टीम की हार और जीत हर खिलाड़ी की होती है. लेकिन कई बार ऐसा होता है जब कुछ खिलाड़ियों का खराब प्रदर्शन या कप्तान की गलत रणनीति के चलते साथी खिलाड़ियों का अच्छा नेपथ्य में चला जाता है. इस विश्व कप में टीम इंडिया में यही देखने को मिला. भारतीय टीम के बल्लेबाज़ों की नाकामी की वजह से भारतीय गेंदबाज़ों का प्रदर्शन बेकार चला गया.


विश्व कप के इतिहास में ये पहला मौक़ा था जब भारतीय बल्लेबाज़ों के मुक़ाबले भारतीय गेंदबाज़ी भी बराबरी की ताक़तवर थी. बल्कि कुछ मामलों में तो भारतीय गेंदबाज़ी यूनिट ज्यादा संतुलित थी. बावजूद इसके सेमीफाइनल में 18 रनों की हार के साथ टीम इंडिया टूर्नामेंट से बाहर हो गई. अब अगले कुछ महीनों में टीम इंडिया चाहे जितने वनडे मैच जीत ले, चाहे आईसीसी रैंकिंग्स में पहली पायदान पर आ जाए लेकिन विश्व कप के लिए चार साल का इंतजार करना ही पड़ेगा. आशंका इस बात की है कि क्या चार साल बाद एक बार फिर ऐसी मज़बूत गेंदबाज़ी यूनिट तैयार हो पाएगी ? इस सवाल का जवाब अभी कोई नहीं दे सकता लेकिन ये बात हर क्रिकेट फ़ैन को समझ आ रही है कि गेंदबाज़ों की मेहनत पर फ़िलहाल पानी फिर चुका है.


पूरे टूर्नामेंट में शानदार रही भारतीय गेंदबाजी


दरअसल, विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में जो कई हफ़्ते तक चलता है जीत की पहली ज़रूरत होती है- प्रदर्शन में निरंतरता. ये निरंतरता इस विश्व कप में बल्लेबाज़ों के मुक़ाबले गेंदबाज़ों के प्रदर्शन में कहीं ज्यादा और कहीं बेहतर थी. आप विश्वकप में भारत के पहले मैच से लेकर सेमीफाइनल तक के सफर को याद कर लीजिए. भारतीय गेंदबाजों ने मज़बूत दक्षिण अफ़्रीका को सिर्फ 227 रनों पर समेट दिया. इन छोटे से लक्ष्य को हासिल करने में भी बल्लेबाजों को संघर्ष करना पड़ा.


बल्लेबाजों के पक्ष में तर्क ये दिया गया कि पहले मैच में भारतीय टीम हर हालत में जीत हासिल करना चाहती थी इसलिए बल्लेबाज संभल कर खेले. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 36 रनों की जीत में गेंदबाजों का योगदान अहम रहा. पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम ने स्कोरबोर्ड पर कम से कम 20 रन कम जोड़े थे लेकिन भारतीय गेंदबाजों ने शानदार गेंदबाजी की बदौलत पाकिस्तानी बल्लेबाजों को मैच में टिकने ही नहीं दिया. अफगानिस्तान के खिलाफ मैच को याद कीजिए. भारतीय बल्लेबाज स्कोरबोर्ड पर सिर्फ 224 रन जोड़ पाए थे.


अफगानिस्तान के बल्लेबाजों ने शानदार संघर्ष किया. आखिरी ओवर में अगर मोहम्मद शमी ने हैट्रिक ना ली होती तो बाजी पलट सकती थी. बुमराह ने भी इस मैच में शानदार गेंदबाजी की थी. इसी विश्व कप में वेस्टइंडीज की टीम को भारतीय गेंदबाजों ने 143 रनों पर समेट दिया. इंग्लैंड के खिलाफ मैच को भी याद कीजिए. भारतीय टीम वो मैच हार गई थी. लेकिन इसका ठीकरा आप गेंदबाजों के सर नहीं फोड़ सकते हैं. उस मैच में इंग्लैंड की टीम एक वक्त पर 400 रनों के आस पास पहुंचती दिख रही थी. 30 ओवर के आस पास इंग्लैंड ने 200 रनों का स्कोर पार कर लिया था और उसका सिर्फ एक विकेट गिरा था. लेकिन मिडिल ओवरों ने भारतीय गेंदबाजों ने समझदारी से गेंदबाजी कर इंग्लैंड को 337 रनों पर रोक दिया. इंग्लैंड की टीम 26वें ओवर से 35 ओवर के बीच सिर्फ 35-40 रन ही बना पाई थी. अगले मैच में बांग्लादेश ने भी भारतीय फैंस की सांसे रोक दी थीं. गेंदबाजों ने एक बार फिर अपनी लाइन-लेंथ को काबू में रखा और टीम इंडिया को जीत दिलाई.


सेमीफाइनल में भी गेंदबाजों ने रोल निभाया


अब सेमीफाइनल की भी बात कर लेते हैं. सेमीफाइनल में भारतीय गेंदबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया. भारतीय तेज गेंदबाजों ने मैच की शुरु से ही न्यूज़ीलैंड के बल्लेबाजों को हाथ खोलने का मौका नहीं दिया. पहले दो ओवर मेडन गए. इसके बाद बुमराह ने मार्टिन गप्टिल को पवेलियन भी भेज दिया. न्यूज़ीलैंड के किसी भी टॉप ऑर्डर बल्लेबाज ने खुलकर बल्लेबाजी नहीं की. शुरुआत के पांचों बल्लेबाजों में से किसी का स्ट्राइक रेट 82 से ऊपर नहीं गया. यही वजह थी कीवियों के स्कोरबोर्ड पर 50 ओवर में 239 रन ही जुड़े. ये अलग बात है कि न्यूज़ीलैंड के गेंदबाजों ने भारतीय बल्लेबाजों के लिए यही 240 रन नामुमकिन बना दिए.