13 मार्च 2004 को कराची का नेशनल स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. प्रेस बॉक्स में भी सीटें भरी हुई थीं. प्रेस बॉक्स दो हिस्सों में बंटा हुआ था. एक तरफ हिंदुस्तान से गए पत्रकार और दूसरी तरफ पाकिस्तान के पत्रकार. सौरव गांगुली ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी का फैसला किया, सहवाग और सचिन क्रीज पर थे. शोएब अख्तर के हाथ में गेंद. शोएब बाउंड्री के पास से दौड़ते थे तो मालूम होता था कि पूरा का पूरा स्टेडियम उनके साथ दौड़कर सचिन और सहवाग को आउट कर देगा.
खैर, सचिन और सहवाग ने सधी हुई शुरूआत दी. प्रेस बॉक्स का माहौल कुछ ऐसा था कि चौका पड़ने पर हिंदुस्तानी पत्रकार ताली बजा तो देते थे, पर तुरंत ही थोड़ी दूर बैठे पाकिस्तानी पत्रकारों के चेहरों पर नजर डाल लेते थे. भारतीय बल्लेबाज बीट हो जाएं तो तालियां उधर भी बजती थीं. खैर, द्रविड़ के 99 और सहवाग के 79 की बदौलत भारत ने स्कोर बोर्ड पर 349 रन जोड़ दिए. जीत के लिए पाकिस्तान को 350 रनों की जरूरत थी. स्कोर ठीकठाक था, पर इंजमाम ने भारत की उम्मीद पर पानी फेरना शुरू कर दिया था. स्टेडियम में जो थोड़े बहुत भारतीय फैंस थे, उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं.
ये वो दौर था जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच किसी युद्ध से कम नहीं होता था. जीत और हार को सीधे सीधे अपनी इज्जत से जोड़ कर देखा जाता था. इंजमाम ने अपना शतक पूरा किया. शतक पूरा करने के बाद भी वो क्रीज पर टिके हुए थे और खतरनाक होते जा रहे थे. लग रहा था कि प्रैक्टिस मैच के बाद पहले वनडे में भी भारतीय टीम की किस्मत में हार ही लिखी हुई है. कोई 40-42 ओवर का खेल बीत चुका था, जब सौरव गांगुली ने मुरली कार्तिक को गेंद दी. मुरली कार्तिक ने पहली ही गेंद पर इंजमाम को द्रविड़ के हाथों कैच करा दिया. अचानक भारतीय खेमा हरकत में आ गया. स्टेडियम में बैठे दर्शकों में भी हलचल शुरू हो गइ.
भारतीय पत्रकारों ने इस बात का हिसाब किताब लगाना शुरू कर दिया कि अब कितने विकेट और गिर जाएं तो मैच पर भारत का कब्जा हो सकता है. पर यकीन मानिए जीत अभी भारतीय टीम से काफी दूर थी, अब्दुल रज्जाक, यूनिस खान और मोइन खान जैसे बड़े मैच विनर खिलाड़ी बचे हुए थे पर पाकिस्तान के खिलाफ मैच में तो लोग भगवान और खुदा से भी जीत हार मांगते रहते हैं.
मुरली कार्तिक ने अगले ही ओवर में युनिस खान को आउट किया, और जहीर खान ने अब्दुल रज्जाक को पवेलियन भेज दिया. मैच में जबरदस्त रोमांच आ गया. अब 18 गेंद और पाकिस्तान को चाहिए 24 रन. क्रीज पर मोइन खान और शोएब मलिक. मोइन खान उटपटांग शॉट्स मारने में माहिर. बालाजी ने 48वें ओवर में 7 रन दिए, यानी अब 12 गेंद पर 17 रन.
मैच इतना दिलचस्प होता जा रहा था कि कोई किसी से बात नहीं कर रहा था. प्रेस बॉक्स में जो खड़ा था वो खड़ा था, जो बैठा था वो बैठा था. 49वां ओवर जहीर खान ने किया, उन्होंने 8 रन दिए लेकिन शोएब मलिक को आउट भी कर दिया. इस मैच को मैच देखने के लिए जहीर अब्बास, हनीफ मोहम्मद और मोहसिन कमाल जैसे पाकिस्तानी क्रिकेटर भी आए थे. उन महान खिलाड़ियों की भी सांसे थमी हुई थीं. जीत और हार से उनका भी सरोकार था.
पाकिस्तान को जीत के लिए 6 गेंद पर 9 रन चाहिए थे. सौरव के पास अब आखिरी ओवर देने के विकल्प के तौर पर सिर्फ आशीष नेहरा थे. पार्ट टाइम गेंदबाज के तौर पर वो या तो खुद गेंदबाजी करते या फिर सचिन तेंडुलकर या वीरेंद्र सहवाग से गेंदबाजी कराते. दादा ने नेहरा को गेंद दी.
अब मैच की आखिरी 6 गेंद का आंखों देखा ब्यौरा कुछ यूं था-
50वें ओवर की पहली गेंद- नावेद उल हसन कोई रन नहीं बना पाए
अब 5 गेंद पर 9 रन
50वें ओवर की दूसरी गेंद- नावेद उल हसन ने एक रन लिया
अब 4 गेंद पर 8 रन
50वें ओवर की तीसरी गेंद- मोइन खान कोई रन नहीं बना पाए
अब 3 गेंद पर 8 रन
(यही वो वक्त था जब उस वक्त के पाकिस्तानी कोच जावेद मियांदाद को आप लोगों ने टीवी पर देखा होगा. मियांदाद पवेलियन में थे और वहीं से मोइन खान को एक खास किस्म का शॉट खेलने के लिए कह रहे थे. अचानक हर किसी को 1986 में शारजाह में चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर मियांदाद के छक्के के साथ जीत के दृश्य ताजा हो गए, हमने भी ये दृश्य बाद में टीवी पर देखे)
50वें ओवर की चौथी गेंद- मोइन खान ने एक रन लिया
अब 2 गेंद 7 रन
50वें ओवर की पांचवी गेंद- नावेद उल हसन ने एक रन लियायानी आखिरी गेंद पर छक्का लगाओ और मैच जीतो. मोइन खान ऐसा कर सकते थे. क्रिकेट की दुनिया में ‘अनकनवेंसनल शॉट्स’ खेलने में वो माहिर थे. नेहरा ने आखिरी गेंद पर उनका विकेट लिया, भारत को जीत मिली. दरअसल यहीं से शुरू हुआ पाकिस्तान के खिलाफ मैदान में भारतीय टीम के रूतबे का बदलना जो अब तक जारी है.
INDvsPAK: 13 मार्च 2004 की तारीख का इतिहास
शिवेन्द्र कुमार सिंह
Updated at:
16 Jun 2017 12:40 PM (IST)
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