तालिबान का बदला अब पाकिस्तान से लेने की तैयारी में है क्या अमेरिका?
![तालिबान का बदला अब पाकिस्तान से लेने की तैयारी में है क्या अमेरिका? Is America preparing to take revenge of Taliban from Pakistan know in details तालिबान का बदला अब पाकिस्तान से लेने की तैयारी में है क्या अमेरिका?](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/09/30/1bba340981b05670c17890bedb48d584_original.png?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
पुरानी कहावत है कि जैसा बीज़ बोओगे, वैसी ही फसल काटोगे. अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद को फैलाने में करने और अफगानिस्तान में तालिबान का सबसे बड़ा मददगार बन चुके पाकिस्तान के लिए क्या अब नई मुसीबतों का दौर शुरु होने वाला है? उसने तालिबान की दिल खोलकर जितनी मदद की, क्या अमेरिका अब उसका बदला लेने की तैयारी में है और क्या वह पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है? पाकिस्तान की संसद में विपक्षी पार्टियां ऐसी आशंका भरे सवाल पूछ रही हैं लेकिन इमरान खान सरकार के पास इसका कोई माकूल जवाब नहीं है. सिवाय ये आरोप लगाने के कि भारत व कुछ अन्य ताकतें पाकिस्तान को अस्थिर करना चाहती हैं.
दरअसल, अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के 22 सांसदों ने एक बिल पेश किया है. इस बिल में तालिबान की जीत को लेकर गहन जाँच की मांग की गई है. और पाकिस्तान का नाम लेकर इसमें उन ताक़तों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने की माँग की गई है, जिन्होंने अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को देश छोड़कर भागने पर मजबूर किया. लिहाज़ा, इमरान सरकार की नींद उड़ी हुई है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा है कि आखिर वो क्या करे.
क्योंकि इस मसले पर उसे इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी का साथ मिल पाना भी उतना आसान नज़र नहीं आता. संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में संपन्न महासभा में पाकिस्तान को ये अहसास हो चुका है कि कश्मीर के मसले पर तुर्की को छोड़कर बाकी इस्लामिक देशों ने जिस तरह से उससे किनारा किया है, उसे देखते हुए समर्थन मिलने की उम्मीद बेहद कम है.
पाक संसद में मुख्य विपक्षी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की नेता और विदेशी मामलों की स्टैंडिंग कमिटी की चेयरपर्सन शेरी रहमान ने साफ लहज़े में कहा है कि 'यह पाकिस्तान विरोधी बिल है और अगर पास होता है तो पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंध का रास्ता तैयार हो सकता है.' रहमान के मुताबिक बिल के सेक्शन 202 में पाकिस्तान का नाम लिया गया है और कहा गया है कि पाकिस्तान की सरकार और वहाँ के नॉन स्टेट फोर्स की अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को मदद करने की भूमिका की समीक्षा की जाए. इसमें 2001 से 2021 के बीच पाकिस्तान की सरकार के मूल्यांकन की बात भी शामिल है.
यानी, अमेरिकी सीनेट ने अगर इस बिल को पास कर दिया, तो सिर्फ इमरान सरकार ही नहीं बल्कि पिछले 20 सालों में पाकिस्तान पर राज कर चुके तमाम हुक्मरानों की भूमिका की भी जांच अमेरिका करेगा कि उन्होंने आतंकवाद को पालने-पोसने व तालिबान को और ताकतवर बनाने में कितनी मदद की. जांच के दायरे में सरकार के अलावा सेना व आईएसआई भी आयेगी, जो आतंकियों को ट्रेंनिंग देने के लिए कुख्यात है.
हालांकि भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने भी सरकार को चेताया है कि इस बिल को लेकर पाकिस्तान को चिंता करने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि अगर यह बिल पास हो गया तो पाकिस्तान के लिए मुश्किल स्थिति होगी. मुझे लगता है कि "पाकिस्तान को अब घबराने की ज़रूरत है. पाकिस्तान की विदेश नीति को लेकर फिर से सोचने की ज़रूरत है.''
जबकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी इस पर कुछ अलग ही राग अलाप रहे हैं.उन्होंने पाकिस्तानी चैनल जियो न्यूज़ से कहा कि रिपब्लिकन ने ये बिल राष्ट्रपति बाइडन पर प्रेशर बनाने के लिए पेश किया है. अमेरिका में पाकिस्तान विरोधी सक्रिय हैं और हम इसे अच्छी तरह से जानते हैं. कांग्रेस में बाइडन विरोधी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने ये भी सफाई दी कि पाकिस्तान की सरकार ने अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान के मामले में हर क़दम पर मदद की है.वे तो ये कहने से भी बाज़ नहीं आये कि "अफ़ग़ानिस्तान की अशरफ़ ग़नी सरकार से ये पूछना चाहिए कि उन्होंने हथियार क्यों डाल दिए, यह पाकिस्तान की जवाबदेही नहीं है." जबकि अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्क इस हक़ीक़त को जानते हैं कि वहां तख्ता पलट करवाकर तालिबान को सत्ता में लाने में पाकिस्तान की कितनी अहम भूमिका रही है.
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