कब तक सताता रहेगा 'महंगाई' का ये झटका ?
देश में कहीं हनुमान चालीसा का पाठ करने का शोर है, तो कहीं ये झगड़ा छिड़ा हुआ है कि मंदिर तोड़कर कहां मस्जिद बनाई गई. दिन भर इससे जुड़ी खबरें देखते हुए लोगों का ध्यान इस तरफ शायद गया ही नहीं कि महंगाई फिर से डायन का रुप धारण करके उनकी जेब पर खुलेआम डाका डाल रही है. बढ़ती हुई महंगाई से सिर्फ गरीब वर्ग ही नहीं पिस रहा है बल्कि मध्यम वर्ग पर भी उसकी ऐसी जबरदस्त मार पड़ रही है, जिसका रोना अगर वह रोये भी तो आखिर किसके आगे.
सरकार महंगाई पर काबू पाने का दावा तो करती है लेकिन उसकी सारी कोशिश बेकार साबित होती दिख रही है. पिछले आठ साल में खुदरा महंगाई के उच्चतम स्तर तक पहुंच जाने के बाद अब थोक महंगाई ने भी सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. मंगलवार को सरकार ने जो आंकड़े जारी किये हैं, उसके मुताबिक पिछले महीने यानी अप्रैल में थोक महंगाई दर 15.08 फीसदी रही है, जो एक नया रिकॉर्ड है. जबकि इससे बीते महीने मार्च में यह 14.55 फीसदी पर थी.
कोरोना महामारी का असर लगभग खत्म होने और तमाम बंदिशों को हटा लेने के बाद सरकार ने दावा किया था कि अब अर्थव्यवस्था पहले की तरह ही पटरी पर लौट आएगी और महंगाई पर काबू पाना आसान हो जायेगा. लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा नहीं हुआ और तमाम अनुमान धरे के धरे ही रह गए. थोक महंगाई दर का पिछले पांच महीने का ये उच्चतम स्तर है. जनवरी 2022 में महंगाई दर 12.96 फीसदी रही थी. महंगाई दर बीते एक सालों से ज्यादा समय से लगातार दहाई के आंकड़े में है. एक साल पहले थोक महंगाई दर 10.74 फीसदी पर था.
सरकार का तर्क है कि तेल और ईंधन की ऊँची कीमतों के चलते अप्रैल में थोक महंगाई की दर में बढ़ोतरी हुई है और इसकी एक बड़ी वजह रुस-यूक्रेन युद्ध को माना जा रहा है. वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक अप्रैल महीने में महंगाई दर की मुख्य वजह पेट्रोलियम नेचुरल गैस, मिनरल ऑयल, बेसिक मेटल्स की कीमतों में तेजी है जो रूस यूक्रेन युद्ध के कारण ग्लोबल सप्लाई चेन में पड़े व्यवधान से पैदा हुआ है.
महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाती हैं, लेकिन ये दोधारी तलवार की तरह है और इससे अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने का ख़तरा भी होता है.इसीलिये कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि फौरी तौर पर महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार को पेट्रोल और डीज़ल पर अपनी एक्साइज ड्यूटी कुछ कम करनी होगी. अगर वह 8-10 रुपये प्रति लीटर भी कम करती है,तो इससे काफी फ़र्क पड़ेगा.जनता को तो राहत मिलेगी ही,थोक व खुदरा महंगाई दर भी काफी नीचे आ जायेगी.
विपक्षी दल भी पिछले साल भर से यही चिल्ला रहे हैं कि सरकार अपनी तिजोरी भरने का लालच छोड़कर पेट्रोल-डीजल पर वसूली जा रही ड्यूटी कम करे.लेकिन केंद्र उल्टे राज्यों से कह रहा है कि वे अपने यहां वैट की दरें कम करें.दोनों की इस लड़ाई में आम आदमी पिस रहा है.उसे महंगाई के करंट का अहसास न हो,इसलिए लाउड स्पीकर पर अजान बनाम हनुमान चालीसा, ज्ञानवापी मस्जिद बनाम मंदिर जैसे मुद्दे हावी हैं और अगर इनसे भी बात न बने, तो लोगों को 'कश्मीर फाइल्स' फिल्म देखने के लिए कहिये, ताकि उन्हें ये अहसास न हो कि इस देश में 'महंगाई' नाम की कोई बला भी है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)