ये सिर्फ 'पठान' का विरोध है या फिर अभिव्यक्ति की आजादी पर ताला?
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किसी फिल्म के रिलीज होने से पहले ही उस पर विवाद खड़ा हो जाए तो आमतौर पर ये माना जाता है कि उस फिल्म के निर्माता ने ही इसे प्रायोजित करवाया होगा ताकि फ़िल्म हिट हो जाए. लेकिन अगले साल 23 जनवरी को शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की रिलीज होने वाली फिल्म "पठान" को लेकर जो बवाल अभी से मचा हुआ है उसे लेकर फ़िल्म इंडस्ट्री में भी ये फिक्र बढ़ गई है कि अब उसके मुंह पर भी टेप लगाने की तैयारी है.
हालांकि सरकार के सेंसर बोर्ड ने ही इस फ़िल्म को पास किया है लिहाज़ा सरकार की तरफ से बेशके हरी झंडी मिल गई हो लेकिन तमाम हिंदूवादी संगठन "पठान" फ़िल्म के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं. किसी चीज का विरोध करने-करवाने की एक नई परिभाषा ईजाद हो रही है ताकि सत्तारूढ़ पार्टी अपना पल्ला झाड़कर साफ बच निकले कि इससे तो हमारा कोई लेना-देना ही नहीं है.
शायद यही वजह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी की सरकार में छाती चौड़ी करके शेरों का विज्ञापन करने वाले बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन को भी ये कहना पड़ा कि "जब सिनेमा की बात आती है, तो अभिव्यक्ति की आजादी की अवधारणा पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं." "पठान" फ़िल्म को लेकर सारा बवाल भगवा या कहें कि केसरिया रंग को लेकर मचा हुआ है क्योंकि इसी रंग की बिकनी पहन दीपिका पादुकोण पर एक गाना फिल्मांकन किया गया है जिसके बोल में 'ये बेशरमी रंग' का इस्तेमाल किया गया है.
वैसे तो सच्चाई ये है कि कुदरत ने इस संसार में जन्म और मृत्यु के अलावा हवा-पानी और सात रंगों का खेल भी अपने हाथ में ही रखा हुआ है. विज्ञान के मुताबिक प्रकृति के पांच ही मूल रंग हैं जिसमें भगवा या केसरिया शामिल नहीं है. लिहाजा, ये रंग इंसान के ही बनाये हुए हैं. लेकिन माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी ने ही सबसे पहले इस रंग की उत्पत्ति की और इसे हिंदू धर्म से जोड़ा गया जिसे बाद के वर्षों में आरएसएस यानी संघ ने भी अपनाया. छत्रपति शिवाजी के अनुसार ध्वज का भगवा रंग उगते हुए सूर्य का रंग है. अग्नि की ज्वालाओ का रंग है. उगते सूर्य का रंग ज्ञान, वीरता का प्रतीक माना गया और इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इसे सबका प्रेरणा स्वरूप माना. इसीलिये शिवाजी ने अपने ध्वज का रंग केसरिया ही रखा.
ये तो हुई धार्मिक आस्था की बात लेकिन वैज्ञानिकों की खोज के अनुसार रंग तो मूलत: 5 ही होते हैं- काला, सफेद, लाल, नीला और पीला. काले और सफेद को रंग मानना हमारी मजबूरी है जबकि यह कोई रंग नहीं है. इस तरह तीन ही प्रमुख रंग बच जाते हैं- लाल, पीला और नीला. जब कोई रंग बहुत फेड हो जाता है तो वह सफेद हो जाता है और जब कोई रंग बहुत डार्क हो जाता है तो वह काला पड़ जाता है. लाल रंग में अगर पीला मिला दिया जाए तो वह केसरिया रंग बनता है. नीले में पीला मिल जाए तब हरा रंग बन जाता है. इसी तरह से नीला और लाल मिलकर जामुनी बन जाते हैं. आगे चलकर इन्हीं प्रमुख रंगों से हजारों रंगों की उत्पत्ति हुई.
इस सारे विवाद को गौर से समझने की कोशिश करें तो इसके सिर्फ दो ही पहलू नजर आते हैं. महज़ एक रंग से अगर किसी की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचती है तो फिर या तो उसे मानने वाले लोगों की सहनशीलता ही कमजोर है या फिर इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ताला लगाने की कोशिश के रूप में ही देखा जायेगा. दुनिया के सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाले हमारे देश में ऐसी हर कोशिश के खिलाफ पहले भी आवाजें उठती रही हैं आंदोलन भी हुए हैं और सरकारों को ऐसे फैसलों को वापस लेने पर मजबूर भी होना पड़ा है. पिछले 75 साल में ऐसी कई मिसालें देश की जनता ने देखी हैं.
पूरे विवाद को समझने की कोशिश करें तो 'पठान' फ़िल्म का विरोध सिर्फ धार्मिक भावना से नहीं जुड़ा है बल्कि इसमें राजनीति का भी बेहद तीखा तड़का लगा हुआ है जो दिल्ली के जेएनयू में हुए छात्र-आंदोलन की याद दिलाता है. दरअसल, दीपिका पादुकोण साल 2020 में जेएनयू गई थी और उन्होंने वहां छात्रों के साथ हुई हिंसा का विरोध किया था. तब दीपिका के इस कदम को वामपंथी छात्र संगठनों के समर्थन के रूप में देखा गया था और बीजेपी व संघ के लोगों ने इसकी जमकर आलोचना भी की थी. इसीलिये अब 'पठान' फ़िल्म रिलीज होने से पहले ही दीपिका की जेएनयू की तस्वीरे वायरल हो रही हैं और फिल्म के बायकॉट करने की अपील की जा रही है.
"पठान" रिलीज होने से पहले ही इसके विरोध में देश में जो माहौल बनाया जा रहा है उसे देखते हुए लगता नहीं कि ये इतनी आसानी से सिल्वर स्क्रीन पर देखने को मिलेगी. "पठान" का विरोध तो इसका पहला टीजर रिलीज होते ही शुरू हो गया था. दरअसल इस टीजर में शाहरुख खान एक जगह कहते हैं कि “भारत में असहिष्णुता फैल रही है.” बस, इस वाक्य को कट्टरपंथी कहलाने वाली ताकतों ने पकड़ लिया. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तो यह चेतावनी दी है कि फ़िल्म से अगर आपत्तिजनक आउटफिट वाले सीन न हटाए गए तो एमपी में यह फिल्म रिलीज ही नहीं होगी. वहीं, यूपी के अयोध्या में भी ‘पठान’ के गाने में भगवा का विरोध करते हुए संत समाज ने नाराजगी जाहिर की है. संत समाज ने शाहरुख खान पर सनातन विरोधी होने का भी आरोप लगाया है. हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने फिल्म के बहिष्कार की अपील करते हुए विवादित बयान दे डाला है. उन्होंने कहा, जहां भी 'पठान' फिल्म लगे उस सिनेमाघर को फूंक डालो.”
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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