नौ साल पहले आज ही के दिन देश की राजनीति ने नई करवट ली थी. 26 मई 2014 को बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी थी और नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. इन नौ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेता बनकर उभरे. साथ ही बीजेपी भी केंद्रीय राजनीति के लिहाज से लगातार मजबूत होते गई. इसी का नतीजा था कि 2014 के बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुआ, तब बीजेपी ने और बड़ी जीत हासिल की.


अब 2024 की तैयारियों में हर दल जुटे हैं. आगामी लोकसभा चुनाव में महज़ 10 महीने का वक्त बचा है और बीजेपी के सामने मजबूत चुनौती पेश करने के लिए विपक्षी दलों के बीच एकजुटता बनाने की कोशिश जारी है. इस अभियान में नीतीश कुमार, शरद पवार और अब अध्यादेश के बहाने अरविंद केजरीवाल जी जान से जुटे हैं.


विपक्षी गठबंधन की मुहिम कितनी कारगर


नए संसद भवन के उदघाटन को लेकर  सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी से विपक्षी एकजुटता की मुहिम को एक तरह से संजीवनी मिल गई है. प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार के अधिकार को नहीं मानने से जुड़े अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों को लामबंद करने में भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगे हैं. इन दोनों मुद्दों पर जिस तरह से विपक्षी दल नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने में लगे हैं, उससे सियासी गलियारे में इस पर बहस और तेज हो गई है कि क्या 2024 में चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्षी गठबंधन बन सकता है.


इन सबके बीच ये पहलू काफी अहम हो जाता है कि अगर सचमुच में विपक्ष का गठबंधन वास्तविक आकार ले लेता है, तो फिर ये नरेंद्र मोदी सरकार और बीजेपी के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकता है. इसे समझने के लिए राज्यवार बीजेपी और बाकी विपक्षी दलों की ताकत और कमजोरी से जुड़े सियासी समीकरणों को समझना होगा.


नए संसद भवन के बहाने एकजुटता दिखाने का मौका


जिस विपक्षी गठबंधन की संभावना है, उसमें ज्यादातर वहीं दल शामिल हो सकते हैं, जिन्होंने संसद के नए भवन के उदघाटन समारोह का सामूहिक रूप से बहिष्कार करने की घोषणा की है. इनमें 19 दल हैं, जिनमें कांग्रेस के साथ ही तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जेडीयू, आरजेडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), सीपीएम और सीपीआई, राष्ट्रीय लोकदल और नेशनल कांफ्रेंस शामिल हैं. इनके अलावा इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची (BCK), मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम (MDMK) भी सामूहिक बहिष्कार वाले दलों की सूची में शामिल हैं.


क्या हो सकती है विपक्षी एकजुटता की रूपरेखा?


इनमें से एकमात्र कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसका पैन इंडिया जनाधार है और बाकी विपक्षी दलों की पकड़ मौटे तौर पर राज्य विशेष तक ही सीमित है. कांग्रेस के अलावा टीएमसी पश्चिम बंगाल में, डीएमके तमिलनाडु में जेडीयू और आरजेडी बिहार में वहीं झामुमो झारखंड में प्रभावशाली है. समाजवादी पार्टी का प्रभाव उत्तर प्रदेश, एनसीपी और शिवसेना (ठाकरे गुट) का महाराष्ट्र, और नेशनल कांफ्रेंस का जम्मू-कश्मीर और राष्ट्रीय लोकदल का सीमित प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है. इनमें से आम आदमी पार्टी दो राज्यों पंजाब और दिल्ली में बेहद मजबूत स्थिति में है, वहीं गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में धीरे-धीरे जनाधार बनाने की कवायद में है. सीपीएम का प्रभाव केरल में सबसे ज्यादा रह गया है, जबकि पश्चिम बंगाल में भी उसके कैडर अभी भी मौजूद हैं. 19 दलों में से बाकी जो दल हैं उनका केरल और तमिलनाडु में छिटपुट प्रभाव है. 


कई विपक्षी दल एकजुटता से रहेंगे बाहर


ऐसे तो विपक्ष में और भी दल हैं, जिनकी पकड़ राज्य विशेष में है. इनमें बीजेडी का ओडिशा में, बसपा का यूपी में, वाईएसआर कांग्रेस का आंध्र प्रदेश में, बीआरएस का तेलंगाना में अच्छा-खासा प्रभाव है. जेडीएस का कर्नाटक के कुछ सीटों पर प्रभाव है.  हालांकि नवीन पटनायक, मायावती, जगन मोहन रेड्डी, के. चंद्रशेखर राव, और एच डी कुमारस्वामी का फिलहाल जो रवैया है, उसके मुताबिक इन दलों के कांग्रेस की अगुवाई में बनने वाले किसी भी गठबंधन में शामिल होने की संभावना बेहद क्षीण है.


ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत की संभावना के नजरिए से बीजेपी के लिए सबसे निर्णायक राज्यों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और असम शामिल हैं.


उत्तर प्रदेश में चुनौती पेश करने पर ज़ोर


अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो ये फिलहाल बीजेपी का सबसे मजबूत किला और केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में सबसे कारगर राज्य रहा है और 2024 में भी बीजेपी इसे जारी रखना चाहेगी. 2014 में बीजेपी यूपी की 80 में से 71 सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही थी, वहीं 2019 में यहां 62 सीटों पर कमल का परचम लहराया था. अगर विपक्षी गठबंधन को केंद्र में बीजेपी के सामने चुनौती पेश करना है, तो उसे उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वोट बैंक और सीटों पर सेंधमारी करनी होगी, वो भी बड़े पैमाने पर.


उत्तर प्रदेश में विपक्षी लामबंदी के हिसाब से सबसे बड़ी समस्या यही आ रही है कि मायावती अगर विपक्षी गठबंधन में शामिल नहीं होती हैं और वो तीसरे धड़े के तौर पर अलग से चुनाव लड़ती हैं, तो फिर यूपी में बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुंचाना मुश्किल हो जाएगा. हमने देखा है कि जब 2014 में बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ी थी, तो बीजेपी को 71 सीटों पर जीत मिल गई थी, जबकि समाजवादी पार्टी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटों पर ही जीत मिली थी. मायावती की पार्टी का तो खाता तक नहीं खुल पाया था.


मायावती का साथ मिले तो बन सकती है बात


इसके विपरीत 2019 लोकसभा चुनाव में जब मायावती और अखिलेश मिलकर चुनाव लड़े थे तो यहां बीजेपी को 9 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. साथ ही बसपा 10 और अखिलेश यादव की सपा 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. अलग से लड़ते हुए कांग्रेस को महज़ एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था. वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर प्रभाव रखने वाली आरएलडी को न तो 2014 और नहीं 2019 में किसी सीट पर जीत मिली थी.


ऐसे में ये कहा जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन के तहत अगर यूपी में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आरएलडी एक साथ आ भी जाएं, तो बिना मायावती के बीजेपी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाने की संभावना नहीं बनती है. हां, कुछ सीटों का भले ही बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सके. अगर विपक्षी गठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ मायावती भी जुड़ जाती हैं, तो फिर ये गठजोड़ यूपी में बीजेपी के लिए भारी परेशानी का सबब बन सकता है. ऐसा होने पर इन तीनों के कोर वोटर के साथ ही मुस्लिमों का वोट एक पाले में पड़ने की वजह से बीजेपी के लिए इस समीकरण की काट खोजना बेहद मुश्किल का काम होगा. 


कई राज्यों में बीजेपी का शत-प्रतिशत सीटों पर दावा


उत्तर प्रदेश के बाद बात करते हैं गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और छत्तीसगढ़ की. ये वैसे राज्य हैं, जहां बीजेपी शत-प्रतिशत सीटें जीतने का माद्दा रखती है और इन राज्यों में कमोबेश बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस के साथ ही रहते आया है और 2024 में भी रहने की संभावना है. विपक्षी गठबंधन की संभावना में, कांग्रेस के अलावा कोई और ऐसे दल नहीं हैं, जो अपने प्रभाव वाले राज्य से बाहर जाकर कांग्रेस की जीत में ज्यादा मदद पहुंचा सकते हैं.


गुजरात की सभी सीटों पर बीजेपी बहुत मजबूत


गुजरात में शत-प्रतिशत सीटें जीतने का करिश्मा बीजेपी 2014 और 2019 दोनों बार ही कर चुकी है. दोनों बार बीजेपी के खाते में यहां की सभी 26 लोकसभा सीटें गई हैं और जिस तरह से 2022 के विधानसभा चुनाव में पिछला सारा रिकॉर्ड तोड़ते हुए बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, उससे गुजरात में 2024 में भी बीजेपी शत-प्रतिशत सीटों पर दावेदारी के साथ ही चुनावी दंगल में उतरेगी. राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से आते हैं और बीजेपी के इस गढ़ में कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती पेश करना फिलहाल मुमकिन नहीं दिख रहा है. 


राजस्थान- मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बाकी दलों से लाभ नहीं


राजस्थान में भी बीजेपी की अगुवाई में एनडीए का पिछले दोनों लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर कब्जा रहा था. 2019 में तो राजस्थान में  कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद बीजेपी का जादू सर चढ़कर बोला था. ऐसे भी राजस्थान में कांग्रेस को किसी और विपक्षी दल से समर्थन का कोई लाभ मिलने की गुंजाइश नहीं है.


मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन से कोई फायदा मिलने वाला नहीं है. यहां भी बीजेपी की दावेदारी सभी 29 सीटों पर रहेगी. 2014 में बीजेपी 27 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि कांग्रेस को महज़ 2 सीटें मिली थी. वहीं 2019 में तो राज्य में कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार रहने के दौरान बीजेपी ने 29 में से 28 सीटों पर कमल का परचम लहरा दिया था. कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा सीट ही जीतने में कामयाब रही थी और वो भी उस सीट पर कमलनाथ परिवार के प्रभाव की वजह से. ऐसे में 2024 में भी कांग्रेस को यहां विपक्ष के किसी दल से कोई समर्थन नहीं मिलने वाला है और उसे अकेले ही बीजेपी की काट खोजनी होगी.


छत्तीसगढ़ में कैसे खत्म होगा बीजेपी का वर्चस्व?


छत्तीसगढ़ तो बीजेपी के लिए लोकसभा के लिहाज से देश के सबसे मजबूत राज्यों में से एक रहा है. 2019 में छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटों पर और 2014 में 10 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. यहां तक की यूपीए के दौर में भी 2004 और 2009 के चुनाव में बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में 10-10 सीटों पर कब्जा किया था.  पिछले चार लोकसभा चुनाव यानी छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद से ही बीजेपी यहां हमेशा ही शत-प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल करने के बेहद नजदीक रही है. हालांकि इस साल के आखिर में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होना है और अगर उसमें कांग्रेस भूपेश बघेल की छवि के आधार पर सत्ता बरकरार रखने में कामयाब होती है, तो फिर शायद पहली 2024 में राज्य में बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ने में कामयाबी मिल सकती है. 


हरियाणा, उत्तराखंड में एकजुटता से नहीं बनेगी बात


हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें हैं और पिछली बार बीजेपी इन सभी 10 सीटों पर जीत गई थी और 2014 में इनमें से 7 पर कमल का परचम लहराया था. इस बार भी हरियाणा में कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन के तहत किसी से ज्यादा लाभ मिलने की उम्मीद नहीं है. यहीं हाल उत्तराखंड का भी है. यहां की सभी 5 सीटें पिछले दोनों बार बीजेपी के खाते में गई हैं और फिलहाल यहां बीजेपी की जो स्थिति है, उसके हिसाब से उसे 2024 में कांग्रेस से नुकसान की गुंजाइश नहीं है.


पश्चिम बंगाल में एकजुटता का हो सकता है असर


अब बात करते हैं पश्चिम बंगाल की. यहां कुल 42 लोकसभा सीटें हैं. 2024 में अगर सबसे ज्यादा दिलचस्प मुकाबला होने की संभावना है तो वो पश्चिम बंगाल ही है. इस राज्य पर हर किसी की निगाह रहने वाली है. कभी सीपीएम का गढ़ रहे इस राज्य में 2011 से ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार है. यहां एक दशक तक पहले तक बीजेपी का एक तरह से नामोनिशान नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे इस राज्य में बीजेपी इतनी बड़ी ताकत बन गई है कि 2024 में पार्टी 35 सीटों पर जीत का लक्ष्य लेकर रणनीति बना रही है. पिछली बार 18 सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. अगर विपक्षी गठबंधन बनता है तो यहां कांग्रेस और सीपीएम को पूरी तरह से टीएमसी का साथ देना होगा, तभी बीजेपी को यहां भारी नुकसान पहुंच सकता है. पश्चिम बंगाल फिलहाल देश में वैसा राज्य है, जहां 2024 में सबसे ज्यादा हिन्दू-मुस्लिम आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होने की आशंका है और इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिल सकता है. यहां बीजेपी के मंसूबो को पूरा होने से रोकने के लिए कांग्रेस और सीपीएम को खुलकर ममता बनर्जी का साथ देना पड़ेगा.


बिहार में बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल


बिहार के समीकरण की बात करें तो एनडीए को सबसे ज्यादा नुकसान यहीं होने की संभावना है. राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन बने या नहीं बने, यहां एक तरह से तय है कि जेडीयू-आरजेडी- कांग्रेस का गठबंधन रहेगा और ये गठजोड़ बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती होने वाली है. पिछले कुछ चुनावों के आधार पर  कहा जा सकता है कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन हो या फिर जेडीयू-आरजेडी गठबंधन..इन दोनों ही गठजोड़ का तोड़ निकालना बेहद मुश्किल है और इसकी वजह गठबंधन से जुड़े जातीय समीकरण बन जाते हैं.


पिछली बार बीजेपी और जेडीयू बिहार में साथ थे तो यहां की 40 में 39 सीटों पर एनडीए का कब्जा हो गया था. उसमें से बीजेपी के खाते में 17 सीटें गई थी. 2024 में हालांकि बीजेपी को जेडीयू का साथ नहीं मिलने वाला. यहां जेडीयू-आरजेडी के साथ ही कांग्रेस के एक पाले में आ जाने से बीजेपी के लिए बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं रह गई है. विपक्षी गठबंधन के तहत जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का पूरा ज़ोर रहेगा कि प्रदेश की ज्यादातर सीटों पर उनका कब्जा हो.


देशव्यापी स्तर पर विपक्षी गठबंधन बने या नहीं बने, झारखंड के सियासी समीकरणों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि यहां पहले से ही झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ते आ रहे हैं. 2014 और 2019 में तो इन तीनों दलों के साथ रहने के बावजूद भी बीजेपी यहां की कुल 14 में से 12 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.


महाराष्ट्र में नए समीकरणों पर रहेगी नज़र


महाराष्ट्र में यूपी के बाद सबसे ज्यादा कुल 48 लोकसभा सीटें हैं. राज्य के क्षेत्रीय समीकरण कुछ ऐसे हैं कि विपक्षी गठबंधन बन भी जाए तो उसे बीजेपी के मुकाबले कोई ख़ास बढ़त नहीं मिल सकता है. महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों में बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे की पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में हैं. लेकिन जब बीजेपी और शिवसेना मिलकर चुनाव लड़ती थी तो फिर ये एक बड़ी ताकत होती थी. यहीं वजह है कि इस गठबंधन को 2014 और 2019 दोनों चुनाव में 48 में से 41 सीटें हासिल हुई थी. लेकिन 2024 में बदले माहौल में चुनाव होगा. शिवसेना का दो फाड़ हो चुका है. एकनाथ शिंदे गुट अब बीजेपी के साथ है, वहीं उद्धव ठाकरे गुट के एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की सूरत बन रही है. इस तरह का समीकरण महाराष्ट्र में पहली बार बना है, यहीं वजह है कि यहां विपक्षी गठबंधन किस तरह का प्रदर्शन कर पाएगा, ये कहना बेहद मुश्किल है.


दिल्ली और पंजाब में विपक्ष उठा सकता है फायदा


इनके अलावा दो राज्य ऐसे हैं, जहां अगर विपक्षी गठबंधन हो गया तो बीजेपी को एकमुश्त नुकसान उठाना पड़ सकता है. ये राज्य पंजाब और दिल्ली हैं. इन दोनों को मिलाकर कुल 20 लोकसभा सीटें होती हैं, जिसमें दिल्ली में 7 और पंजाब में 13 सीटें हैं. इनमें से पंजाब में बीजेपी कोई बड़ी ताकत नहीं रही है और अब वहां आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत के तौर पर उभरी है. वहीं दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में हैं. ऐसे में इन दोनों राज्यों की 20 सीटों पर विपक्षी गठबंधन के जरिए बीजेपी पर बढ़त हासिल किया जा सकता है.


कर्नाटक से कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद


एक और राज्य है जो बीजेपी के लिए लोकसभा के लिहाज से बेहद मजबूत माना जाता रहा है. ये राज्य दक्षिण भारत में बीजेपी की एकमात्र बड़ी उम्मीद भी है. हम कर्नाटक की बात कर रहे हैं, जहां अभी हाल ही में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल कर सरकार बनाई है. दक्षिण के जितने भी बड़े 5 राज्य हैं, उनमें सिर्फ कर्नाटक ही है, जहां से 2024 में बीजेपी को पिछली बार की तरह बड़ी संख्या में सीटों के हासिल होने की आस है. यहां कुल 28 लोकसभा सीटें हैं. बीजेपी को यहां 2004 में 18 सीटों पर, 2009 में 19 सीटों पर और 2014 में 17 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में तो यहां बीजेपी ने करिश्मा ही कर दिया था. उसने 25 सीटों पर कब्जा जमा लिया था. हालांकि विधानसभा चुनाव में जीत से कांग्रेस का उत्साह चरम पर है और 2024 में यहां बीजेपी को कांग्रेस से बड़ी चुनौती मिल सकती है. लेकिन तय है कि जेडीएस का जिस तरह का रुख है, उसके हिसाब से देशव्यापी गठबंधन का कर्नाटक में कांग्रेस को कोई फायदा मिलता नहीं दिख रहा है.


दक्षिण भारतीय राज्यों में बीजेपी की राह मुश्किल


कर्नाटक के अलावा दक्षिण भारतीय राज्यों में से आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी की कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिखती है. भले ही तेलंगाना की 17 सीटों में से कुछ सीटों पर बीजेपी की दावेदारी दिखती है. पिछली बार बीजेपी तेलंगाना में 4 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. अगर कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी गठबंधन में केसीआर शामिल हो जाते हैं, तो फिर यहां से भी बीजेपी की उम्मीदों को झटका लग सकता है. हालांकि इसकी संभावना कम ही है क्योंकि केसीआर का शुरू से गैर-कांग्रेसी विपक्षी मोर्चा पर फोकस रहा है. ये भी बात है कि इस साल के आखिर तक होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद केसीआर के रुख में बदलाव देखने को मिल सकता है. ये केसीआर की पार्टी और बीजेपी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. बीजेपी यहां इस बार सरकार बनाने का लक्ष्य लेकर चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है.


देशव्यापी गठबंधन का तमिलनाडु पर कोई असर नहीं पडने वाला है क्योंकि यहां पहले से ही एम. के. स्टालिन की पार्टी डीएमके और कांग्रेस के बीच गठबंधन है. वहीं यहां की राजनीति में बड़ी ताकत एआईएडीएमके का रुख बीजेपी के तरफ ही रहने की संभावना है. उसी तरह केरल के लिए भी देशव्यापी विपक्षी गठबंधन का कोई मायने नहीं है क्योंकि यहां एक तो बीजेपी का कोई ख़ास प्रभाव और उम्मीद दिखती नहीं है. दूसरे विपक्षी गठबंधन हो भी गया तब भी यहां सीपीएम और कांग्रेस ही एक-दूसरे के खिलाफ मुकाबले में होंगे, ये भी कमोबेश तय ही है.


पूर्वोत्तर में बीजेपी का दावा मजबूत


सिक्किम को मिलाकर पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीटें हैं. इनमें सबसे ज्यादा 14 सीटें असम में हैं, जहां बीजेपी फिलहाल हिमंत बिस्वा सरमा की अगुवाई में बेहद मजबूत स्थिति में है. वहीं बाकी बचे राज्यों में ज्यादातर सीटों पर अनुमान लगाना मुश्किल है. बीजेपी की कोशिश रहेगी कि असम को मिलाकर वो इन 25 में से करीब 18 से 20 सीटों पर जीत हासिल कर ले.


लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में 5 और लद्दाख में एक लोकसभी सीटें हैं. इन 6 में पिछली बार 3 सीटें बीजेपी के खाते में गई थी और 3 सीटें नेशनल कांफ्रेंस के पास गई थी. अब नए हालात में नए परिसीमन के मुताबिक चुनाव होने पर जम्मू-कश्मीर की 5 सीटों पर विपक्षी दलों के लिए मिलकर चुनाव लड़ने पर भी पहले की तुलना में कोई ज्यादा फायदे की संभावना नज़र नहीं आती है. 


कांग्रेस को खुद के प्रदर्शन में करना होगा सुधार


इन सारी संभावनाओं को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन सुनिश्चित कर बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली और कर्नाटक में पहुंचाया जा सकता है. इसके अलावा जो भी राज्य हैं, उनके राजनीतिक समीकरणों पर विपक्षी गठबंधन बनने और न बनने से कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि विपक्षी गठबंधन बन भी गया तो इन राज्यों के अलावा किसी भी राज्य में कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है, जो कांग्रेस को जीत दिलाने में प्रभावी भूमिका में हो. हालांकि सीटों के लिहाज से इन राज्यों में बीजेपी को विपक्षी गठबंधन से बड़ा नुकसान होता है, तो फिर उसके लिए ये खतरा 2024 की सत्ता के लिहाज से गंभीर बाधा में तब्दील हो सकता है. हालांकि बीजेपी की सत्ता के सामने चुनौती पेश करने के लिए कांग्रेस को गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में खुद की बदौलत ही बेहतर प्रदर्शन करना होगा.


इन संभावनाओं के पहले लेकिन सबसे प्रासंगिक सवाल यही है कि क्या 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की अगुवाई में एक मजबूत विपक्षी गठबंधन बन पाएगा और इसके लिए अगले कुछ महीने बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं.


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)