भारत ने एक बेहद रोमांचक मुकाबले में चीन को हराकर एशिया कप जीत लिया है. थोड़ी चर्चा इस बड़ी कामयाबी की कर लेते हैं फिर भावनाओं की बात करेंगे. भारतीय महिला टीम ने 13 साल बाद इस खिताब पर कब्जा किया है. फाइनल मैच पेनल्टी शूट आउट तक पहुंचा, जिसमें भारत को 5-4 से जीत मिली. यूं तो भारतीय टीम ने 2018 मे होने वाले विश्व कप के लिए पहले ही क्वालीफाई कर लिया था लेकिन रविवार को जीत हासिल करके ये उपलब्धि उसने अपने दम पर हासिल की है. दरअसल, अफ्रीकी कप ऑफ नेशंस में दक्षिण अफ्रीका ने घाना को हरा दिया था, जिससे भारत का विश्व कप खेलना तय हो गया था. ये जीत इस लिहाज से अहम है क्योंकि हाल ही में भारतीय महिला टीम के कोच को बदल दिया गया था. अब उस मुद्दे पर चर्चा करते हैं जिसकी चर्चा शुरू में कीथी. सवाल ये है कि क्या दुनिया भर में खेल सिर्फ भावनाओं में सिमटते जा रहे हैं. दरअसल, रविवार को भारतीय महिला टीम की जीत की खबर अलग अलग वेबसाइट पर तो उपलब्ध थी लेकिन फाइनल मैच का कहीं प्रसारण नहीं हो रहा था. सोशल मीडिया में इस बात को लेकर लोगों ने नाराजगी जताई. एक बड़े स्पोर्ट्स चैनल से सवाल किए गए कि वो हॉकी के प्रसारण में दिलचस्पी क्यों नहीं लेता? लोगों की आपत्ति इस बात को लेकर भी थी कि अगर महिलाओं का विश्व कप टीवी पर दिखाया जाता है तो महिलाओं के हॉकी टूर्नामेंट का प्रसारण क्यों नहीं किया गया? दरअसल इन सभी बातों के जवाब में वो दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जिसका सामना पूरी दुनिया के ज्यादातर खेल कर रहे हैं.


क्यों टीवी पर नहीं देख सके “एक्शन”


सबसे पहले तो ये बताते हैं कि महिलाओं के विश्व कप के प्रसारण की वजह ये थी कि उस टूर्नामेंट का आयोजन इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल यानी आईसीसी ने किया था. जिसका खेल चैनल से करार है. भले ही उसका प्रसारण घाटे का सौदा हो. अब इसी बात को थोड़ा अलग तरीके से भी समझाते हैं. दुनिया भर में खेल के चैनलों पर दिखाए जाने वाले मैचों केआर्थिक पक्ष की बात करते हैं. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला जाने वाला बेहद प्रतिष्ठित एशेज कप नुकसान में है. दुनिया में खेलों का महाकुंभ यानी सबसे बड़ा आयोजन ओलंपिक्स नुकसान में है. शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां टेस्ट मैचों के प्रसारण से कमाई होती हो. वनडे के प्रसारण में भी नुकसान होना शुरू हो चुका है. जाहिर तौर पर यहां नुकसान का आशय रकम के उस अनुपात से है जो सीधे प्रसारण में खर्च होती है और बदले में विज्ञापनों के जरिए आती है. स्थिति इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि टी-20 क्रिकेट को छोड़कर ज्यादातर खेलों के प्रसारण अधिकार खरीदने वाली कंपनियां घाटे में हैं. हॉकी की स्थिति भी अलग नहीं है. अफसोस ये भी है कि दुनिया भर में खेले जाने वाले इस खेल को कम ही देश हैं जो अपने ‘टॉप खेलों’ में शामिल करते हैं.


एफ़आइएच का टूर्नामेंट नहीं था एशिया कप


इस बार भारतीय टीम एशिया कप जीत गई इसलिए उसके प्रसारण के ना होने का मुद्दा उठा लेकिन ये जानना जरूरी है कि पिछली बार भी हॉकी एशिया कप का प्रसारण नहीं हुआ था. इस बात को मानने में भी संकोच नहीं करना चाहिए कि अगर फाइनल मैच में भारतीय टीम हार गई होती तो ये मुद्दा कहीं भी नहीं उठता. इसके पीछे की वजह बड़ी साफ है. दुनिया भर में हॉकी को नियंत्रित करने वाली संस्था फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल हॉकी है. फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल हॉकी का एक खेल चैनल से करार है. अगर ये टूर्नामेंट उनकी ओर से आयोजित किया गया होता तो निश्चित तौर पर उसका प्रसारण हॉकी प्रेमियों को देखने को मिलता. जबकि एशिया कप इस फेडरेशन का टूर्नामेंट नहीं है. एशिया कप का आयोजन एशियन हॉकी फेडरेशन करती है. जिसका भारत में किसी भी खेल चैनल के साथ करार नहीं है. जब करार ही नहीं है तो मैच कहां से दिखाया जाएगा. लेकिन इसमें भारत को, भारतीय हॉकी के अधिकारियों को, हॉकी इंडिया को या राष्ट्रीय चैनल को कटघरे में खड़ा करना कहीं से भी जायज नहीं है. हाल ही में एक खेल चैनल के कर्ताधर्ता ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि चैनलों पर गॉल्फ या टेनिस जैसे टूर्नामेंट को दिखाने का कोई तर्क उनके पास नहीं है. उनका कहना था कि भारत में जितने लोग टीवी पर गॉल्फ देखते हैं उनके यहां तो जाकर डीवीडी पहुंचाई जा सकती है. ये एक कटाक्ष जरूर था लेकिन हालात की सच्चाई के काफी करीब था. कड़वी सच्चाई यही है कि जिस खेल के प्रसारण से फायदा नहीं है उसमें हाथ जलाने को कोई तैयार क्यों होगा? खेलों की लोकप्रियता और ‘रीच’ के लिहाज से ये स्थिति चिंताजनक है. इस बात का फैसला दुनिया भर में खेलों को संचालित करने वाली संस्थाओं को करना है कि वो किस तरह वो ‘मॉडल’ तैयार करेंगी जिससे असली खेलप्रेमियों को ‘एक्शन’ महरूम ना होना पड़े.