(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
सुशील कुमार किसी नए पहलवान का रास्ता तो नहीं रोक रहे हैं?
सुशील कुमार सिर्फ 6 मिनट में विश्व चैंपियनशिप से बाहर हो गए. 2020 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने की उम्मीद उन्होंने अभी छोड़ी नहीं है. लेकिन क्या अब उनका वक्त खत्म हो चुका है. आंकलन कर रहे हैं वरिष्ठ खेल पत्रकार शिवेंद्र कुमार सिंह
सुशील कुमार देश के महान खिलाड़ियों में शुमार हैं. उन्होंने दो दो ओलंपिक मेडल जीते हैं. जो कीर्तिमान किसी ने नहीं बनाया. उन्होंने 2008 बीजिंग और 2012 लंदन ओलंपिक्स में मैडल जीता था. करोड़ों खेल प्रेमियों ने बीजिंग में उनके ब्रांज मेडल और लंदन में उनके सिल्वर मैडल का जश्न मनाया है. उनकी इन उपलब्धियों के बाद भी खेल की दुनिया में एक कहावत बहुत मशहूर है. ये कहावत खिलाड़ियों के संन्यास को लेकर है. जिसे एक तरह से खिलाड़ियों के संन्यास को लेकर सुनहरी कहावत माना जाता है. कहते हैं कि बड़े से बड़े खिलाड़ी को मैदान तब छोड़ना चाहिए जब लोग उससे पूछें कि अभी क्यों, तब संन्यास नहीं लेना चाहिए जब लोग उससे पूछें कि अभी तक क्यों नहीं? क्या सुशील कुमार को जल्दी ही इसी सवाल का सामना करना पड़ेगा? सुशील विश्व चैंपियनशिप के पहले ही राउंड में हार गए. उन्हें अजरबेजान के पहलवान ने करीब 6 मिनट में ही हरा दिया. वो भी तब जबकि वो 9-4 की अहम बढ़त बना चुके थे. इसके बाद वो लगातार 7 अंक गंवा बैठे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद सुशील कुमार ने कहाकि वो 2020 ओलंपिक में क्वालीफाई करने के लिए और मेहनत करेंगे. हाल के दिनों में सुशील जिन बड़ी प्रतियोगिताओं में मैट पर उतरे हैं उसमें उनके प्रदर्शन को देखने के बाद ये सवाल उठेंगे कि 74 किलोग्राम वर्ग में क्या वो ‘ऑटोमैटिक च्वॉइस’ रह गए हैं.
सुशील के खेलने पर लगातार होते हैं विवाद
पिछले कई साल से सुशील जब जब किसी बड़ी चैंपियनशिप के लिए चुने गए उसको लेकर छोटा-बड़ा विवाद जरूर हुआ. 2016 रियो ओलंपिक से पहले नरसिंह यादव का ‘एपीसोड’ तो महीनों तक चर्चा में रहा. इसके बाद भी सुशील कुमार को जब चुना गया तो ट्रायल्स पर कोई नो कोई सवाल जरूर उठा. ये सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि अब नए पहलवानों को ये समझ आने लगा है कि 74 किलोग्राम वेट कैटेगरी में सुशील कुमार अब अपराजित नहीं हैं. अब उन्हें हराया जा सकता है. एशियाई खेलों में जब सुशील कुमार करीब 15 सेकेंड में ही बाउट हार गए तो पहलवानी की दुनिया में ये चर्चा खूब चली कि क्या उनका समय अब खत्म हो गया है. अगर ये मान भी लें कि सुशील मैट पर वापसी के लिए जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं तब भी व्यवहारिक स्थिति यही है कि अब कम से कम वो भारतीय पहलवानी का भविष्य नहीं कहे जा सकते हैं. सुशील कुमार करीब 37 साल के होने वाले हैं. ऐसे में उन्हें भी अपने भविष्य पर गंभीरता से सोचना होगा. एक कामयाब खिलाड़ी और एक महान खिलाड़ी के बीच के फर्क को उन्हें वक्त रहते समझना होगा.
क्या सुशील को योगेश्वर जैसा फैसला करना होगा ?
सुशील कुमार के लिए राहत की बात बस इतनी है कि पहलवानी की समझ रखने वालों ने विश्व चैंपियनशिप में उनके प्रदर्शन को एशियाई खेलों से बेहतर आंका है. लेकिन हर किसी के मन में यही है कि अब इंटरनेशनल लेवल पर सुशील के लिए खुद को साबित करना असंभव जैसा है. सुशील वाकई अगर देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उन्हें वही करना होगा जो योगेश्वर दत्त ने किया है. आपको याद दिला दें कि 2018 एशियन गेम्स में योगेश्वर ने खुद की बजाए बजरंग पूनिया को भेजने का फैसला किया था. ये किस्सा इसलिए दिलचस्प है क्योंकि शायद इसी किस्से में अब सुशील कुमार का भविष्य छिपा हुआ है. हुआ यूं था कि 2014 में योगेश्वर ने गोल्ड मैडल जीता था और बजरंग पूनिया ने सिल्वर मैडल. योगेश्वर ने बाद में अपना गोल्ड मैडल बजरंग के हाथ में पकड़ाया था और खुद सिल्वर मैडल ले लिया. उस दिन योगेश्वर ने बजरंग से कहा था कि 2018 में ये गोल्ड मैडल उनके गले में होना चाहिए. 2018 में जब बजरंग एशियन गेम्स के लिए जा रहे थे तो उन्होंने वायदा किया था कि वो गोल्ड मैडल लेकर आएंगे. योगेश्वर और बजरंग का रिश्ता एक गुरू या बड़े भाई जैसा है. योगी खुद पहलवानी छोड़ चुके हैं लेकिन उनके बाकि रह गए सपने पूरे करने के लिए वो बजरंग को तैयार कर रहे हैं. कुछ ऐसी ही कहानी पुलेला गोपीचंद की भी है. गोपीचंद को चोट की वजह से अपना करियर जल्दी खत्म करना पड़ा था लेकिन उन्होंने देश को सायना नेहवाल और पीवी सिंद्धू जैसे ओलंपिक मेडलिस्ट दिए हैं.