जब पूरा देश इस जोड़-घटा में लगा हुआ है कि GST कैसे लागू होगा, किस पर लागू होगा, कहां कहां लागू होगा, तब भारतीय क्रिकेट बोर्ड एक अलग ही समस्या से जूझ रहा है. अब तक किचकिच थी कि अनिल कुंबले के बाद कोच की जिम्मेदारी किसको दी जाए, बड़ी उठापटक और भ्रम की स्थिति के बीच इस जिम्मेदारी के रवि शास्त्री को दिए जाने का ऐलान किया गया.
अब उसके बाद अगली समस्या आ गई कि कोच के साथ सपोर्ट स्टाफ में कौन हो और कौन ना हो. बात यहां तक पहुंच गई कि कोच चुनने वाली कमेटी को ये लिखकर बताना पड़ा कि उन्होंने राहुल द्रविड़ या जहीर खान को रवि शास्त्री पर थोपा नहीं है, बल्कि ये फैसला उनसे सलाह मशविरे के बाद ही लिया गया था.
ये समस्या और ज्यादा दिलचस्प और गंभीर इसलिए हो जाती है जब आप कोच चुनने वाली कमेटी के दिग्गज खिलाड़ियों के नाम से गुजरते हैं. क्रिकेट फैंस जानते ही हैं कि कोच का फैसला सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण की तिकड़ी ने मिल कर किया है. ऐसे में इस फैसले के किसी भी पहलू पर सवाल उठाना इन तीनों खिलाडियों की सोच और समझ पर सवाल उठाने जैसा है. इसी बात से नाराज होकर इस तिकड़ी ने विनोद राय की अगुवाई वाली सीओए को चिट्ठी लिखी है.
क्या शास्त्री सब कुछ अपनी मनमर्जी का चाहते हैं?
रवि शास्त्री को जब करीब तीन साल पहले टीम डायरेक्टर की जिम्मेदारी दी गई थी, तो उनके साथ भरत अरूण और संजय बांगर को भी सपोर्ट स्टाफ का हिस्सा बनाया गया था. भरत अरूण 80 के दशक में टीम इंडिया के लिए दो टेस्ट मैच खेल चुके हैं, जबकि संजय बांगर ने टीम इंडिया के लिए 12 टेस्ट मैच और 15 वनडे मैच खेले हैं.
ऐसा माना जाता है कि रवि शास्त्री चाहते थे कि इन दोनों खिलाड़ियों को एक बार फिर उनके सपोर्ट स्टाफ का हिस्सा बनाया जाए. ये स्थिति वैसी ही है जैसे बचपन में बच्चे पहले एक कोई छोटी सी जिद पकड़ते हैं और उस जिद के पूरा होने के बाद दूसरी. पहले सिर्फ गुड्डा चाहिए होता है और गुड्डा के मिलने के बाद गुड़िया भी.
रवि शास्त्री को जिन परिस्थितियों में कोच चुना गया था वो परिस्थितियां सामान्य नहीं थीं. आपको याद ही होगा कि पहले सीएसी की तरफ से ये कहा जाता रहा कि कोच को लेकर आखिरी फैसला अभी नहीं हुआ है. इसी बीच देर शाम बीसीसीआई को कोच के तौर पर रवि शास्त्री के नाम का ऐलान करना पड़ा था.
रवि शास्त्री के लिए बेहतर होता अगर वो पहले टीम के साथ जुड़कर कुछ वक्त उसे समझते. खिलाड़ियों के साथ अपनी इस नई जिम्मेदारी को साझा करते, उनसे बात करते, उनकी जरूरतों को समझते. श्रीलंका का दौरा उनके लिए पहला ‘एसाइनमेंट’ है. इस दौरे के बाद अगर वो अपनी समझ और जरूरत को लेकर कुछ कहते तो शायद बात हजम भी हो जाती, लेकिन अभी से ही अलग-अलग सुर अलापने से एक भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है.
शास्त्री के लिए भी नया ही होगा तजुर्बा
रवि शास्त्री शायद ये भूल रहे हैं कि अभी तक उन्होंने टीम डायरेक्टर की जिम्मेदारी संभाली है. उस जिम्मेदारी के मुकाबले कोच की जिम्मेदारी काफी अलग और काफी कठिन हैं. अब रवि शास्त्री को टीम इंडिया के बल्लेबाजों को नेट्स में बैटिंग प्रैक्टिस करानी होगी. बल्लेबाजों को ‘थ्रो’ करना होगा. तीन-तीन चार-चार घंटे तक चलने वाले नेट सेशन में ‘एक्टिव’ रहना होगा. उनके साथ भागदौड़ करनी होगी. खिलाड़ियों की फिटनेस पर नजर रखनी होगी. एक तय समय पर मैदान में पहुंचना होगा. बतौर कोच ये सारी जिम्मेदारियां उठाने के लिए रवि शास्त्री को खुद भी फिट रहना होगा.
एक पूर्व क्रिकेटर होने के नाते रवि शास्त्री इन बातों को समझते हैं, लेकिन अभी इस समझ के साथ-साथ इन बातों को ‘एक्शन’ में लाने का वक्त आ गया है. परेशानी इस बात की है कि अभी तक रवि शास्त्री और बीसीसीआई ‘डिमांड’ और ‘सप्लाई’ के मोड से ही बाहर नहीं आ पाई है.