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BLOG: इंडियन मैचमेकर का सेक्सिज्म ओल्ड नॉर्मल है और डरावना भी

यह दिलचस्प है कि इंडियन मैचमेकर के दो एलिजिबल बैचलर अक्षय और प्रद्युमन काफी नॉर्मल लड़के हैं. हमें अपने इर्द गिर्द ऐसे लड़के खूब मिल जाते हैं. जो लिबरल हैं, मॉडर्न हैं.

इन दिनों न्यू नॉर्मल का जिक्र बार बार होता है. नेटफ्लिक्स के नए रियैलिटी वेब शो इंडियन मैचमेकर को देखकर अनायास मुंह से निकला- यह भारतीय समाज का ओल्ड नॉर्मल है. पुरानी पीढ़ी को इसमें कुछ भी औचक नहीं लगता. नई लड़कियों के लिए यह शो, कुछ भयावह, कुछ घृणास्पद है. मैचमेकिंग, कुंडली मिलान, जैसे काम बरसों से लोग करते रहे हैं, शादियां होती रही हैं. अब भी होती हैं. यह सामान्य सी बात है. यूं इसका सामान्य होना ही सबसे बड़ी दिक्कत है.

इंडियन मैचमेकर इसी सामान्य रियैलिटी को पेश करता है. सीमा टपारिया नाम की मैचमेकर मुंबई और अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की शादियां करवाने का दावा करती हैं. उनके क्लाइंट्स की मीटिंग्स और उनकी पार्टनरशिप पर इस वेबशोज की आठ कड़ियां बेस्ड हैं. कई लोग हैं, कुछ लड़कियां, कुछ लड़के, जिनकी मीटिंग फिक्स की जाती है. उनकी आपस में जमती है या नहीं, एपिसोड्स इसी को शोकेस करते हैं. लड़कियों और लड़कों की पसंद-प्रिफरेंस दर्ज किए जाते हैं. फिर उनके हिसाब से उनके लिए जोड़ देखे जाते हैं. अपर्णा, नादिया, अक्षय, प्रद्युमन, अंकिता, शेखर, मनीषा, राशि, रूपम ये सभी लोग इस शो का हिस्सा हैं. बताते हैं कि सीमा के कई क्लाइंट्स ने इस शो में भाग लेने से मना कर दिया था, जो तैयार हुए, उन्हें लेकर वेबशो फिल्माया गया.

लड़कियों को एडजस्टिंग होना चाहिए वैसे रियैलिटी शो में कहते हैं, सिर्फ कैमरा बोलता है- पर वह क्या बोलेगा, इसे तय करने वाले मौजूद होते हैं. इंडियन मैचमेकर में भी सीमा का परसेप्शन काम करता है. लड़कियों को वह बराबर सीख देती हैं कि उन्हें एडजस्टिंग होना चाहिए, फ्लेक्सिबल और पॉजिटिव होना चाहिए. लड़कों को ऐसी सलाह नहीं दी जाती. शो में प्रद्युमन के माता-पिता कहते हैं, पिछले डेढ़ साल में वह 150 लड़कियों को रिजेक्ट कर चुका है, पर उसे पिकी नहीं कहा जाता. अपर्णा कई लड़कों को ना कहने पर हमेशा पिकी कहलाई जाती है. मनीषा जब अक्षय की कम कमाई के कारण उससे शादी से इनकार कर देती हैं तो मैचमेकर सलाह देती है, लड़की को लड़के का दिल भी देखना चाहिए. अक्षय की मां, अक्षय के लिए लड़की पसंद करना चाहती है. अक्षय कहता है, मुझे अपनी मां जैसी लड़की चाहिए. मां को ऐसी लड़की चाहिए, जो ज्वाइंट फैमिली में रहना चाहे. वह अपने घर के नियम बताती है- होने वाली बहू को उन नियमों का पालन करना होगा. अंकिता रिश्तों में बराबरी चाहती है पर मैचमेकर कहती है, लड़कियों को परिस्थितियों के हिसाब से ढलना पड़ता है क्योंकि लाइफ कभी इक्वल नहीं होती. रूपम का सिंगल मदर होना ही उसके लिए विकल्प कम करता है.

यह सब बहुत नॉर्मल है इंडियन मैचमेकर में इसी का डॉक्यूमेंटेशन है. इसीलिए इसका नॉर्मल होना ही इसका सबसे वीभत्स रूप है. इसमें ऐसा क्या है, जो हमने अब तक नहीं देखा. अरेंज्ड मैरिज अच्छी चलती हैं, मैचमेकर यही कहती है. हर एपिसोड में ऐसे कपल्स दिखाए जाते हैं जिनकी शादी अरेंज्ड थी और कामयाब भी है. पर उन्हें अरेंज करने के लिए लड़कियों को जिन उम्मीदों पर खरा उतारना पड़ता है, उसे देखकर क्या लड़कियां इस अरेंजमेंट के लिए तैयार भी होंगी? चूंकि शादियां अरेंज करने के लिए जिन बातों को नॉर्मल माना जाता है, क्या उन्हें उतना नॉर्मल माना जाना चाहिए? कि लड़के और लड़के के परिवार वाले होने वाली बहू से इतनी उम्मीदें करें. कि लड़कियां नई जिंदगी के लिए एडजस्टमेंट करें कि दोनों के बीच तालमेल से ज्यादा परिवारों में तालमेल हो.

यह दिलचस्प है कि इंडियन मैचमेकर के दो एलिजिबल बैचलर अक्षय और प्रद्युमन काफी नॉर्मल लड़के हैं. हमें अपने इर्द गिर्द ऐसे लड़के खूब मिल जाते हैं. जो लिबरल हैं, मॉडर्न हैं. अक्षय कहता है, होने वाली बीवी बाहर जाकर काम करेगी, तो बच्चों को कौन संभालेगा. यह एक स्टेटमेंट नहीं, जजमेंट है. उसकी प्रतिक्रिया उस सच को बयान करती है, जो हमारे समाज का सच है. पर यह मिसॉजनी और सेक्सिज्म इतनी नॉर्मल बात नहीं है.

आदमियों और औरतों के लिए अलग-अलग स्टैंडर्ड कई साल पहले भारत मेट्रीमोनी ने एक ऑनलाइन सर्वे किया था. इसका नाम था, हैशटैग माईवाइफवुडबी. इसमें लड़कों से उनकी भावी बीवियों से जुड़े 20 सवाल किए गए थे. जिस प्रतियोगी का जवाब सबसे अच्छा था, उसे ईनाम दिया गया था. इन सवालों के जवाब बहुत लाजवाब थे. जैसे एक सवाल यह किया गया था कि आपकी बीवी अपनी ज्वाइंट फैमिली में रहे, यह महत्वपूर्ण क्यों है. जिस जवाब को सबसे अच्छा बताया गया था, वह यह था कि ज्वाइंट फैमिली हमें परिवार का महत्व समझाती है और यह भी कि प्यार भरे परिवार के साथ कैसे रहें. यहां दामाद के अपने ससुराल के प्रति प्रेम का कोई जिक्र नहीं था. यह कितना खतरनाक हो सकता, इसे 2016 में सुप्रीम कोर्ट एक मामले में समझा जा सकता है.

एक मामले की सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर बीवी पति को अपने माता-पिता से अलग करने की कोशिश करती है तो यह दोनों के बीच तलाक का आधार हो सकता है. यह बीवी की तरफ से क्रूरता है. पर बीवी का अपने मायके वालों, अपने माता-पिता से अलग रहना क्रूरता की परिभाषा में शामिल नहीं है. यह स्टैंडर्ड हमेशा से आदमियों और औरतों के लिए अलग-अलग हैं, और हम इन्हें नॉर्मल मानकर नजरंदाज करते हैं.

लड़कियों से हम ज्यादा ही उम्मीदें लगा लेते हैं. इसलिए उनके प्रति पूर्वाग्रहों के शिकार होते हैं. स्वतंत्र, अपने फैसले खुद लेने वाली, बराबरी पर हर रिश्ते को तौलने वाली लड़कियां ‘अपने समय से आगे होती हैं’, जैसा कि इंडियन मैचमेकर में अंकिता के पिता कहते हैं. मैचमेकर के लिए ऐसी लड़कियां मुश्किल हैं. क्योंकि उनके लिए लड़के तलाशना आसान नहीं.

इंडियन मैचमेकर दरअसल हमारे इर्द गिर्द रहने वाली उन आंटियों की तरह हैं, जिनसे शादियों में लड़के लड़कियां बचना चाहते हैं. कहीं उन्होंने देख लिया तो धर लेंगी. वेबशो की मैचमेकर को लोग पैसे देकर यह काम करवा रहे हैं. वह फैसले सुनाती है, सलाह देती है, अपनी जाति और धर्म के जोड़े ढूंढती है. हमारे यहां शादियां एक सामाजिक समारोह ही तो होती हैं. अपने वर्ण, अपने वर्ग, अपनी जाति में शादियां ताकि अपने क्लास की प्योरिटी बची रहे. यह सब बहुत नॉर्मल है ना.. और यही नॉर्मल होना सही नहीं है. जो कुछ भी नॉर्मल है, उसे पर सवाल किए ही जाने चाहिए.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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