बिहार में सीतामढ़ी की ओर से मुजफ्फरपुर आ रही जिस बोलेरो गाड़ी ने धरमपुर के स्कूल से पढ़ कर आ रहे 9 मासूम बच्चों की कुचलकर जान ले ली, उसका ड्राइवर शराब के नशे में धुत्त था. वह किस राजनीतिक दल का नेता या समर्थक था, इसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि शराब भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, आरजेडी, जेडीयू इत्यादि की राजनीतिक शिनाख्त करके मगज में नशा नहीं पैदा करती. बल्कि मेरा सवाल यह है कि जिस बिहार में पूर्ण शराबबंदी आयद है, वहां उस ड्राइवर (कथित भाजपा नेता) को शराब कैसे और कहां से उपलब्ध हो गई? आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने तो यहां तक आरोप लगाया था कि शराबबंदी के बाद बिहार में शराब की होम डिलीवरी होने लगी है. अर्थात् दारू ने दूध का रूप धारण कर लिया है!


करीब दो साल पहले जब 10 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले सूबे बिहार में भारत का सबसे कड़ा शराबबंदी कानून लागू हुआ तो पत्रकार डॉ. दीपक श्रीवास्तव ने एक पैरोडी लिखी थी- ‘पटना-छपरा-दरभंगा तक सूख गया रस का प्याला, हाजीपुर के पुल पर केले अब बेच रही है मधुबाला, सुन भाई बिहार में नया फरमान चला नीतीश वाला, पीकर गर ससुराल गए तो जेल जाएगा ससुरा-साला…….. नया कानून बना बिहार में पर है बड़ा गड़बड़झाला, यहां बनी विष से भी घातक पैमाने से छलकती हुई हाला!”


लेकिन गड़बड़झाला यहीं तक सीमित नहीं है. सोमवार को झारखंड की राजधानी रांची में शराबबंदी का आवाहन करने पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद स्वीकार कर लिया- “उत्तर प्रदेश, झारखंड और हरियाणा के कुछ शराब धंधेबाज जरूर चोरी-छिपे हमारे यहां धंधेबाजी कर रहे हैं, लेकिन ऐसे लोग पकड़े भी जा रहे हैं. इसे पूरी तरह रोकने के लिए बिहार सरकार शीघ्र ही एक फोन नंबर जारी करेगी, जिस पर बिना अपनी पहचान जाहिर किए शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी.” पिछले साल नीतीश हथियार डालते हुए कह रहे थे- “हम सब दिन बोलते हैं, कितना भी सुधार का कार्यक्रम कीजिए, कुछ धंधेबाज ऐसे होंगे ही जो उल्टाब-पुल्टा धंधा करते हैं. धंधेबाज की मदद करने वाले लोग सरकारी तंत्र में भी मिलेंगे.” यानी आज भी कहीं कुछ बदला नहीं है.


सूबे में इतना बदलाव अवश्य आया है कि गांव-जवार में शराबखोरी से जुड़ी बीमारियां घटी है, अपराधिक वारदात कम हुई है, घरेलू हिंसा में महिलाएं कम पिस रही हैं, मेहनतकश तबका अपना पैसा शराब की जगह घर-गृहस्थी में खर्च करने लगा है. लेकिन दूसरी तरफ नजर डालें तो शराबबंदी 100% हुई मगर अवैध शराब की बिक्री 110% तक बढ़ गई! शराब की तस्करी बढ़ने के साथ-साथ ये तथ्य भी गौर करने लायक हैं कि गांजा की खपत में बढ़ोत्तरी हो गई है और अफीम की खेती का रकबा कई गुना बढ़ गया है! बिहार में लोग चरस, अफीम, गांजा, भांग के सेवन की ओर दौड़ चले हैं. यानी कान घुमाकर पकड़ने वाली बात हो गई और राज्य को नशामुक्त बनाने का सपना सपना ही रह गया है.


शराबबंदी की सबसे ज्यादा मार भी गरीब तबके पर ही पड़ी है. रईस और रसूखदार लोग बिहार के बाहर दिल्ली-मुंबई, यानी कहीं भी जाकर बलानोशी कर सकते हैं. जिनके पास पैसा है उनके लिए तो डोर-टू-डोर शराब उपलब्ध है. लेकिन जिनकी देह दिन भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद शराब मांगती है, वे गरीब कहां जाए! उन्हें अवैध रूप से बनने वाली जहरीली शराब की शरण में जाना ही पड़ता है. शराबबंदी शुरू होते ही गोपालगंज में ज़हरीली शराब पीने से 18 मजदूरों की मौत हो गई थी. शराबबंदी के बाद सबसे पहली सजा जिन्हें हुई, वे भी कोई अमीरजादे नहीं बल्कि दिहाड़ी मजदूर ही थे. जहानाबाद के मस्तान मांझी और पेंटर मांझी को शराब पीने के जुर्म में पांच साल की जेल और एक-एक लाख रुपए का जुर्माना हुआ था. अब तक इस कानून के तहत 70 हजार से ज्यादा लोगों को जेल भेजा जा चुका है, इनमें से ज्यादतर लोग तरीब तबके के लोग हैं.


नीतीश द्वारा आयद शराबबंदी बुरी चीज नहीं थी. लेकिन इसे बेहतर ढंग से अमल में लाने को लेकर कहीं कभी कोई प्लानिंग नजर नहीं आई. इस निर्णय के पीछे समाज की बेहतरी से कहीं ज्यादा महिलाओं के वोट खींचने का लोभ दिखाई दिया. बिहार का जो मुसहर समुदाय शराब बनाने और सुअर पालने में माहिर था, शराबबंदी के बाद वैकल्पिक रोजगार के अभाव में बालश्रम और बालविवाह के दलदल में धंसने लगा है. अमीरजादे शराब के नशे में गरीबों के मासूम बच्चों को गाड़ियों से कुचल कर भाग रहे हैं!


ऐसा भी नहीं है कि शराबबंदी लागू करने के लिए नीतीश सरकार ने कुछ नहीं किया. लाखों लीटर देसी-विदेशी शराब नष्ट की गई, शराब पीकर वाहन चलाने वाले और तस्करी में इस्तेमाल होने वाले वाहन जब्त किए गए, उनको सजा और नीलामी भी हुई, शराब का धंधा चलाने वाले निजी भवनों, भूखंडों और होटलों को सील किया गया, और तो और कई पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त भी कर दिया गया, लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं.


इतिहास बताता है कि पूर्ण शराबबंदी के चक्कर में अमेरिका तक अपने हाथ जला चुका है. भारत के कई राज्य भी इसका अपवाद नहीं हैं (मेरा ही आलेख है- http://abpnews.abplive.in/india-news/bihar-imposes-total-alcohol-ban-354323/ . इससे शराब माफिया फलता-फूलता है और गरीब मारा जाता है. आज राजनीतिक सरपरस्ती में बिहार के अंदर ही अवैध शराब बनाने वाला माफिया सक्रिय है, जिस पर नकेल कसने में नीतीश अप्रभावी रहे हैं. वैसे भी जब तक पड़ोसी राज्यों से अवैध शराब की तस्करी पूरी तरह रोकी नहीं जाती तब तक बिहार में पूर्ण शराबबंदी की सफलता का कोई अवसर भी नहीं है.


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