(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
गाली की राजनीति...सबको सन्मति दे भगवान!
Himanta Biswa Sarma Rahul Gandhi: क्या राजनीति इंसान को मर्यादाहीन और असभ्य बना देती है? आप हां कहेंगे अगर आपकी नजर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा पर जाएगी जिन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर राजनीतिक हमला करने के लिए ये कह दिया कि मैंने कभी पूछा कि क्या सबूत है कि राहुल गांधी राजीव गांधी के बेटे हैं. आप तब भी हां कहेंगे जब आप ये सोचेंगे कि इस पर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, हिंदुस्तान में राष्ट्रवाद और भारतीय सनातनी परंपरा का वाहक होने की दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने चुप्पी साध ली या कहें कि इस गाली को मौन सहमति दे दी. और आप आखिर में तब हां कहेंगे जब देखेंगे कि चुनाव आयोग ने भी इसका नोटिस नहीं लिया.
आप जैसे ही किसी के पिता पर सवाल उठाते हैं, आप अनायास किसी माता के चरित्र पर लांछन लगाते हैं. राहुल गांधी देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे हैं. हेमंत बिस्वा सरमा राहुल गांधी के हमउम्र हैं, यानी हेमंत राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बेटे की उम्र के हुए. हिंदुस्तान की कौन सी परंपरा, संस्कार और सभ्यता ये कहती है कि आप अपने बुजुर्गों को अपमानित और लांछित कीजिए? लेकिन जो राजनीति किसी दूसरे के बेडरूम में झांककर ही अपना भविष्य और करियर संवारती है, उससे आप इससे ज्यादा आशा नहीं रख सकते.
एक मुख्यमंत्री की ऐसी भाषा के मायने
जब मन के अंदर का डर और मस्तिष्क में बैठा अहंकार जरूरत से ज्यादा कुलबुलाने लगता है तो इंसान गाली देता है. वो समझता है कि गालियों के जरिए वो किसी दूसरे का शाब्दिक दमन कर रहा है. लेकिन भूल जाता है कि हर गाली किसी मां-बहन को ही लगती है या किसी कमजोर तबके को इंगित करके ही दी जाती है. अब कोई मुख्यमंत्री ऐसी भाषा बोले तो समझा जा सकता है कि वो किसी मां-बहन के लिए क्या सम्मान रखता होगा और कैसे वो प्रधानमंत्री जी के बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के महान विचार को आगे बढ़ाएगा. हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस में थे. असम सरकार में मंत्री थे. साढ़े छह साल पहले राहुल गांधी से मिलने दिल्ली आए थे तो हेमंत के मुताबिक ही राहुल उनकी बात सुनने की जगह अपने कुत्ते को बिस्किट खिला रहे थे. हेमंत के कहे के मुताबिक ही उनके आत्मसम्मान ने उनको धिक्कारा और वो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले आए. इसमें कोई बुराई नहीं क्योंकि हमारा लोकतंत्र इतना खुला है कि आप जहां चाहे, वहां जाइए और राजनीति कीजिए.
इस केस में आप क्रोनोलॉजी बस इतना समझिएगा कि केंद्र में तब तक बहुमत के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ चुके थे और दूसरी तरफ असम में कांग्रेस की सरकार बहुत कमजोर हो चुकी थी. ऊपर से कांग्रेस हेमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने को तैयार नहीं थी. अब ये कांग्रेस की राजनीतिक भूल हो सकती है, क्योंकि कांग्रेस पिछले कई वर्षों से सिर्फ राजनीतिक भूल ही कर रही है और विपक्ष से जो लोग कुछ आशा रखते हैं, उनको लगातार निराश कर रही है. अच्छा हुआ कि कांग्रेस ने अब तक हेमंत बिस्वा सरमा के गाली पर अपनी गाली नहीं बिठाई. चाहे बुद्ध और गांधी को छद्म राष्ट्रवाद के नए प्रणेता कितना भी राष्ट्रीय स्मृति से ओझल करना चाहें लेकिन ये महान लोग भारत की परंपरा के असली वाहक हैं.
राजनीति में करुणा, संवेदना और सम्मान खत्म?
एक बार एक आदमी गौतम बुद्ध के पास गया. उनको बहुत गालियां दीं. जब गाली देने वाला थककर शांत हो गया तो बुद्ध ने पूछा कि अगर तुम मुझे कुछ सामान दो और मैं उसे ना लूं तो क्या होगा. उस आदमी ने कहा कि वो सामान मेरे पास रह जाएगा. बुद्ध ने कहा कि मैंने तुम्हारी गाली ग्रहण नहीं की. बुद्ध में करुणा थी. राजनीति को मानव विकास से जोड़ना है तो उसमें भी करुणा होनी चाहिए. लेकिन सत्ता के बाजार में बिठा दी गई आज की राजनीति करुणा, संवेदना और संयम की परिभाषा नहीं समझती. भारतीय परंपरा में गालियों का भी स्थान है लेकिन वो हास्य के लिए है, जुगुप्सा और विद्रुपता के लिए नहीं. फागुन शुरु होने वाला है. होली में गालियां दी जाती हैं और शादी ब्याह के मौके पर भी दी जाती हैं. लेकिन उस गाली और इस गाली में फर्क है. जैसे एक वस्त्र हरण दु:शासन ने द्रौपदी का किया था, दूसरा वस्त्र हरण भगवान कृष्ण ने गोपियों का. द्रौपदी के चीर हरण में महिला की मर्यादा का हनन था, उसकी गरिमा पर चोट थी और हमारी सभ्यता पर प्रश्नवाचक चिह्न लगा था. गोपियों के चीर हरण में प्रेम था, एक दूसरे के प्रति संपूर्ण विश्वास. लेकिन पता नहीं भगवान कृष्ण के नाम पर राजनीति करने वाले इसे कब समझेंगे. सबको सन्मति दे भगवान!
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)