इजरायल के आक्रमण के बावजूद ईरान के पलटवार की कम है संभावना, अमेरिका की दोहरी नीति जिम्मेदार
सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर सोमवार यानी 1 अप्रैल को हमला हुआ है. इसमें करीब आधा दर्जन लोगों के मारे जाने की खबर है और हमले का जिम्मेदार इजरायल को माना जा रहा है. हालांकि, इजरायल की ओर से कहा गया कि है कि वो विदेशी मीडिया की खबरों पर कुछ नहीं बोलेगा, वहीं ईरान ने कहा है कि वो सोचेगा कि उसका जवाब उसे किस प्रकार से देना है. सीरिया, ईरान और इजरायल को देखे तो एक तरह से ये त्रिकोण है जो सभ्यताओं के संघर्ष की बात है, उसके हिसाब से ये एक युद्ध की तरह है, जो इजरायल के बनने के समय से, 1948 के साल से ही, गोल्डा मायर के शासनकाल से ही जारी है.
युद्ध अब पारंपरिक नहीं रहे
आजकल जो युद्ध की नीति है वो पारंपरिक और औपचारिक नहीं होता, बल्कि अनौपचारिक होता है. पिछले दल सालों में विश्व के राजनीतिक पटल को देखें तो पाएंगे कि विभिन्न देशों के आपसी संबंधों में काफी कुछ बदलाव आए हैं. भारत, इजरायल और अमेरिका की एक त्रिकोणीय एकता है और अंतरराष्ट्रीय वर्चस्व को बढ़ावा देने में काम करते हैं. अमेरिका ने सुलेमानी को अपने टॉम हॉक मिसाइल से खत्म किया तो सोचा जा रहा था कि ईरान इसमें हस्तक्षेप करेगा और ईरान करता भी था. वह कोई बड़े हमले नहीं करता था, बल्कि इराक में अमेरिका के अड्डों पर, छोटे-छोटे बमों से हमला करता था. अभी जो इजरायल ने दमिश्क पर मिसाइल से अटैक किया है वो एक तरह से डेटरेंस (पूर्व-आक्रमण) ही है ताकि ईरान को किसी बड़ी सैन्य कार्रवाई करने से डराया जा सके, रोका जा सके. जो ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड के के दो सदस्यों की मौत हुई है, उनके बारे में ईरान जरूर कुछ न कुछ करेगा. लेकिन एक तरह से यह डेटरेंट ही है, यह समझ में आता है.
जवाबी कार्रवाई कर सकता है ईरान
इजरायल बीते कुछ समय से सीरिया में दर्जनों हमले कर रहा था और उसकी वो जिम्मेदारी भी लेता रहा है. गाजा में हमास का युद्ध शुरू हुआ, तब से ईरान के समर्थन से हिजबुल्ला ने लेबनान और सीरिया से लगे इजरायल के सीमाई इलाके में हमले किए. एक तरह से गाजा को इजरायल ने समतल कर दिया है तो क्या वो इस युद्ध को ईरान की ओर ले जा रहा है?इस मामले को अमेरिका के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर के बयान के नजरिए से देखें तो उनका कहना है कि ये एक तरह का डेटरेंट है, लेकिन कहीं इसका बढ़ावा इजरायल और हमास के बीच ना हो जाए. ईरान अगर मिसाइल और ड्रोन अटैक के बाद कहीं अपने आप को शामिल करता है तो उसे बदले की कार्रवाई के तौर पर देखा जा सकता है. अभी हमास में जो युद्ध है या सीरिया में जो कुर्द और बशीर के बीच में तकरार है, तो लगता था कि इन बड़े मामलों में अमेरिका, ईरान या इजरायल इसमें हस्तक्षेप करेगा. देखा जाए तो ये एक तरह से चेतावनी है, जिसमें इजरायल ने अपनी सैन्य ताकत को दिखाया है. इसकी जवाबी कार्रवाई कहीं बम अटैक, ड्रोन अटैक आदि भी हो सकती है.
इजरायल दरअसल ईरान की नब्ज जांच रहा है. जिस तरह अमेरिका और विश्व के जहाजों को जिस तरह से हूती समुद्री लुटेरे आक्रमण कर नुकसान पहुंचा रहे हैं. अगर ये पहले की बात होती तो लगता कि अमेरिका इस पर कार्रवाई करता, लेकिन आज के समय में अनौपचारिक और हाइब्रिड वॉर में ऐसा नहीं होता. यह एक तरह से ईरान को धमकी भी है. ईरान कितना बड़ा और धमाकेदार जवाब देगा इसके बारे में भी इजरायल सोच रहा होगा. इस्लामिक दुनिया के नेतृत्व के लिए सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते प्रतिद्वंद्वी के तौर पर रहे हैं. इजरायल ने कतर, सउदी अरब और यूएई के साथ रिश्ते बना लिए है. ईरान एक तरह से अलग प्रकार का राष्ट्र है. जिस तरह से इराक में सद्दाम हुसैन वैश्विक आतंक को बढ़ावा देते थे, उसी प्रकार ईरान अभी के समय में वैश्विक आतंकवाद का प्रायोजक है, जिसकी रोकथाम का प्रयास अमेरिका लगातार करता रहा है और इजरायल अपनी संप्रभुता और आत्मरक्षा की दृष्टि से करता है. लेकिन यहां दोनों अलग बातें है अमेरिका वर्चस्व के लिए और इजरायल अस्तित्व के लिए करता है.
अमेरिका अपना रहा है दोहरी नीति
अमेरिका को ये बात पता है और अब वो कह रहा है कि इजरायल को संभलना होगा. पिछली बार यूएन में मामला आया तो अमेरिका ने वीटो भी नहीं किया. अमेरिका अभी आंख मूदे हुए है. पश्चिम एशिया की राजनीति में अमेरिका अपना एक तरह से वर्चस्व चाह रहा है. अभी अमेरिका के वर्चस्व और सत्ता के प्रभाव को को चीन, रूस, ईरान ने कमजोर कर दिया है. अब अमेरिका का पहले जैसा वर्चस्व नहीं रहा है. लेकिन फिर भी अगर इजरायल, यूएई, कतर और सऊदी अरब के पीछे से अमेरिका सपोर्ट हट जाए तो इन देशों के पास इतनी संपन्नता नहीं है कि रूस, चीन और ईरान को अकेले देख सकें. विश्व स्तर पर राय लेकिन इजरायल के खिलाफ बनते जा रही है. अब तक अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने भी कहा है कि अब इजरायल को राफा में नहीं जाना चाहिए. गाजा पट्टी में जो कुछ हुआ वहीं तक मामले को सीमित कर देना चाहिए. कतर और दोहा में कई बार बात हो चुकी है. हमास और इजरायल के डिप्लोमेट्स ने अहिंसा को नकार दिया है. एक तरह से अमेरिका इजरायल को सपोर्ट कर भी रहा है और नहीं भी कर रहा है, वो दोहरी नीति अपना रहा है.
इसी के कारण जो वैश्विक स्तर पर अमेरिका को सपोर्ट पहले मिलता था अब वो नहीं मिल रहा है. हालांकि, युद्ध का विस्तार होने के आसार कम हैं. हो सकता है ये एक मात्र धमकी हो. नेतन्याहू ने एक रेड लाइन खींची थी, और उस समय कहा था कि अगर कोई राष्ट्र उस लाइन को क्रॉस करता है तो इजरायल अपने फायर पावर का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा. हालांकि इस घटना पर बात करें तो युद्ध के आसार नहीं बन रहे हैं. हिजबुल्ला और ईरान या दमिश्क की ओर से भी माना जा सकता है कि इजरायल पर कोई छोटा अटैक करेंगे. ये अटैक इजरायल या इराक या अमेरिका के किसी डिपो पर हो सकता है.
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