महंगाई के मुद्दे से कांग्रेस को मिल पाएगी सियासी ऑक्सीजन ?
महंगाई के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए आज (31 मार्च) कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली से लेकर देशभर में सड़कों पर उतरकर हल्ला बोला. वैसे लोकतंत्र में बढ़ती हुई महंगाई एक ऐसा मुद्दा है, जो विपक्ष के लिए किसी रामबाण से कम नहीं है क्योंकि इसका असर हर आम से लेकर खास इंसान पर होता है. महंगाई को डायन बताने वाली फिल्म भी बन चुकी है, लेकिन यही डायन विपक्षी दलों के लिये सत्ता में आने का जरिया भी बनती रही है.
दस साल तक केंद्र में रही मनमोहन सिंह सरकार के दौरान शायद ही ऐसा कोई महीना खाली गया होगा, जब उस वक़्त की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने सड़कों पर उतरकर विरोध-प्रदर्शन करते हुए सरकार की नाक में दम न किया हो. लिहाज़ा, कांग्रेस को विपक्ष की असरदार भूमिका निभाने और लोगों की सहानुभूति जुटाने के लिए बीजेपी के उन दस सालों के तौर तरीकों से सबक लेने की जरूरत है. अगर कांग्रेस अगले दो साल तक बाकी सारे मुद्दे ताक पर रखते हुए सिर्फ महंगाई के मुद्दे पर ही इसी तरह सरकार को घेरती रहे, तो लोकसभा चुनाव आने तक उसे पर्याप्त मात्रा में सियासी ऑक्सीजन मिल सकती है. लेकिन पार्टी नेता इसे पूरी ईमानदारी से निभाएं, तभी ये संभव है.
सरकार का तेल कंपनियों पर नियंत्रण
बेशक कांग्रेस के इस आरोप को कोई नकार नहीं सकता कि पिछले दस दिनों से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में जिस तरह से लगातार बढ़ोतरी हो रही है, उसका असर हर चीज पर पड़ रहा है और लोगों को चौतरफा महंगाई की झेलनी पड़ रही है. देश की तेल कंपनियां पेट्रोल, डीजल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के हिसाब से तय करती हैं. लेकिन हैरानी तब होती है,जब कच्चे तेल के दाम गिरते हैं, तब भी ऑयल कंपनियों का गठजोड़ घरेलू बाजार में इसकी कीमतें बढ़ाने के लिए बेलगाम हो जाता है. इसलिये कि तेल कंपनियों पर सरकार का नियंत्रण नहीं है.
लेकिन इस क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि ऐसा नहीं है है कि तेल कंपनियों पर सरकार का बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है. सरकार अपनी सुविधा और सियासी फायदे के मुताबिक इन कंपनियों के कान मरोड़ती है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने से पहले ही तेल कंपनियों को केंद्र की तरफ से ये हिदायत दे दी गई थी कि चुनाव ख़त्म होने तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बढ़ोतरी न की जाए.
यही वजह रही कि 24 फरवरी को रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में जब कच्चे तेल के दाम 140 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचे थे, तब भी देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत एक पैसे की भी बढ़ोतरी नहीं हुई. क्योंकि तेल कंपनियों पर सरकार का 'चुनावी डंडा' था. लगातार 137 दिनों तक कीमतें स्थिर रहीं, लेकिन अब 22 से 31 मार्च तक के इन 10 दिनों में नौ बार तेल की कीमतें बढ़ाई गई हैं.
रोजाना कुछ पैसे दाम बढ़ाकर लोगों से चालाकी
हालांकि तेल कंपनियां भी बेहद चालाक हैं, जिन्होंने लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए ये तरीका निकाला है कि सीधे 8-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करने की बजाय हर दिन कुछ पैसे बढ़ाये जाएं. लेकिन अगर हिसाब लगाएं तो दिल्ली में ही 22 मार्च से लेकर आज तक पेट्रोल-डीजल की कीमत में 6 रुपये 40 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है. जानकारों का कहना है कि पांच राज्यों के चुनाव के दौरान तेल कंपनियों को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करने के लिए 10 से 12 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी का टारगेट रखा गया है. उस लिहाज से देखें, तो आने वाले दिनों में भी दामों में ये बढ़ोतरी जारी रहने वाली है.
लेकिन शुक्रवार यानी 1 अप्रैल से एक और दोहरी मार ये भी पड़ने वाली है कि सीएनजी और पीएनजी भी महंगी हो जायेगी, क्योंकि घरेलू गैस के दामों में दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी की गई है. घरेलू प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़कर 6.10 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू हो गई है, जो कि फिलहाल 2.9 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू थी. नई कीमत 1 अप्रैल से अगले छह महीने के लिए लागू रहेगी. गैस के दाम बढ़ने से अप्रैल महीने से रसोई में खाना पकाने से लेकर बिजली और ट्रांसपोर्ट पर होने वाले खर्च बढ़ने वाला है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्राकृतिक गैस ( Natural Gas) के दामों में भारी बढ़ोतरी के चलते ही सरकार ने गैस की कीमतों को बढ़ाने का पैसला लिया है. लेकिन इससे महंगाई और बेकाबू हो जायेगी.
सीएनजी के दाम में भी हो सकती है बढ़ोतरी
बताया गया है कि कोविड महामारी के बाद गैस की मांग बढ़ी है, लेकिन उस अनुपात में उत्पादन नहीं बढ़ा है जिसके चलते गैस के दाम बढ़े हैं. घरेलू इंडस्ट्री इंम्पोर्टेड एलएनजी के लिए वैसे ही ज्यादा कीमत अदा कर रही है, जिसकी कीमत क्रूड ऑयल से जुड़ी है. महंगे एलएनजी ने रिफाइनरी और पावर कंपनियों को परेशान कर रखा है. सरकार हर छह महीने की अवधि में अप्रैल और अक्टूबर महीने में गैस के दामों की समीक्षा करती है. अगर प्राकृतिक गैस का दाम एक डॉलर बढ़ता है तो सीएनजी की कीमत 4.5 रुपये प्रति किलो तक बढ़ जाती है. इस हिसाब से सीएनजी के दामों में 15 रुपये प्रति किलो तक की बढ़ोतरी हो सकती है. तो बिजली से लेकर घरों में सप्लाई की जाने वाली पीएनजी के दाम भी बढ़ जायेंगे और सरकार पर भी फर्टिलाइजर सब्सिडी बिल के खर्च का बोझ बढ़ जाएगा.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)