पंजाब में कांग्रेस की करारी हार होने के बाद भी पार्टी ने शायद इससे कोई सबक नहीं लिया और अंदरुनी कलह अभी भी थमती नहीं दिख रही है. रविवार को सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई CWC की बैठक में किसी भी नेता ने ये कहने की हिम्मत नहीं जुटाई कि चुनाव से ऐन पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाने का पार्टी आलाकमान का फैसला गलत था और जिन लोगों ने चरणजीत सिंह चन्नी को इस पद पर बैठा कर मास्टरस्ट्रोक खेलने का दावा किया था, वे भी पंजाब की जमीनी हकीकत से अनजान थे.


सच तो ये है कि कांग्रेस की इस हार के लिए प्रदेश के नेताओं से ज्यादा कसूरवार तो दिल्ली में बैठे नेताओं की वो 'चौकड़ी' है जिसने अपने निहित स्वार्थ की खातिर गांधी परिवार को गलत सलाह देकर न सिर्फ गुमराह किया बल्कि पार्टी के ये दुर्गति बना डाली. लेकिन पार्टी के कद्दावर नेता सुनील जाखड़ ने शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाकर उसे आईना दिखाने का काम किया है. वे पंजाब में प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और उन्हें कैप्टन का करीबी समझा जाता है. लिहाज़ा नवजोत सिंह सिद्धू की जिद को पूरा करने के लिए आलाकमान ने जिस दिन ये दोनों विकेट गिराए थे, उसी दिन से ही प्रदेश कांग्रेस की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी.


दरअसल, रविवार को दिल्ली में हुई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पंजाब की हार का सारा ठीकरा प्रदेश के नेताओं पर ही फोड़ा गया. पंजाब से जुड़े कुछ नेताओं ने ये सवाल उठाया कि जब चुनाव में ‘पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने चन्नी को एक महत्पूर्ण व्यक्ति के तौर पर खड़ा किया था, तो पार्टी का प्रदेश नेतृत्व निवर्तमान मुख्यमंत्री चन्नी का समर्थन करने में आखिर कैसे विफल रहा? इस सवाल के बहाने सिद्धू से ज्यादा निशाना मनीष तिवारी और पंजाब से आने वाले पार्टी के अन्य सांसदों और सुनील जाखड़ पर भी साधा गया और कहा गया कि अगर ये सब चन्नी का साथ देते,तो पार्टी की आज इतनी दुर्गति न होती.


हार के लिए प्रदेश के सांसदों व नेताओं को कठघरे में खड़ा करने की इन कोशिशों के खिलाफ ही सुनील जाखड़ ने सोमवार को चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें एक ‘‘बोझ’’ बताया और साफ कह डाला कि उनके ‘‘लालच ने ही पार्टी को इतना नीचे ला दिया.’’ जाखड़ ने बिना नाम लिए पार्टी की वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी पर भी निशाना साधा.


जाखड़ ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘एक महत्वपूर्ण व्यक्ति - क्या (आप) मजाक कर रहे हैं? भगवान का शुक्र है कि उन्हें सीडब्ल्यूसी में उस महिला द्वारा ‘राष्ट्रीय खजाना’ घोषित नहीं किया गया, जिन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए पहले व्यक्ति के रूप में प्रस्तावित किया था. उनके लिए वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकते हैं लेकिन पार्टी के लिए वह केवल एक बोझ रहे हैं.’’


दरसअल, कांग्रेस में नेताओं का एक खेमा मानता है कि सीएम रहते हुए कैप्टन ने अंबिका को कभी वैसा महत्व नहीं दिया, जैसी उन्हें उम्मीद थी. नतीजा ये हुआ कि 10 जनपथ से अपनी गहरी नजदीकियों के चलते अपनी खुंदक निकालने के लिए वे गांधी परिवार को ये समझाने में कामयाब हुईं कि कैप्टन के चेहरे पर पार्टी दोबारा चुनाव नहीं जीत सकती, इसलिये किसी नये चेहरे के साथ चुनाव में जाना चाहिए. कहते हैं कि चन्नी को सीएम और सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फार्मूला भी उन्होंने ही सुझाया था.


जब कैप्टन को सीएम पद से और जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, तभी उन्हें इसकी भनक लग चुकी थी कि दिल्ली में बैठकर पर्दे के पीछे से खेले जा रहे इस खेल के पीछे आखिर किसका दिमाग है. हालांकि आलाकमान के लिए एक गलत फैसले का नतीजा सबके सामने है. सियासी जानकार मानते हैं कि अगर कैप्टन को न हटाया जाता, तो प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ इतना जबरदस्त माहौल नहीं बनता और न ही पार्टी का परम्परागत वोट बैंक इतनी बड़ी तादाद में आम आदमी पार्टी की तरफ ही शिफ्ट होता. लेकिन कहते हैं कि सियासत में लिया गया एक गलत फैसला ही किसी को अर्श से फर्श पर लाने के काफी होता है. वही कांग्रेस के साथ भी पंजाब में हुआ.


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