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अंतरिम बजट 2024-25 : अधूरी आस या भविष्य का संकेत

अप्रैल में आम चुनावों को देखते हुए ये तो पहले से ही तय था कि एनडीए सरकार के 1 फरवरी को पेश हुए अंतरिम बजट में कुछ खास नहीं होगा. वैसे देखें तो बाज़ार को उम्मीद थी कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण घरेलू खपत को बाढ़ावा देने के लिए बजट में कदम उठाएंगी क्योंकि वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में प्राइवेट फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर लगभग आधी होकर 3.13 फीसदी हो गई है, जो पहली तिमाही में 5.97 फीसदी थी. प्राइवेट फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर के ज़रिए टीवी, फ्रिज और कार के अलावा दैनिक इस्तेमाल की वस्तुओं तक उपभोक्ताओं द्वारा किए गए कुल खर्च को मापा जाता है.

सरकार के सामने ये आंकडा भी था कि दिसंबर 2023 में आठ इंडस्ट्री को कोर सेक्टर (कोयला, कच्चा तेल, प्राकतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली) की ग्रोथ धीमी होकर 3.8 फीसदी रह गई है, जो कि पिछले 14 महीने के सबसे निचला स्तर है. एक साल पहले समान अवधि में ये आंकडा 8.3 फीसदी था. साल 2023-24 में अप्रैल-दिसंबर के दौरान इन आठ क्षेत्रों की वृद्धी सालाना आधार पर 8.1 फीसदी पर स्थिर रही है.

इन सबके बावजूद सरकार ने ना तो चुनावों को देखते हुए लोकलुभावन घोषणाएं की और न ही तुरंत की आग बुझाने जैसा अल्पावधि का कोई लीपापोती उपाय. देश की अर्थव्यवस्था और विकास के लिए दूरगामी सोच को लेकर चल रही बीजेपी ने वो बातें अंतरिम बजट में रखी हैं जिनसे आने वाले समय में सरकार की प्राथमिकता झलकती है. एक नज़र डालते हैं अंतरिम बजट के प्रमुख बिंदुओ पर..   

    • विकास के लिए व्‍यय में 11.1 प्रतिशत की वृद्धि। कुल 11 लाख 11 हज़ार 111 करोड़ रुपये निर्धारित.
    • टेक्नोलॉजी को अपनाने वाले युवाओं के लिए 50 वर्षीय ब्याज मुक्त लोन के जरिए एक लाख करोड़ रुपए के फंड की व्यवस्था.  
    • छत पर सौर प्रणाली लगाने से एक करोड़ परिवारों को प्रत्येक महीने 300 यूनिट तक निशुल्क बिजली.
    • ई-वाहनों के विनिर्माण और चार्जिंग अवसंरचना को सहायता और ई-वाहन इकोसिस्टम का विस्तार और मज़बूतीकरण. 
    • सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क के लिए अधिक से अधिक संख्या में ई-बसों के इस्तेमाल को, पेमेंट सिक्योरिटी के जरिए बढ़ावा.
    • ज्यादा मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए एक कमेटी का गठन.
    • प्रधानमंत्री आवास योजना में अगले पांच सालों में दो करोड़ और मकानों का निर्माण.
    • जलकृषि उत्पादकता को 3 टन से बढ़ाकर 5 टन किए जाने का लक्ष्य.
    • 'लखपति दीदी' लक्ष्य को 2 करोड़ से बढ़ाकर 3 करोड़ करने का निर्णय.
    • प्रधानमंत्री गति शक्ति के अंतर्गत पहचान किए गए तीन प्रमुख आर्थिक रेल गलियारों की की शुरुवात। ये तीन गलियारे हैं - (1) ऊर्जा, खनिज और सीमेंट गलियारा, (2) पोर्ट संपर्क गलियारा और (3) अधिक यातायात वाला गलियारा.
    • यात्रियों की सुविधा, आराम और सुरक्षा बढ़ाने के लिए 40,000 सामान्य रेल डिब्बों को “वंदे भारत” मानकों के अनुरूप परिवर्तित करना.
    • मौजूदा हवाई अड्डों का विस्तार और नये हवाई अड्डों का विकास कार्य तीव्र गति से जारी रहेगा.
    • परिवहन के लिए CNG और घरेलू उपयोग के लिए PNG में कम्प्रेस्ड बायोगैस के मिश्रण को अनिवार्य करना.
    • हरित विकास को बढ़ावा देने के लिए जैव-विनिर्माण और बायो-फाउंड्री की नई योजना  की शुरूआत.
    • घरेलू पर्यटन को मजबूती देने के लिए लक्षद्वीप समेत दूसरे द्वीप समूहों में पर्यटन इकोसिस्टम को बढ़ावा.
    • बीआरओ यानी बार्डर रोड आर्गेनाइजेशन और कोस्ट गार्ड का बजट बढ़ा.

ये साफ है कि सरकार ने सौर उर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, रक्षा प्रौद्योगिकी, आवास सुविधाओं, रेलवे परिवहन, पर्यटन, सीमाओं की सुरक्षा  और बार्डर रोड जैसे क्षेत्रों को अपनी प्राथमिकता बनाया है. बजट के दौरान ये भी कहा गया कि एनडीए सरकार जुलाई में पूर्ण बजट में 'विकसित भारत' के लक्ष्य का विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत करेगी, जो कि परिचायक है कि बीजेपी को आने वाले लोकसभा चुनावों में जीत का कितना विश्वास है.

बीजेपी का ये विश्वास केवल चुनावी नारा नहीं है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं. इस बार बीजेपी का लक्ष्य 400 सीटों का है जो बेहद मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं. बीजेपी के सामने चुनौती 543 में वो 204 सीटें हैं जहां पिछले चुनावों में उसकी हार हुई थी या फिर जहां जीत का अंतर बेहद कम था. इनमें वो लोकसभा सीटें भी शामिल हैं जहां की विधानसभा सीटों में बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. इन 204 सीटों में 144 सीटें पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, छत्तिसगढ़, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों से हैं.

दक्षिण भारत के पांच राज्यों कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना में 2019 बीजेपी केवल 30 सीटें ही जीत पाई थी, जिसमें से केवल कर्नाटक की 26 सीटों और तेलंगाना की 4 सीटों के कारण ये आंकडा था. लेकिन इस बार तेलंगाना में बदला माहौल और तमिलनाडु में कन्याकुमारी और रामनाथपुरम के आसपास की 7-8 सीटों और केरल में ईसाई समुदाय के समर्थन से 7 सीटों पर बेहतर नतीजों की उम्मीद है, जिससे बीजेपी को दक्षिण में भी इस बार ठीक ठाक प्रदर्शन का विश्वास है.

नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी को 2019 के चुनावों में गुजरात, हरियाणा, झारखंड, दिल्ली, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा सहित 11 राज्यों में 50 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं और हाल के विधानसभा चुनावों में इनमें से तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा है. ऐसे में बीजेपी को 272 के लोकसभा चुनाव में जीत के जादुई आंकडे की चिंता न के बराबर है और यही वो विश्वास है जो सरकार के अंतरिम बजट में भी झलकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]      

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