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इंदिरा फाइल्‍स समीक्षा: चीन से दुश्‍मनी में क्‍या थी इंदिरा की भूमिका, शास्‍त्री के अंतिम संस्‍कार पर भी भड़क गई थीं आयरन लेडी

भारतीय शहर पर इंदिरा के हुक्‍म से बमबारी... मारुति का मकड़जाल... बरुआ मॉडल... LTTE पर इंदिरा गांधी की कृपा की कहानी... इंदिरा गांधी का ऑपरेशन केरल... काउ पॉलिटिक्‍स... इमरजेंसी में बच्‍चन परिवार का इस्‍तेमाल... शास्‍त्री के साथ इंदिरा गांधी का ऐसा सलूक... ऐसे कुल 50 विषय हैं, जिन पर विष्‍णु शर्मा की किताब ‘इंदिरा फाइल्‍स’में बड़ी ही रोचक जानकारी दी गई. लेकिन किताब में सबसे पहले बात की गई है उत्‍तराधिकारी की. लेखक विष्‍णु शर्मा मानते हैं कि इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे पहला ताकतवर प्रतीक बनीं. इसी पर उन्‍होंने शुरुआत में ही प्रकाश डाला है.

इस विषय का शीर्षक रखा गया है- ‘लोकतंत्र ताक पर: यूं चुनी गईं उत्‍तराधिकारी.’ इस चैप्‍टर में सिर्फ इंदिरा गांधी ही नहीं, बल्कि जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने पर सवाल उठाए गए हैं. विष्‍णु शर्मा लिखते हैं, ‘पंडित नेहरू ने जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं, वे खुद भी जानते थे कि उनको लेकर गांधी ने जिद नहीं की होती, सरदार पटेल ही देश के पहले प्रधानमंत्री बनते. नेहरू को हमेशा लोकतांत्रिक परंपराओं के बड़े रखवाले के तौर पर पढ़ाया और बताया जाता है. ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि यह लेख लिखे जाने तक, आजाद भारत में अगर लोकतंत्र को किसी ने सबसे ज्‍यादा चोट पहुंचाई तो वह इंदिरा गांधी ही हैं, जिनकी परवरिश उन्‍हीं नेहरू ने की हो?’ 

इंदिरा को तैयार कर रहे हैं नेहरू 

किताब में बड़ा ही रोचक किस्‍सा है इंदिरा गांधी के उत्‍तराधिकारी बनने का. विष्‍णु शर्मा लिखते हैं, ‘1957 में कॉमनवेल्‍थ देशों की कॉन्‍फ्रेंस के लिए नेहरू अपने मंत्री मेनन को साथ लेकर गए. तब चर्चा जोरों पर थी कि नेहरू उन्‍हें अपना राजनीतिक वारिस बनाना चाहते हैं. लेकिन हिंदुस्‍तान टाइम्‍स में वीकली डायरी में दुर्गादास ने लिखा कि अपने वारिस के तौर पर बेटी इंदिरा गांधी को तैयार कर रहे हैं. नेहरू के दो सबसे करीबी मौलाना आजाद और गोविंद वल्‍लभ पंत ने दुर्गादास से इस बात की पुष्टि की थी. हालांकि, डायरी में उन्‍होंने इन दोनों का नाम नहीं लिखा था.’

शास्‍त्री के बारे में इंदिरा गांधी ने क्‍या विरोध किया  

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री का जब निधन हुआ तब उनका पूरा परिवार शोकाकुल था. विष्‍णु शर्मा लिखते हैं कि ऐसे समय में इंदिरा गांधी ने इस बात का विरोध किया कि लाल बहादुर शास्‍त्री का अंतिम संस्‍कार महात्‍मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की समाधि के पास यमुना किनारे न किया जाए. इंदिरा गांधी की मंशा जानकर कांग्रेसी विरोध करने निकल पड़े. वे मांग कर रहे थे कि लाल बहादुर शास्‍त्री का अंतिम संस्‍कार इलाहाबाद में किया जाए.  

राजेंद्र प्रसाद तक को झुकने पर मजबूर किया 

प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी के नाम 356 का सबसे ज्‍यादा बार इस्‍तेमाल करने का रिकॉर्ड है. विष्‍णु शर्मा लिखते हैं कि इसकी शुरुआत जब हुई तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी भी नहीं थीं. ऑपरेशन केरल से इसकी शुरुआत होती है. इंदिरा गांधी ने न केवल देश के प्रधानमंत्री बल्कि राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था, जो कभी नेहरू के सामने भी नहीं झुके थे.     

सरकार नेहरू की और फैसले इंदिरा गांधी के 

किताब में एक विषय यह भी आया कि नेहरू सरकार के दौरान इंदिरा गांधी फैसले लिया करती थीं. विष्‍णु शर्मा लिखते हैं कि इंदिरा गांधी ने अपनी एक सहेली से दलाई लामा को शरण देने के नेहरू के फैसले पर चर्चा की थी. नेहरू उनको शरण देने में हिचकिचा रहे थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने ही उनको मनाया. भारत के इसी फैसले के बाद से चीन के साथ दुश्‍मनी का दौर शुरू हुआ.        

किताब में ऐसे बहुत से किस्‍से हैं, जो कि तथ्‍यों के साथ एकदम स्‍पष्‍ट शब्‍दों में और किसी बहुत बड़ी भूमिका के लिखे गए हैं. विभिन्‍न घटनाओं के विवरण बेहद सरल शब्‍दों में लिखे गए हैं. कुल मिलाकर इंदिरा गांधी के वर्किंग स्‍टाइल से जुड़े किस्‍सों के मामले में किताब बेहद उम्‍दा है और रिसर्च भी अच्‍छी की गई है.

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है]

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