कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते देशभर में 21 दिनों का लॉकडाउन जारी है जिसके खत्म होने की मियाद 14 अप्रैल की है. लेकिन जिस प्रकार देश के कोने-कोने से कोरोना संक्रमण के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं, सबके दिलोदिमाग में सवाल गूंजने लगे हैं कि आखिर ये लॉकडाउन कब खुलेगा? खुलेगा भी या नहीं? किस हद तक खुलेगा? क्या फिर कभी जिंदगी पहले जैसी उन्मुक्त हो पाएगी?


इसका जवाब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कर दिया है कि वे 15 अप्रैल से लॉकडाउन खोलने जा रहे हैं, हालांकि इसे चरणबद्ध तरीके से खोला जाएगा. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया है कि उनके राज्य में निर्धारित तारीख के बाद लॉकडाउन हटेगा या नहीं, यह जनता के व्यवहार और सरकारी निर्देशों के अनुपालन पर निर्भर करेगा. उद्धव की चिंता जायज है क्योंकि अब तक महाराष्ट्र में ही कोरोना के सबसे ज्यादा 1048 मामले दर्ज किए गए हैं और सबसे ज्यादा 64 मौतें भी इसी राज्य में हुई हैं. अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी लॉकडाउन बढ़ाने को लेकर स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से केंद्र को अपना फीडबैक दे रहे हैं. कैबिनेट सचिव राजीव गौबा और स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कुछ दिनों पहले ही जता दिया था कि केंद्र सरकार की मंशा लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की कतई नहीं है.


मंत्रिमंडल की बैठक में तमाम केंद्रीय मंत्री भी मोदी जी के सामने यही मंथन करते रहे कि लॉकडाउन को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता, मगर इसे हर जगह से एकबारगी हटाया भी नहीं जा सकता. संकेत यही है कि हॉटस्पॉट चिह्नित करके शहरी और ग्रामीण भारत के लिए अलग-अलग रणनीति पर अमल करते हुए लिमिटेड लॉकडाउन की राह पर आगे बढ़ा जाएगा और सड़क व रेल जैसे सार्वजनिक परिवहन को धीरे-धीरे बहाल किया जाएगा. एक तरफ कोरोना-संबंधी जांच, परीक्षण, आइसोलेशन, सोशल डिस्टैंसिंग, क्वारेंटाइन, सख्त पोलिसिंग और जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने का काम जारी रहेगा और दूसरी तरफ आम जनजीवन को पटरी पर लाते हुए सीमित आर्थिक और शैक्षणिक गतिविधियां शुरू की जाएंगी.


वैसे लॉकडाउन को लेकर सबसे विश्वसनीय बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का माना जा सकता है, जिसमें उन्होंने आश्वत किया है – ‘15 अप्रैल से लॉकडाउन खुल जाएगा, लेकिन पाबंदियां खत्म नहीं होंगी.’ उनके बयान के बावजूद पहली बार इतना लंबा एकांतवास झेलने को मजबूर हर आय व आयु वर्ग के नागरिकों की आशंकाएं बढ़ रही हैं क्योंकि कोरोना संक्रमण अनियंत्रित होने के कारण नोएडा में धारा 144 की अवधि 30 अप्रैल तक बढ़ा दी गई है और राज्यों में छिपे संक्रमित व्यक्तियों की पूर्ण निशानदेही नहीं हो पा रही. जाहिर है जैसे-जैसे इनकी जांच और परीक्षण का दायरा बढ़ेगा, मरीजों की संख्या भी बढ़ेगी. इन बढ़े हुए आंकड़ों के बीच सरकार लॉकडाउन खत्म करने का क्या तर्क देगी?


देश के कुछ समाजशास्त्रियों का कहना है कि भारत की उत्सवधर्मी और गहरे मेल-जोल वाली संस्कृति की अनदेखी करते हुए अगर आधी-अधूरी तैयारियों के बीच लॉकडाउन खोल दिया गया, तो सामुदायिक संक्रमण कई गुना तेजी से बढ़ेगा और हालात बेकाबू हो जाएंग़े. पहले जनता कर्फ्यू के बाद समूह में शंख, घंटा, थाली बजाने वाले लोग और अब चैत्र नवरात्रि के दौरान धार्मिक स्थलों पर उमड़ रही भीड़ लॉकडाउन के उद्देश्य को ही बेमानी बना चुकी है. आगे आने वाली जयंतियों और त्योहारों पर जमावड़ों का आलम क्या होगा, कोई नहीं जानता. दूसरी ओर अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लोग कोरोना से तो रोकथाम के उपाय करके किसी तरह बच जाएंगे लेकिन उत्पादन गतिविधियां ठप रहने से करोड़ों लोग भूखे मर जाएंगे, और मृतकों में सिर्फ गरीब ही शामिल नहीं होंगे!


भारत ही नहीं, कोरोना वायरस की बाढ़ रोकने के लिए चीन से शुरू करके इटली, फ्रांस, आयरलैंड, ब्रिटेन, डेनमार्क, न्यूजीलैंड, पोलैंड और स्पेन समेत कई देशों में धड़ाधड़ लॉकडाउन किया गया. लेकिन अब इसे खत्म करने को लेकर दुनिया भर में दो विचार आमने-सामने खड़े हो गए हैं. यह बहस जोरों पर है कि पहले कोरोना वायरस से हो रही मौतें रोकी जाएं या रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था संभालने को प्राथमिकता दी जाए. इसी कशमकश के चलते अमेरिका में लॉकडाउन टलता रहा था और आज हालत यह है कि अब तक उसके 3 लाख से ज्यादा नागरिक इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं तथा कई हजार लोगों की मौत हो चुकी है. आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाने के चलते फैली बेरोजगारी के दरम्यान करोड़ों अमेरिकी नागरिक अपने-अपने राज्यों में बेरोजगारी भत्ता पाने के आवेदन कर रहे हैं.


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी एलान कर दिया है कि मंदी आ चुकी है और इस बार यह 2008 के आर्थिक संकट से अधिक भयावह होगी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी महामारी या आपदा में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ही ठप हो जाए! भारत जैसे विकासशील देशों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह आर्थिक संकट विकसित देशों की तुलना में कई गुना भयंकर साबित हो सकता है. खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते विशाल वर्कफोर्स को दोबारा कार्यरत करने में भारत के पसीने छूट जाएंगे.


गई! अब डब्ल्यूएचओ और आईएमएफ ने जोर देकर कहा है कि फिलहाल लोगों की जान बचाना नौकरी-धंधा बचाने से कहीं ज्यादा जरूरी है. अगर लोग जिंदा रहे तो अर्थव्यवस्था को बाद में भी संवारा जा सकता है. कोरोना वायरस पर नियंत्रण पाना सरकारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.


हर देश में लॉकडाउन करने का एक ही मकसद था कि लोग एक-दूसरे के संपर्क में ना आने पाएं और संक्रमण पर लगाम लगे. चूंकि अन्य फ्लू वायरस के मुकाबले कोविड-19 से संक्रमित हुआ व्यक्ति शख्स अन्य 4-6 लोगों को संक्रमित कर सकता है, इसलिए लॉकडाउन के दौरान बड़े पैमाने पर लोगों की टेस्टिंग होते रहना भी जरूरी है. लेकिन क्या भारत में ऐसा हो पाया है? अस्पतालों और लैब्स को टेस्टिंग किट उपलब्ध न कराने के पीछे मरीजों की संख्या छिपाने की साजिश तो नहीं हो रही है? इस संबंध में एक बीमार महिला डॉक्टर की पोस्ट भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई है.


बिहार के नितीश कुमार और दिल्ली के सीएम केजरीवाल केंद्र सरकार से पर्याप्त परीक्षण किट, मास्क और चिकित्सकीय उपकरण न मिलने का रोना रो रहे हैं. कोरोना के मरीजों का निहत्थे होकर उपचार कर रहे सैकड़ों डॉक्टरों के संक्रमित हो जाने के समाचार हैं. इन डॉक्टरों को भी उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है. भोजन और चिकित्सा के अभाव में संक्रमण के संदिग्ध लोगों के क्वारेंटाइन केंद्रों से निकल भागने की खबरें आ रही हैं! ऐसे में लॉकडाउन खुलेगा तो देश भर में जहां-तहां फंसे लोगों को अपने घर की ओर भागने से कैसे रोका जा सकेगा? उनकी टेस्टिंग कैसे होगी? देशबंदी के बावजूद तबलीगी जमात के संक्रमित लोगों तक को तो सरकार खोज नहीं पा रही है!


माना कि लोग मुश्किलों में हैं और अलग-अलग वजहों से अपनी-अपनी जगह परेशान हैं. उन्हें राहत देने के लिए लॉकडाउन को खत्म करना लाजिमी है, लेकिन क्या हम अपनी हरकतों और रवैये से बाज आ चुके हैं? क्या केंद्र और हमारी राज्य सरकारें लॉकडाउन के बाद पैदा होने वाले हालात से निपटने के लिए चाक-चौबंद हैं? जरूरी है कि कोरोना की आफत से बचने के लिए


इतना ही नहीं, यह प्रश्न दुनिया के सामने नैतिकता और मानवता का मूल प्रश्न बन कर उभरा है. हमने देखा है कि इटली में कोरोना संक्रमित बूढ़ों पर जवान मरीजों को बचाने की तरजीह दी केंद्र सरकार को किसी भावनात्मक दबाव में नहीं बल्कि जमीनी सच्चाई और अपनी तैयारियों का ठोस आकलन करने के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए.


-विजयशंकर चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
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