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क्या आप टीम इंडिया की इस ‘बोरिंग’ जीत का जश्न मनाएंगे?

राजकोट टेस्ट मैच में भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज पर पारी और 272 रनों की बड़ी जीत हासिल की। इस जीत का क्या वाकई कोई मायने है

इस सवाल का जवाब अपने दिल और दिमाग दोनों से पूछिए. दोनों एक साथ कहेंगे- किस बात का जश्न? वेस्टइंडीज की ऐसी टीम को हराने का जश्न जिसके दो तीन खिलाड़ियों को छोड़ दें तो बाकियों के नाम तक कोई नहीं जानता. जिस टीम में तीन चार खिलाड़ियों को छोड़कर किसी को दस टेस्ट मैच खेलने का भी अनुभव नहीं है. जिन्हें भारत में तो छोड़िए अपने घर में टेस्ट मैच जीते अरसा हो गया है. जो इस सीरीज को खेलने के लिए आते वक्त जब फ्लाइट में बैठे थे तभी से उन्हें पता था कि वो टेस्ट सीरीज हारने के लिए जा रहे हैं. लिहाजा उनके लिए ये हार कोई चौंकाने वाली नहीं है. ऐसे में व्यवहारिकता ये है कि टीम इंडिया मैनेजमेंट और बीसीसीआई को ये सोचना चाहिए कि इस सीरीज को खेलने का क्या उन्हें कोई फायदा होगा. या फिर एक और विकल्प हो सकता है लेकिन सदियों पुराने इस खेल के नियम उसके आड़े आते हैं. वेस्टइंडीज को भारत के खिलाफ अगर प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट खेलनी है तो कुछ नियम बदलने पड़ेगे. मसलन- अगर भारत को जीत हासिल करनी है तो वेस्टइंडीज की टीम को चार बार ऑल आउट करना पड़ेगा. ये पढ़कर आपको हंसी जरूर आएगी लेकिन फिलहाल स्थिति यही है. तीसरे दिन के खत्म होने से भी पहले वेस्टइंडीज की टीम मैच हार गई. हार का अंतर पारी और 272 रन. जीत का ये अंतर दोनों टीमों की ताकत का अंदाजा लगाने के लिए काफी है.

क्या वाकई हम जल्दी भूल जाते हैं

लगता है हम भूल गए कि ये वही टीम इंडिया है जो महीने भर पहले इंग्लैंड में बुरी तरह हारी थी. पांच टेस्ट मैच की चार पारियों में टीम इंडिया के दिग्गज बल्लेबाज 200 रनों के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाए थे. विराट कोहली को छोड़ दें तो कोई बल्लेबाज ऐसा नहीं है जिसने पूरी सीरीज में ‘कंसिसटेंसी’ के साथ बल्लेबाजी की हो. इंग्लैंड की अपेक्षाकृत तेज पिचों पर सब के सब फिसड्डी दिख रहे थे. ये बात शायद टीम इंडिया के बल्लेबाज भी भूल गए हैं. तभी तो इस सीरीज में सब अपनी अपनी रिकॉर्ड बुक को चमकाने में लगे हुए हैं. पृथ्वी शॉ तो खैर अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे थे इसलिए उनके शतक की तो बहुत कीमत है लेकिन उनके अलावा विराट कोहली ने शतक लगाया. रवींद्र जडेजा ने 6 साल के टेस्ट करियर में पहली बार शतक लगाया. ये मान भी लिया जाए कि खेल में कभी मजबूत तो कभी कमजोर प्रतिद्वंदी मिलता है तो भी ये बात हजम नहीं होती कि एक कमजोर प्रतिद्वंदी के खिलाफ टीम इंडिया पूरी की पूरी ताकत के साथ सीरीज खेल रही है. जिस सीरीज को देखने के लिए ना तो मैदान में दर्शक है और ना ही टेलीविजन सेट्स पर. खुद ही रन बनाओ खुद ही पीठ थपथपाओ वाली हालत है. इस स्थिति से बचने का एक विकल्प था.

ज्यादा से ज्यादा नए चेहरों को देना चाहिए था मौका

दरअसल, वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलना एक किस्म की मजबूरी भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि क्रिकेट खेलने वाले सभी देशों के बोर्ड आपस में अनुबंध करते हैं. जिसमें एक दूसरे के देश में जाकर खेलने की बात भी होती है. ऐसे में वेस्टइंडीज की टीम चाहे कितनी भी कमजोर हो बीसीसीआई ये नहीं कह सकता है कि आपकी टीम कमजोर है इसलिए हम टेस्ट सीरीज नहीं खेलेंगे. याद कीजिए एक ऐसा भी वक्त था जब भारतीय टीम के साथ भी यही होता था. भारतीय टीम भी वेस्टइंडीज के दौरे पर इसी तरह पिटती थी. सवाल ये है कि इस ‘बोरिंग’ टेस्ट सीरीज का फायदा कैसे उठाया जाए. बेहतर होता अगर भारतीय टीम मैनेजमेंट इस सीरीज के लिए ज्यादा से ज्यादा नए खिलाड़ियों को मौका देता. पृथ्वी शॉ की तरह और नए चेहरों को प्लेइंग 11 में मौका दिया जाता. उससे कम से कम कुछ फायदा तो जरूर मिलता क्योंकि अगर टीम मैनेजमेंट ये सोच रहा है कि विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा या अजिंक्य रहाणे का वेस्टइंडीज की इस टीम के खिलाफ रन बनाकर आत्मविश्वास बढ़ेगा तो ये कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं.

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