बरसों पहले ओशो रजनीश ने अपने एक प्रवचन में कहा था कि राजनीति एक ऐसी बेमुरव्वत चीज है, जहां एक इंसान अपने सगे-संबंधियों को तो छोड़ सकता है लेकिन एक कुर्सी की मार्फत मिलने वाली ताकत पाने के लिए इतना बौरा जाता है कि वो कभी अडोल्फ हिटलर बन जाता है, तो कभी माओत्से तुंग. तब उसे बेगुनाह लोगों के शरीर से निकलने वाला लहू भी पानी ही दिखने लगता है.


राजनीति को लेकर ओशो की अपनी अलग थ्योरी रही है, जो दुनिया भर के नेताओं के लिये पहले भी विवादास्पद रही और अगर आज भी उस पर कोई बहस छेड़ दे, तो वह एक बड़े झमेले की वजह ही बनेगी. कुछ लोगों के लिए वह थ्योरी सही भी हो सकती है तो कुछ के लिए गलत. लिहाजा हम इस पचड़े में पड़े बगैर सीधे तौर पर अपने देश की उस विशुद्ध राजनीति की बात करते हैं, जो किसी को फर्श से अर्श पर ले जाने में ज्यादा देर नहीं लगाती.


इसलिए सियासी गलियारों में कल से एक सवाल उठ रहा है कि एक नौकरशाह को राजनीति में लाने और उसे अपना सबसे करीबी बनाने का खामियाजा आखिर क्या भुगतना पड़ सकता है, इसका अहसास बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को क्या अब नहीं हो रहा होगा? केंद्र की मोदी सरकार में उनकी पार्टी जदयू से इकलौते केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह ने अपनी पार्टी लाइन से हटकर अब बीजेपी के सुरों पर अपनी तान देना शुरु कर दी है. इसलिए सियासी हलकों में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि वे जल्द ही नीतीश का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम सकते हैं.


दरअसल, केंद्रीय मंत्री और जनता दल युनाइटेड के नेता आरसीपी सिंह ने गुरुवार को आरएसएस (RSS) की थिंक टैंक संस्था रामभाऊ म्हालगिनी प्रबोधिनी की ओर से 'परिवारवाद और उसके राजनीतिक परिणाम' शीर्षक पर आयोजित एक समारोह में जो बयान दिया है, वह नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा झटका लगने के साथ ही ये संकेत देता है कि सिंह अब बीजेपी की तरफ से बैटिंग करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.


आरसीपी सिंह ने परिवारवाद की शुरुआत के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके परिवार पर हमला बोलते हुए दावा किया कि आज़ादी के बाद कांग्रेस के भीतर कोई भी नेहरू जी को प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहता था. उनके मुताबिक़ कांग्रेस में संगठन और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे. इस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश की राजनीति में परिवारवाद की नींव तभी पड़ गई थी.


उनके इस बयान पर पटना से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में हलचल मची हुई है कि क्या अब वे नीतीश को 'अलविदा' कहने वाले हैं. वह इसलिये कि सिंह का राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है. बिहार की पांच राज्यसभा सीटों के चुनाव के लिए नामांकन भरने की आख़िरी तारीख 30 मई है. उससे ठीक पहले संघ व बीजेपी के बोल वाले इस बयान से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि अब वे बीजेपी की तरफ से दोबारा उच्च सदन में आने के मूड में हैं, जो बिहार की सियासत में उलटफेर होने का भी एक बड़ा इशारा देता है.


आरसीपी सिंह ने संघ की इस संस्था में दिए अपने भाषण में विस्तार से ये भी बताया कि किस तरह परिवारवाद के चलते कांग्रेस के भीतर पटेल और अंबेडकर जैसे नेताओं की अवहेलना की गई. उन्होंने कहा कि 1954 में भारतरत्न की शुरुआत होने के अगले ही साल यानी 1955 में नेहरू ने भारतरत्न ले लिया जबकि पटेल को 1991 में राजीव गांधी के साथ भारतरत्न दिया गया. आरसीपी सिंह का ये बयान चौंकाने वाला इसलिए भी है क्योंकि आज तक नीतीश कुमार और जेडीयू के अन्य नेता जवाहर लाल नेहरू पर सीधा हमला करने से बचते रहे हैं.


आरसीपी सिंह के नौकरशाही से राजनीति में कूदने की कहानी भी दिलचस्प है. साल 1996 में बेनी प्रसाद वर्मा केंद्रीय दूर संचार मंत्री थे तब आरसीपी सिंह उनके निजी सचिव थे. बेनी प्रसाद वर्मा ने ही आरसीपी सिंह की मुलाक़ात नीतीश कुमार से कराई थी. उसके बाद नीतीश कुमार जब अटल बिहारी वाजपेयी वाली केंद्र सरकार में रेलमंत्री बने, तब नीतीश ने उन्हें अपना निजी सचिव बना दिया. इसकी बड़ी वजह ये भी थी कि दोनों का नाता एक ही जिले नालंदा से है और दोनों एक ही जाति यानी कुर्मी समाज से आते हैं. नीतीश कुमार जब तक केंद्र में मंत्री रहे तब तक मंत्रालय में आरसीपी सिंह का कद बढ़ता रहा.


जब 2005 में नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने तो यूपी कैडर के अधिकारी को अपने राज्य में पदस्थापित कराने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया. आरसीपी सिंह प्रधान सचिव के तौर पर पटना चले गए और देखते ही देखते वे नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए. शासन के कामकाज के साथ-साथ वे जनता दल यू में भी अहम होते चले गए. बाद में,उन्होंने  IAS की नौकरी से वीआरएस ले लिया और राजनीति को अपना अखाड़ा बना लिया. जेडीयू में शामिल होने के बाद आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार ने कई अहम जिम्मेदारी सौंपी. यहां तक कि राज्यसभा भेजने के अलावा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बना डाला.


शायद इसीलिये ओशो ने सही कहा था कि सियासत कभी किसी की सगी न हुई है और न ही होगी. अपना सबसे वफादार दोस्त सियासत के नाज़ुक मोड़ पर अगर यों ही छोड़कर चला जाता है, तब नीतीश कुमार को पाकिस्तान के गायक अताउल्लाह खान की गाई इस नज़्म को जरुर याद करना चाहिए- "अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का,यार ने ही लूट लिया घर यार का."


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


इसे भी पढ़ेंः
हिंदू परिवारों में भी आखिर क्यों पैदा होना चाहिए ज्यादा बच्चे?



कहां जाकर रुकेगा कांग्रेस में इस्तीफा देने का ये सिलसिला?