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अमेरिका और चीन के बीच तल्ख़ी बढ़ाने वाला गुब्बारा क्या भारत में भी कर रहा है जासूसी ?

कुछ साल पहले तक कोई ये सोच भी नहीं सकता था कि महज एक बैलून यानी गुब्बारा दुनिया की दो बड़ी ताकतों के बीच दुश्मनी को और बढ़ाने की वजह भी बन सकता है, लेकिन चीन ने वह कर दिखाया. इस बारे में अमेरिका ने भी कभी सोचा नहीं होगा कि वह उसके सबसे महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों की जासूसी करने के लिए एक भारी-भरकम बैलून का इस्तेमाल भी कर सकता है. हालांकि अमेरिका ने तीन बसों के आकार जितनी लंबी साइज वाले इस बैलून को मार गिराया है, इससे चीन भड़क उठा है और उसने इसका नतीजा भुगतने की धमकी तक दे डाली है. अब सवाल उठता है कि जो चीन तकरीबन दस हजार किलोमीटर दूर अमेरिका में जासूसी की हिमाकत कर सकता है, तो वह भारत में ऐसा क्यों नहीं कर सकता, जो कि उसका सबसे नजदीकी पड़ोसी है और जहां उसे जासूसी करने के लिए इतने बड़े साइज के गुब्बारे की जरूरत भी नहीं होगी?

हालांकि चीन से लगी भारत की सीमा यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर पिछले ढाई साल से भी ज्यादा वक्त से दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव बना हुआ है. ऐसे में,इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि संभव है कि चीन छोटे साइज व आसानी से डिटेक्ट न हो सकने वाले बैलून से भारत की भी जासूसी कर रहा हो. वैसे इसकी संभावना फिलहाल बहुत कम ही है क्योंकि हमारी सेना ने अभी तक हमारे एयर स्पेस में ऐसा कोई ऑब्जेक्ट नहीं देखा है, जिसके आधार पर कहा जाये कि कोई मुल्क हमारी जासूसी कर रहा है. हालांकि रक्षा विश्लेषक मानते हैं कि LAC पर हमारा एयर सर्विलांस सिस्टम पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा आधुनिक हुआ है और इसे लगातार और मजबूत करने की प्रक्रिया जारी है, लेकिन कम साइज वाले बैलून को डिटेक्ट करना कभी थोड़ा मुश्किल भी हो जाता है क्योंकि वह इतनी ऊंचाई पर होता है कि सर्विलांस सिस्टम की रेंज से बाहर हो जाता है.

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक. इस तरह के बैलून को डिटेक्ट कर भी लिया जाये, तो भी सबसे महत्वपूर्ण बात होती है उसका आइडेंटिफिकेशन करना, यानी यह पता लगाना कि वह कहां से उड़कर आया है. आसान भाषा में कहें, तो उसके सर्विलांस आउटपुट का पता लगाना कि वह कहां से ऑपरेट हो रहा है और उसके अंदर क्या है, जिसके आधार पर ये नतीजा निकाला जा सके कि उसका इस्तेमाल जासूसी करने के मकसद से ही हो रहा है. उसके बाद ही उसकी ऊंचाई को देखकर उसे इंगेज करके मार गिराने की कार्रवाई की जाती है. हालांकि भारत इस तरह के बलून को मार गिराने में पूरी तरह से सक्षम है क्योंकि हमारे पास सुखोई-30 और राफेल जैसे फाइटर जेट हैं, जिनकी मिसाइलों के  जरिये इसे आसानी से इंगेज किया जा सकता है.

दरअसल,अमेरिका ने भी चीन के इस जासूसी गुब्बारे को मार गिराने से पहले पुख्ता तौर पर ये पता लगाया था कि इस बैलून को उसके एयर स्पेस में भेजने का एकमात्र मकसद जासूसी करना ही है. अमेरिकी रक्षा मुख्यायल पेंटागन ने कहा कि जासूसी गुब्बारा कुछ दिन पहले चीन से अलास्का के पास अलेउतियन आईलैंड आया था. यहां से उत्तर-पश्चिम कनाडा होते हुए यह उत्तरी अमेरिका के मोंटाना शहर पहुंचा.चूंकि वह साइज में इतना बड़ा था, जो ज्यादा समय तक देश में रह सकता था. हालांकि चीन ने अपनी सफाई में यही कहा कि यह बैलून रास्ता भटक गया था. चीन के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अमेरिका हवाई क्षेत्र के ऊपर देखे गए गुब्बारे का इस्तेमाल शोध के लिए किया जाता है.

एपी (AP) की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के विदेश मंत्रालय ने आगे कहा, यह एक नागरिक हवाई जहाज है, जिसका उपयोग अनुसंधान, मुख्य रूप से मौसम संबंधी उद्देश्यों के लिए किया जाता है. सीमित स्व-संचालन क्षमता और पश्चिमी हवाओं के प्रभाव की वजह से यह जहाज अपने तय रूट से भटक गया है. साथ ही उसने इस मुद्दे पर शांति बरतने की अपील भी की. विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की प्रस्तावित चीन की यात्रा का रद्द होना दुर्भाग्यपूर्ण है और अमेरिका को ऐसे मुद्दों पर अपना रवैया बदलना चाहिए. दरअसल, मोंटाना में चीन के संदिग्ध जासूसी गुब्बारे से अमेरिका की चिंता ज्यादा इसलिये बढ़ गई थी क्योंकि सुरक्षा की नजर से मोंटाना अमेरिका का बेहद संवेदनशील इलाका है.

यहां अमेरिकी एयरफोर्स का स्पेशल बेस है. इसके साथ ही यहां से इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइलें भी ऑपरेट की जाती है. अमेरिका में इस तरह के तीन न्यूक्लियर मिसाइल क्षेत्र ही हैं, जिनमें से एक मोंटाना है. अब सवाल आता है कि जासूसी गुब्बारे आख़िर हैं क्या? विशेषज्ञ कहते हैं कि हाई एल्टीट्यूड गुब्बारे क्षेत्र के स्थानीय मौसम में बदलाव की निगरानी के लिए दुनिया भर में तैनात मौसम के गुब्बारे के समान हैं. हालांकि, जब जासूसी गुब्बारों की बात आती है, तो उनका उद्देश्य बदल जाता है. ये गुब्बारे जमीन से 24,000 से लेकर 37,000 मीटर ऊपर तक उड़ते हुए अपने काम को अंजाम देते हैं. यूएस एयर फोर्स के एयर कमांड एंड स्टाफ कॉलेज की 2009 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उपग्रहों के मुकाबले गुब्बारों से निगरानी करना आसान होता है. इसके जरिए करीब से बड़े भू-भाग को स्कैन किया जा सकता है. उपग्रहों के विपरीत इसे लॉन्च करने में बहुत कम खर्चा आता है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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