महिलाओं के जबरदस्त विरोध के आगे आखिरकार कट्टरपंथी ईरान की सरकार को झुकना पड़ा और हिज़ाब की अनिवार्यता को लेकर अपना कदम पीछे खिंचने पर मजबूर होना पड़ा है. पिछले तीन महीने से चल रहे हिंसक प्रदर्शनों में बेशक करीब चार सौ लोग मारे गए लेकिन आधी आबादी ने अपनी ताकत का अहसास कराते हुए ये जता दिया कि अगर वह अपनी पर आ जाये, तो बहुत कुछ बदल सकती है. 


ईरान में पिछले कई दशकों से महिलाओं के लिए हिज़ाब पहनने की अनिवार्यता का कानून लागू है. लेकिन कुछ महीने पहले उदारवादी विचारों वाली महिलाओं ने हिज़ाब उतारकर फेंकना शुरू कर दिये और इससे आज़ादी पाने और इस दमनकारी कानून के ख़िलाफ़ देश भर में हिंसक आंदोलन शुरु हो गया था. 


लेकिन महिलाओं के तीखे विरोध के आगे अब सरकार ने घुटने टेक दिए हैं. सरकार ने ऐलान किया है कि हिजाब पहनना अब मर्जी पर निर्भर करेगा. मतलब मर्जी है तो पहनिए, नहीं मर्जी है तो मत पहनिए. पुलिस अब कार्रवाई नहीं करेगी. 


दरअसल, करीब तीन महीने पहले एक 22 वर्षीय महिला महसा अमिनी की हिरासत में मौत हो गई थी.  पुलिस ने उसे हिजाब नहीं पहनने के कारण हिरासत में लिया था.  महसा अमीनी को तेहरान की मोरैलिटी पुलिस ने कथित तौर पर 'ठीक से हिजाब' न पहनने के आरोप में हिरासत में लिया और बाद में उनकी मौत हो गई. ईरान के सख़्त नियमों के अनुसार, महिलाओं के लिए हिजाब या हेडस्कार्फ़ पहनना अनिवार्य है.


इसी के बाद ईरान में हिजाब के विरोध में बड़ा आंदोलन उठ खड़ा हुआ, जो बाद में हिंसक होता चला गया.  16 सितंबर को अमिनी की मौत के बाद से महिला प्रदर्शनकारी अपना हिजाब जलाने लगी और सार्वजनिक रुप से अपने बाल काटने लगी थीं. सरकार विरोधी नारे लगाने वाली महिलाओं ने कुछ मुस्लिम मौलवियों के सिर से पगड़ी तक उतार दी थीं. 


रविवार को ईरान के प्रॉसिक्यूटर जनरल ने एक धार्मिक सम्मेलन में बताया है कि देश की धार्मिक पुलिस यानी मोरैलिटी पुलिस को भंग कर दिया गया है. हालांकि प्रॉसिक्यूटर जनरल मोहम्मद जफ़र मॉन्ताज़ेरी के इस ऐलान को ईरान की क़ानून लागू करने वाली संस्था ने अभी पुष्टि नहीं की है.  ISNA समाचार एजेंसी के अनुसार ईरान के अटार्नी जनरल ने कहा कि नैतिकता पुलिस का न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं है. 


रिपोर्ट के मुताबिक अटॉर्नी जनरल ने एक धार्मिक सम्मेलन में ये बयान दिया जहां उनसे ये पूछा गया था कि नैतिकता पुलिस को बंद क्यों किया जा रहा है. नैतिकता पुलिस- जिसे गश्त-ए इरशाद या  मार्गदर्शन गश्ती के रूप में जाना जाता है. इसे राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के विनम्रता और हिजाब की संस्कृति को फैलाने के लिए स्थापित किया गया था. 
                       
बता दें कि एक वक्त था जब पश्चिमी देशों की तरह ईरान में भी महिलाएं खुलेपन के माहौल में जीती थीं लेकिन 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद सबकुछ बदल गया.  इस्लामिक क्रांति ने अमेरिका समर्थित राजशाही शासन को उखाड़ फेंका और अयातुल्लाह खोमैनी ने गद्दी संभाली. अयातुल्लाह ने सबसे पहले शरिया कानून को लागू किया. अप्रैल 1983 में ईरान में सभी महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य हो गया. अब मुल्क में 9 साल से ऊपर की हर महिला के लिये हिजाब पहनना अनिवार्य है. यहां तक कि ईरान में आने वाले पर्यटकों को भी इस नियम का पालन करना होता है. 


गौरतलब है कि ईरान की मोरैलिटी पुलिस यानी 'गश्त-ए-इरशाद' को अमेरिका ने 23 सितंबर को ब्लैकलिस्ट कर दिया था. तब अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने कहा था कि मोरैलिटी पुलिस महसा अमीनी की मौत के लिए जिम्मेदार है. ट्रेजरी विभाग ने ईरानी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए ये प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. महसा अमीनी की मौत के बाद से कुर्दिस्तान से लेकर तेहरान तक देश के कई इलाक़ों में विरोध प्रदर्शन भड़क गए थे. 


विदेशी मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1979 की क्रांति के बाद से ही ईरान में सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए 'मोरैलिटी पुलिस' कई स्वरूपों में मौजूद रही है. इनके अधिकार क्षेत्र में महिलाओं के हिजाब से लेकर पुरुषों और औरतों के आपस में घुलने-मिलने का मुद्दा भी शामिल रहा है. लेकिन महसा की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताई जा रही सरकारी एजेंसी 'गश्त-ए-इरशाद' ही वो मोरैलिटी पुलिस है, जिसका काम ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करना है. 'गश्त-ए-इरशाद' का गठन साल 2006 में हुआ था. ये न्यायपालिका और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स से जुड़े पैरामिलिट्री फोर्स 'बासिज' के साथ मिलकर काम करता है.


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