'बाहुबली: द बिगनिंग' देख कर निकलने के बाद से ही 'बाहुबली 2' का इंतजार शुरू हो गया था. फिल्म ने अपनी सेट की भव्यता, सिनेमाटोग्राफी, एक्शन औऱ सस्पेंस से दिल जीत लिया था. फिल्म ने जिस मोड़ पर खत्म हुई थी वहां वो ये सवाल छोड़ कर गयी थी ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा’. यकीन मानिए ये सवाल कभी बातचीत में तो कभी मजाक के तौर पर कभी न कभी सामने आता रहा. दूसरों की तरह इस फिल्म की रिलीज का मुझे भी बेसब्री से इंतजार था... सिर्फ वजह अलग थी. मेरी दिलचस्पी सिर्फ ये नहीं जानने में नही थी कि आखिर कटप्पना ने बाहुबली को क्यों मारा. उत्सुकता इस बात की थी कि जिस सवाल का जबाव सब जानना चाहते हैं उसे इस फिल्म के डायरेक्टर एस. एस. राजामौली ने पर्दे पर कैसे उतारा है.


शुक्रवार को पहला शो देखना तय किया. लोगों के उत्साह का अंदाजा तो था लेकिन इसका बिल्कुल भी नहीं कि दो टिकट लेने में मुझे इतनी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा. आलम ये था कि गुरूवार सुबह 9 बजे ही टिकट बुक करने के लिए मुझे काफी मशक्कत करनी पडी. रिव्यू के लिए फिल्मों का फर्स्ट शो तो मैं हमेशा ही देखती हूं लेकिन टिकट के लिए इतनी मश्क्कत पहले नहीं करनी पड़ी. और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला था सिनेमाहॉल पहुंचने के बाद देखा नज़ारा. फर्स्ट शो में मैंने पहले कभी ऐसा माहौल नहीं देखा था. इस फिल्म का क्रेज लोगों पर ऐसा है कि बच्चें हों, नौजवान हों या फिर बूढ़े सभी उतने ही उत्सुक हैं जितने हम हैं. इससे पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि तमिल फिल्म को हिंदी में देखने के लिए लोग इतने बेसब्र थे. सुबह-सुबह इतनी भीड़ वो भी उस फिल्म के लिए जिसमें बॉलीवुड का कोई भी स्टार नहीं है.


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बॉलीवुड के बड़े सुपरस्टार्स की बात करें तो सलमान खान की फिल्म 'दबंग' हो या 'बजरंगी भाईजान', आमिर खान की 'थ्री इडियट्स' या फिर 'दंगल', शाहरूख खान की 'चेन्नई एक्सप्रेस' हो या फिर हैप्पी न्यू ईयर' किसी भी फिल्म के फर्स्ट शो में वो नज़ारा नहीं दिखा जो 'बाहुबली 2' के दौरान हुआ. आपने भी ये महसूस किया होगा कि हमेशा ही फिल्म शुरू होने के आधे घंटे तक लोगों का आना जाना लगा रहता है...लेकिन बाहुबली- द कंक्लूजन के शो में ऐसा नहीं था. समय से पहले लोग अपनी सीट पर मौजूद थे. फिल्म शुरू होते ही उसका जादू कुछ इस कदर हावी हुआ का उसका असर इंटरवल में भी नज़र आया. इंटरवल में भी इक्का-दुक्का लोग ही सीटे छोड़कर बाहर गए. दिलचस्प ये भी था कि पूरे शो के दौरान किसी ने ना तो फोन पर बात की और ना ही अपने रिंगटोन से दूसरों को डिस्टर्ब किया. जो अक्सर फिल्म देखने के दौरान देखने को मिल जाता है.


आमतौर पर मल्टीप्लेक्स में तालियों और सीटियों की आवाज कम ही सुनाई देती है. लेकिन बाहुबली में माहौल उलट था. फिल्म में जब माहिष्मती के राजसिंहासन पर बैठने के बाद बाहुबली कहता है- मेरा वचन ही मेरा शासन है.... तो लोग ना सिर्फ खड़े होते हैं और तालियां बजाजे हैं बल्कि मल्टीप्लेक्स के एलीट मिजाज से अलग सीटियों की आवाज भी गूंजती है. इस फिल्म में बाहुबली की एंट्री, देवसेना से उनका पहली नज़र में प्यार या फिर देवसेना के लिए राजसिंहासन को बिना सोचे छोड़़ देने का सीन हो तालियां लगातार बज रही थीं... रोमांटिक सीन में क्या पूछना... सीटियों की भरमार. फिल्म में बाहुबली ने देवसेना से आंखों ही आंखों में रोमांस किया और यकीन मानिए अगर आप भी देखेंगे तो सीटी बजाए बिना तो नहीं रह पाएंगे...



मैंने ये फिल्म एक बार नहीं दो बार देखी...पहली मैंने रिव्यू लिखने के लिए देखी तो दूसरी मां को दिखाने के लिए...एक सुबह 9 बजे का शो और दूसरा शाम 6 बजे... दोनों जगह नज़ारा एक सा ही था... उत्साह में कोई कमी नहीं... कभी लोग हंसते दिखे, तो कभी रोते दिखे...फिल्म खत्म हो जाने, सिनेमाहॉल की लाइट जल जाने के बाद भी लोग अपनी सीट छोड़ने का नाम नहीं ले रहे थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि शायद अभी कुछ देखने को मिलने वाला है. ये नज़ारा मुझे 'बाहुबली 2' देखने के दौरान देखने को मिला जो कि करीब 3 घंटे लंबी फिल्म है. फिल्म कितनी शानदार है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते .


फिल्म की कहानी नई नहीं है लेकिन जिस भव्यता से उसे पेश किया गया है वो कमाल है. बाहुबली की इस कहानी में थोड़ा ह्यूमर है, थोड़ा रोमांस है और एक्शन तो भरपूर है... युद्ध के सीन्स को जिस तरीके से कोरियोग्राफ किया गया है वो आंखे फाड़कर देखने वाला है... हाल में आस-पास तो मैंने कई लोगों से बहुत बार 'ओ तेरी... ओ तेरी' भी सुना.वैसे तो इस फिल्म में हर एक सीन, हर एक फ्रेम ऐसा है जिसे कोई मिस नहीं करना चाहेगा. इस फिल्म में प्रभाष तो अपनी एक्टिंग से सबका दिल पहले भी जीत चुके हैं लेकिन अनुष्का शेट्टी और राना दग्गुबत्ती ने मुझे सबसे ज्यादा इंप्रेस किया. बात चाहें बॉडी ट्रांसफॉर्मेंशन की हो या फिर एक्टिंग की...राना कहीं भी प्रभाष कहीं कमतर नहीं हैं इस फिल्म में...अनुष्का शेट्टी बेहतरन अदाकारा तो हैं ही साथ ही इस फिल्म में उन्हें देखकर आप उनकी एक्टिंग और खूबसूरत के भी कायल हो जाएंगे. यहां पढ़ें- इस फिल्म का रिव्यू



डायरेक्टर राजामौली की खासियत ये है कि इसे देखते वक्त आपको पिछली फिल्म देखने की कमी महसूस नहीं होती. इसकी कहानी बिल्कुल नई है और उन्होंने इन दोनों कहानियों को जोड़ा भी इतनी खूबसूरत से है कि कोई कन्फ्यूजन नहीं होती. मेरी मां जिन्होंने बाहुबली 1 नहीं देखी है उन्हें इस फिल्म को देखकर बिल्कुल भी नहीं लगा कि इसे देखने से पहले बाहुबली 1 देखना बहुत जरूरी है. हां, देखने के बाद कुछ से बात करने पर बहुत ही मिले जुले रिएक्शन आए. किसी का कहना था कि युद्ध के कुछ सीन 'बाहुबली 1' में ज्यादा अच्छे थे तो कुछ लोगों को देवसेना और बाहुबली की जोड़ी कमाल की लगी.


सिनेमाहॉल से निकलने के बाद इसका फिल्म का असर दिलो दिमाग पर छाया रहता है. बॉलीवुड डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा ने बिल्कुल सही लिखा है कि इस फिल्म ने ऐसा बेंच मार्क सेट किया है कि अब भारतीय सिनेमा भी अब BB (Before Bahubali) और AB (After Bahubali) में बंट जाएगा. इस फिल्म में जैसी भव्यता दिखी है वो अब तक भारतीय सिनेमा में पहले कभी नहीं देखी गई.


Twitter- @rekhatripathi


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