पुरानी इबारत पढ़ने की कोशिश, 8 करोड़ रुपये के ईनाम का एलान और एक अबूझ पहेली

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने हाल में ये घोषणा की कि जो भी सिंधु लिपि को पूरी तरह पढ़ लेगा उसे 10 लाख डॉलर (आज के हिसाब से 8 करोड़ रुपये) का ईनाम दिया जाएगा. सिंधु लिपि को पढ़ने का प्रयास तो जब से इसके बारे में पता चला है तब से ही किया जा रहा है, लेकिन अभी तक ऐसी घोषणा किसी ने नहीं की थी. वह सिंधु सभ्यता की खेाज के शताब्दी समारोह में बोल रहे थे. आज से 100 साल पहले आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (ASI) के तत्कालीन महानिदेशक जॉन मार्शल ने शोध पत्र प्रकाशित कर विश्व को सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में जानकारी दी थी. उन्होने सिंधु सभ्यता को द्रविण सभ्यता माना था. उसी के बाद से विद्वानों में इस पर बहस चल रही है और इस लिपि को पढ़ने की कोशिशें की जा रही हैं.
जब हड़प्पा के उत्खनन से सिंधु सभ्यता के बारे में पता चला तो वहां मिली कलाकृतियों, सीलों और अन्य अवशेषों के साथ उन पर कुछ विचित्र आकृतियां भी उत्कीर्ण मिलीं. ये आकृतियां ताम्र, हड्डी, पत्थर, सोने-चांदी के सामान के साथ टेराकोटा पर अंकित हैं, जो वर्तन, आभूषण या सील के रूप में हैं. जिन सीलों पर आकृतियां मिली हैं, उनमें कई पशुओं की भी आकृति हैं. माना गया कि सिंधुकाल के लोग इनके माध्यम से कुछ कहना चाहते हैं. इसे सिंधु लिपि कहा गया. लेकिन इनके माध्यम से क्या कहा गया है, यह अभी तक पता नहीं चल सका है. सिंधुलिपि से जुड़ी पुरातात्विक सामग्री पश्चिमोत्तर से लेकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु तक से मिले हैं.
सिंधु लिपि को पढ़ने के कई प्रयास किए गए, लेकिन अभी तक किसी को मान्य सफलता नहीं मिली. कुछ साल पहले रूस के एक लिपि विज्ञानी ने इसे पढ़ने का दावा किया था लेकिन यह दावा, दावा मात्र ही रह गया. अमूमन दो सौ लोगों ने ऐसे प्रयास किए, लेकिन पूरी सफलता किसी को नहीं मिली. ब्राह्मी लिपि के जानकार कहते हैं कि सिंधु लिपि के कुछ अक्षर ब्राह्मी लिपि से मिलते जुलते हैं. ऐसे आठ अक्षरों की पहचान करने का दावा किया गया है, जो ब्राह्मी से मिलते हैं लेकिन अन्य अक्षरों की पहचान नहीं हो पाई है. सिंधु कालीन कलाकृतियों पर जो चिह्न मिले हैं, उनमें कुछ आकृतियां ब्राह्मी के कुछ अक्षरों से मिलती हैं.
इनमें क, ट, त,थ, र आदि हैं. बौद्ध साहित्य के विद्वान और अशोक के अभिलेखों के विश्लेषक प्रो. राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि ब्राह्मी (धम्मलिपि) सिंधु लिपि से ही विकसित हुई है. इसमें कई तरह से अपनी बात व्यक्त करने की कोशिश की गई है. यह चित्रलिपि, भावलिपि और ध्वनिलिपि का अद्भुत मिश्रण है. लेकिन जब तक सभी चिह्नों को समझ नहीं लिया जाता, तब तक यह कहना कठिन होगा कि ये अक्षर हैं कि कोई अन्य संकेत चिह्न.
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सिंधु लिपि के बाद लेखन कला में कई सौ साल तक अंधकार युग की तरह है और उसके बाद सीधे ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियां ही देखने को मिलती हैं. सिंधुलिपि की उत्तराधिकारी और वंशज कोई लिपि थी तो उसके प्रमाण और रूप अभी तक तो नहीं मिले हैं. कोई द्विभाषी अभिलेख भी नहीं मिले हैं, जिनसे मदद मिल सके. हो सकता हो आगे चलकर मिलें और इसे भी पढ़ा जा सके, तब हम सिंधु काल के लोगों के मन के अंदर जा सकेंगे कि वे इनके जरिये क्या कहना चाहते हैं. ठीक उसी तरह जैसे 1837 तक ब्राह्मी लिपि को भी नहीं पढ़ा जा सका था.
उस समय पूरे देश में इसे जानने वाला कोई नहीं था. जेम्स प्रिंसेप नामक एक अधिकारी ने इसे पढ़ने में सफलता पाई. ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद सिंधु लिपि के बारे में हमें करनी चाहिए. सिंधु लिपि के लगभग चार सौ की आकृतियों के नमूने मिले हैं. सिंधु लिपि की आकृतियां या अक्षर भारत सहित मेसेापोटामिया तक से मिले हैं. अभी तक चार हजार के आसपास ऐसी चीजें मिली हैं जिनपर ये आकृतियां अंकित हैं. लेकिन इसे पढ़ने में जो दिक्कत है, वह यह है कि किसी भी कलाकृति पर चार पांच आकृतियों से अधिक नहीं मिलीं.
कुछ आकृतियां बार बार-दिखती हैं तो कुछ एक ही बार. कुछ बदले रूप में भी दिखती हैं. ब्राह्मी लिपि की तरह कोई बड़ा अभिलेख नहीं मिला है. सबसे बड़ी कठिनाई यह भी है कि अभी तक यह भी नहीं पता चला है कि सिंधु कालीन लोग कौन सी भाषा बोलते थे. यदि यह पता चल जाता तो लिपि पढ़ने में आसानी होती जैसे अशोक के अभिलेखों के साथ हुआ, क्योंकि यह पहले से ज्ञात था कि अशोक के समय लोग प्राकृत भाषा बोलते थे. इसी से उसने इसी भाषा में अभिलेख लिखाए, जिससे उसकी बात आमजन तक पहुंच सके. सिंधु सभ्यता के लोगों की भाषा के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है. चार-पांच हजार वर्ष पहले के लोगों द्ववारा बोली जाने वाली भाषा के बारे में अनुमान लगाना भी कठिन है.
सिंधु लिपि को द्रविण भाषा की मां माना जा रहा है. कई भाषाविदों का मानना है कि सिंधुलिपि द्राविण लिपि है. हालांकि, दक्षिण सहित पूरे देश में जो भी लिपियां हैं, वे ब्राह्मी से ही निकली मानी जाती हैं और उनके अक्षरों का मूल ब्राह्मी में देखा जा सकता है. तमिल लोग सिंधु लिपि को तमिल की मूल लिपि मानते हैं. लगता है कि सिंधु लिपि ही कालक्रम में बदलती हुई ब्राह्मी, देवनागरी और द्रविण लिपियों में विकसित हुई.
हाल में 5 जनवरी 2025 को एक कार्यक्रम में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने सिंधु लिपि को पढ़ने वाले को 10 लाख डॉलर का पुरस्कार देने की घोषण की है. कुछ विद्वान कहते हैं कि लिपि के जो नमूने मिले हैं, उनमें कुछ वाक्यांश भी हैं. लगभग दो दशक पहले तमिलनाडु में मिली एक कुल्हाड़ी पर सिंधु लिपि की तरह आकृतियां भी मिलीं, जिससे लगता है कि सिंधुलिपि का विस्तार तमिलनाड़ु तक था. हो सकता है कि अभी ऐसी और कलाकृतियां तथा अन्य सामग्री मिले जिस पर सिंधु लिपि की आकृतियां अंकित हों.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]


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