ करते थे. भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी. ये वही दौरा है जिसमें सिडनी टेस्ट में मंकीगेट एपीसोड हो चुका था. तनाव चरम पर था. पर्थ में खेले जाने तीसरे टेस्ट मैच को लेकर ऐसा ही माहौल बनाया गया था. तेज पिच के हौव्वे से बगैर डरे भारतीय टीम ने पहली पारी में 330 रन बनाए. इसमें राहुल द्रविड़ और तेंडुलकर के शतक शामिल हैं. इसके जवाब में कंगारुओं को भारतीय गेंदबाजों ने 212 रन पर समेट दिया.
उस मैच में तेज गेंदबाज आरपी सिंह ने पहली पारी में 4 विकेट लिए थे. दूसरी पारी में वीवीएस लक्ष्मण के अर्धशतक की बदौलत भारतीय टीम ने 294 रन बनाए और ऑस्ट्रेलिया को चार सौ रनों के पार का लक्ष्य दिया. जवाब में ऑस्ट्रेलियाई टीम 340 रन ही बना पाई. उस मैच में भारत ने 72 रनों से जीत हासिल की थी. दूसरी पारी में भी भारतीय तेज गेंदबाजों ने 6 विकेट झटके थे. दिलचस्प बात ये है कि उस टेस्ट मैच से पहले जब सौरव गांगुली ने पिच देखी तो उन्होंने कुछ पत्रकारों से कहा था कि पिच सामान्य ऑस्ट्रेलियाई विकेट की तरह ही है बस झूठमूठ का डर पैदा करने की कोशिश की जा रही है. लगता है एक दशक बाद भी ऑस्ट्रेलियाई टीम उसी दांव को दोबारा चलने में फंसी हुई है.