मै संविधान हूं,...वो 2 साल 11 महीने 18 दिन...यही वो दिन थे, जब मुझे सौंपा जाना था - भारत का भविष्य , वो 389 लोग जिन्होंने मुझे आकार दिया , आज़ादी का सपना साकार किया मुझे वो हर चेहरा याद है, जिन्होंने मुझे गढ़ा, जिन्होंने मुझे लिखा और इन्हीं के योगदान से मै पूरा हुआ....क्योंकि यही थे संविधान के निर्माता .
भारत की अखंडता, विविधता में एकता का स्वरूप बना रहे इसके लिए संविधान सभा के हर सदस्य ने अपने अपने स्तर पर योगदान दिया. कई बार स्वीकार्यता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है विरोध, खासकर जब बात राष्ट्रपथ की हो. आज जब देश के नाम को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है तो मुझे याद आ रहे हैं मेरे सदस्य एचवी कामत जिन्होंने संविधान सभा में देश के आधिकारिक नाम को लेकर संशोधन प्रस्ताव पेश किया था.
आज से 74 साल पहले 18 सितंबर 1949 को संविधान सभा में पहली बार देश के नामकरण पर चर्चा शुरू हुई, दरअसल आंबेडकर समिति ने इंडिया और भारत दो नाम सुझाए, जिसके विरोध में संविधान सभा के सदस्य हरि विष्णु कामत ने संशोधन प्रस्ताव पेश किया और देश का नाम इंडिया से बदल कर भारत या भारतवर्ष करने की मांग की. एचवी कामत ने देश का नाम भारत हो या इंडिया को लेकर अपना मत रखते हुए कहा- दुनिया में नवजात के नामकरण की प्रथा है. गणराज्य के रूप में जल्द ही भारत का भी जन्म होनें वाला है. नागरिकों की मांग है कि देश का भी नामकरण हो जिसे लेकर कई तरह के सुझाव आए हैं मसलन प्रमुख हिन्दुस्तान, हिन्द, भारतवर्ष, भारत और भारतभूमि.
देश के नामकरण को लेकर एचवी कामत ने की बहस
एचवी कामत ने उन लोगों के सवालों का भी जवाब दिया जो यह पूछ रहे थे कि इस नाम की जरूरत क्या है? इस देश को इंडिया तो कहा ही जाता है, लेकिन जो लोग भारत या भारतवर्ष या भारत भूमि नाम रखना चाहते हैं, उनका तर्क है कि यह धरती का सबसे पुराना नाम है. कामत की इस बात पर असहमति जताते हुए डॉ. भीम राव आंबेडकर ने कहा क्या यह सब पता लगाना जरूरी है. इस प्रस्ताव का औचित्य समझ नहीं आता.
...जब कामत ने डॉ. आंबेडकर को नसीहत
सवाल सिर्फ नाम का नहीं, नाम में छिपी राष्ट्रीयता, आत्मीयता का था जिसे लेकर कामत ने अपने भाषण में आयरलैंड का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि इंडिया दैट इज़ भारत कहना ठीक नहीं. डॉ. आंबेडकर ने संविधान का प्रारूप बनाने में पहले भी कई भूलें स्वीकार की है. इसे भी एक भूल मान लेना चाहिए. देश के नाम में इंडिया जोड़ना एक बड़ी गलती है. इसे भारत कर सुधारने की जरूरत है. आयरलैंड ने 1937 में कहा था कि उनके देश का असली नाम आयर होगा और अंग्रेज़ी में आयरलैंड. इसी तर्ज पर भारत का नाम भी रखा जाना चाहिए. अंग्रेजी में इंडिया रख सकते हैं. कामत के तर्क के बाद बहस तेज और तीखी हो गई हालांकि आंबेडकर चाहते थे कि इस विषय को आधे घंटे में निपटा लिया जाए.
बहरहाल इस पर लंबी बहस हुई, जिसमें सेठ गोविंद दास ने भी भारत के ऐतिहासिक संदर्भ का जिक्र करते हुए कामत के प्रस्ताव का समर्थन किया. सेठ गोविंद दास ने कहा कि इंडिया का उल्लेख हमारी किसी पुस्तक में नहीं मिलता, यूनानियों के भारत आने के बाद इंडिया नाम का प्रयोग शुरू हुआ. जाहिर है कि उन्होंने सिंधु नदी को इंडस कहा और इंडस नाम से इंडिया पड़ा. जिसका जिक्र ब्रिटानिका शब्दकोश में है. लेकिन वेदों, उपनिषदों, महाभारत और विष्णु पुराण में भारत का जिक्र है, ब्रह्म पुराण में भी भारत लिखा है. इस बहस के दौरान कमलापति त्रिपाठी ने बीच का रास्ता सुझाने की कोशिश करते हुए कहा कि- देश का नाम इंडिया अर्थात भारत रखा गया है लेकिन इस देश का ऐतिहासिक संदर्भ देखते हुए इसका नाम भारत अर्थात इंडिया कर दिया जाना चाहिए.
दक्षिण और गैर हिन्दी भाषी सदस्यों ने भारत नाम पर हुई असहमति के बाद हुई वोटिंग पर प्रस्ताव 38 के मुकाबले 51 मतों से गिर गया. और अनुच्छेद 1 में देश का नाम इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ नाम पारित हो गया.
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा के सदस्यों के बीच असहमति के चलते देश का आधिकारिक नाम भारत अर्थात इंडिया नहीं हो पाया हो लेकिन 21 वीं सदी में विकसित होता भारत अपनी ऐतिहासिक पहचान पाने की दिशा में आगे बढ़ चला है और इसलिए इंडिया से पहले भारत होने की आवाज़ जोर पकड़ रही है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]