भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच तीसरा टेस्ट मैच 26 दिसंबर से मेलबर्न में शुरू होगा. भारत ने एडिलेड और ऑस्ट्रेलिया ने पर्थ में टेस्ट मैच जीतकर सीरीज को 1-1 की बराबरी पर रखा है. मेलबर्न में टेस्ट मैच जो भी टीम जीतेगी सीरीज पर उसके कब्जे की उम्मीदें भी बढ़ जाएंगी. टेस्ट मैच से पहले भारतीय टीम में मयंक अग्रवाल और हार्दिक पांड्या शामिल किए गए हैं.


हालांकि भारतीय टीम की हार और जीत के बीच अब सिर्फ उसके तेज गेंदबाज हैं. जिन्होंने इस साल शानदार प्रदर्शन किया है. पहले दक्षिण अफ्रीका, फिर इंग्लैंड और अब ऑस्ट्रेलिया में भारतीय तेज गेंदबाजों ने एक तरह से पूरी दुनिया के बल्लेबाजों को चौंकाया है. जो भारतीय टीम के तेज गेंदबाज विरोधी टीम के 20 विकेट लेने में पसीना छोड़ देते थे उन्होंने ये कारनामा लगातार किया है. टेस्ट मैच जीतने की पहली शर्त होती भी यही है कि आप विरोधी टीम के 20 बल्लेबाजों को आउट करें. जिसे भारतीय टीम के गेंदबाज पूरा कर रहे हैं.


बावजूद इसके जीत हाथ से फिसल जा रही है. दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड में तो सीरीज भी हाथ से चली गई. अब ऑस्ट्रेलिया में अगर इतिहास रचना है तो इन्हीं तेज गेंदबाजों पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.


प्रदर्शन खुश करता है पर मैच का नतीजा नहीं


अगर आपने 80-90 के दशक में विदेशी पिचों पर भारतीय बल्लेबाजों की दुर्गति देखी है तो निश्चित तौर पर आपको हमारे मौजूदा तेज गेंदबाजों में स्टार नजर आएंगे. इसमें कोई दो राय है भी नहीं कि मौजूदा तेज गेंदबाज स्टार हैं. लेकिन आप अपने दिल से पूछिए आपको टेस्ट मैच के आखिरी दिन भारत की जीत चाहिए या आप सिर्फ ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों की परेशानी देखकर खुश रहना चाहते हैं.


आपको याद ही होगा कि इस सीरीज में भारतीय गेंदबाजों ने ऑस्ट्रेलिया के सलामी बल्लेबाजों को अब तक क्रीज पर आसानी से खड़े नहीं होने दिया है. सलामी बल्लेबाज के हेलमेट पर बाउंसर लगा. एरॉन फिंच की ऊंगली में चोट लगी. हैंड्सकॉम्ब समेत कई बल्लेबाज फ्रंट फुट का रूख ही नहीं कर पा रहे हैं. उस्मान ख्वाजा जैसे सधे हुए बल्लेबाज को भी कड़ी मुश्किल आ रही है.


ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारतीय तेज गेंदबाज 145 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार ने ना सिर्फ गेंदबाजी कर रहे हैं बल्कि उनकी लाइन लेंथ भी कमाल की रही है. दूसरे टेस्ट मैच में उमेश यादव की गेंदबाजी को छोड़ दें तो बाकि तेज गेंदबाजों ने पिच का शानदार इस्तेमाल किया है. इस सीरीज के शुरू होने से पहले वसीम अकरम ने भारतीय गेंदबाजों को नसीहत दी थी कि वो कोकुबुरा की गेंद से ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर शॉर्टपिच गेंद फेंकने से बचें. उन्होंने इस लालच से दूर रहने की सलाह इसीलिए दी थी कि ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज इन पिचों पर शॉर्ट पिच गेंद खेलने के लिए तैयार रहते हैं. भारतीय गेंदबाजों ने इस लिहाज से शानदार गेंदबाजी की है.


कहां हो रही है तेज गेंदबाजों से चूक


भारतीय तेज गेंदबाज चूक यहां कर रहे हैं कि वो विरोधी टीम के पुछल्ले बल्लेबाजों को आउट नहीं कर पा रहे हैं. इस पूरे साल में पुछल्ले बल्लेबाजों के बनाए रन टीम इंडिया पर भारी पड़े हैं. इसके पीछे की वजह ये है कि भारतीय गेंदबाज पुछल्ले बल्लेबाजों के विकेट के लिए कई तरह के प्रयोग करने लग जाते हैं. जिसकी वजह से उन्हें क्रीज पर वक्त बिताने का मौका मिलता है और थोड़े थोड़े रन बनते रहते हैं. इससे उलट और बड़ी समस्या तब आती है जब भारतीय गेंदबाज क्रीज पर बिल्कुल ही हथियार डाल देते हैं.


पूरे साल खेले गए टेस्ट मैचों में से किसी भी मैच का आंकड़ा निकालकर देख लीजिए यही परेशानी जीत और हार के बीच का अंतर है. आंकड़े बताते हैं कि भारतीय तेज गेंदबाजों ने दुनिया की बाकि टीमों के मुकाबले विकेट ज्यादा लिए हैं. मिचेल स्टार्क, हेजलवुड या कमिंग्स के मुकाबले भारतीय तेज गेंदबाजों का प्रदर्शन बेहतर रहा है. लेकिन वहीं आंकड़े ये भी बताते हैं कि भारतीय गेंदबाजों ने अपनी बल्लेबाजी के वक्त क्रीज पर बिल्कुल भी संघर्ष करने की ताकत नहीं दिखाई है. अभी तक सीरीज का सबक यही है कि अगर जीत हासिल करनी है तो तेज गेंदबाजों को विकेट लेने के साथ साथ बल्ले से भी थोड़ा थोड़ा योगदान करना होगा. वरना क्रिकेट की रिकॉर्ड बुक में फिंच या उस्मान ख्वाजा की चोट नहीं बल्कि भारत की हार दर्ज होगी.