मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के इस आखिरी बजट को चुनावी बजट कहा जा रहा है, जो काफी हद तक सही भी कह सकते हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि इस बहाने से ही सही लेकिन समाज के हर वर्ग को लुभाने के लिए उसके हाथ में झुनझुना नहीं थमाया गया है, बल्कि कुछ ऐसी ठोस घोषणाएं की गई हैं, जिसे अगले साल भर के भीतर जमीनी स्तर पर पूरा करके दिखाना है. बजट पर गहराई से गौर करें, तो मोटे तौर पर इसमें दस ऐसे बड़े ऐलान किए गए हैं, जो केंद्र में मोदी सरकार की हैट्रिक बनाने का रास्ता खोलते हैं. लेकिन बजट तैयार करते वक़्त 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ही इस साल 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी बीजेपी के वोट बैंक को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया है.


राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर बीजेपी गिद्ध निगाह लगाए बैठी है, जहां वह कांग्रेस से सत्ता छीनने की तैयारी में है. देश की सबसे अधिक आदिवासी आबादी छत्तीसगढ़ में ही रहती है, लिहाज़ा उन्हें नई योजनाओं की सौगात देने में मोदी सरकार ने कोई कंजूसी नहीं बरती है. दरअसल, कोई भी सरकार बजट तैयार करने में चाहे जितनी दरियादिली दिखाए लेकिन वह विपक्ष के हमले से इसलिए बच नहीं सकती क्योंकि उसकी राजनीति का आधार ही सरकार की कमियां निकालना और उस पर नुक्ताचीनी करना होता है. इस बजट पर विपक्षी नेताओं ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया दी है. लेकिन देश के अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने कुल मिलाकर बजट को अच्छा व संतुलित बताते हुए उसकी तारीफ ही की है. 


उसकी एक बड़ी वजह ये है कि लंबे अरसे के बाद सरकार ने इनकम टैक्स में छूट की सीमा को दो लाख रुपये बढ़ाते हुए सात लाख करके देश के नौकरीपेशा मध्यम वर्ग के चेहरे पर कुछ मुस्कान लाने का हौसला दिखाया है. इससे सबसे अधिक खुश महिलाएं हुई हैं, जिन्हें घर की रसोई का बजट संभालना होता है. पिछले दो चुनावों के ट्रेंड पर गौर करें, तो यही वर्ग बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक रहा है. उस लिहाज से इनकम टैक्स की छूट के ऐलान को 2024 के लिए मोदी सरकार का बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. हालांकि कुछ विश्लेषक मानते हैं कि मध्य वर्ग के लिए आयकर में छूट मिलना बेशक एक बड़ी राहत है लेकिन मोदी सरकार का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक 81 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन देने की योजना को साल 2024 तक आगे बढ़ाने के ऐलान ही है.


गरीबों को ये सौगात देकर सरकार ने बीजेपी के इस साइलेंट समझे जाने वाले वोट बैंक को और भी ज्यादा मजबूत कर लिया है, जिसका फायदा उसे इन नौ राज्यों के चुनाव में ही देखने को मिल जाएगा. बुधवार को पेश हुए बजट के मुताबिक़ सरकार इस पर दो लाख करोड़ रुपये ख़र्च करेगी. राजनीति के लिहाज से इसे बेशक अपने वोट बैंक को सुरक्षित करना कह सकते हैं लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों की निगाह में ये सरकार का एक साहसिक फैसला है और ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे परिवारों को मिल रही इस सौगात की बेवजह आलोचना नहीं की जानी चाहिए. शायद इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण के दौरान सरकार की इस योजना को आगे बढ़ाने का ऐलान करते हुए कहा कि यह एक ऐसा भारत बनाने की कोशिश का हिस्सा है जिसमें सभी ख़ुशहाल हों और सबकी हिस्सेदारी हो.


इसके अलावा बजट में गरीबों के लिए चलाई जा रही तीन अहम योजनाओं के लिए धन आवंटन में खासी बढ़ोतरी करके सरकार ने ये संदेश देने की कोशिश की है कि उन्हें अकेला नहीं छोड़ दिया गया है. आवास योजना, पेयजल योजना और आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजनाओं के आवंटन में बढ़ोतरी करके इसका फायदा उठा रहे लोगों के दायरे को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. इस बजट में आवास योजना के लिए 79,500 करोड़ रुपये आवंटित करने का ऐलान किया गया है जो 2022-23 के बजट के 48,000 करोड़ रुपये के मुकाबले 66 फीसद ज्यादा रखा गया है. इस योजना के तहत इस साल करीब 2.94 करोड़ गरीब लोगों को 2024 तक घऱ मुहैया कराने का लक्ष्य तय किया गया है. खास बात यह है कि इसमें से 2.12 करोड़ घरों का निर्माण पूरा हो चुका है और इन्हें गरीबों को सौंपा भी जा चुका है. यानी लोकसभा चुनाव से पहले 82 लाख और गरीब परिवारों के पास अपना आशियाना होगा.


पिछले सालों के कुछ बजट पर गौर करें, तो देश के आदिवासी समुदाय के उत्थान की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया गया था. कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के बहाने ही सही लेकिन इस बार उन्हें भी सौगात मिली है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन ने नई पीएमपीवीटीजी (प्रधानमंत्री विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) विकास मिशन की घोषणा करते हुए इसके लिए 15000 करोड़ रुपये का खाका पेश किया है. वित्त मंत्री के मुताबिक यह योजना जनजातीय समूहों की सामाजिक आर्थिक हालत में सुधार लाने और उनके निवास स्थल को बुनियादी सुविधाओं से युक्त बनाने के लिए तैयार की गई है. इसी तरह एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के बजट में भी पिछले बजट 594 करोड़ रुपये की तुलना में तीन गुना बढ़ोतरी करते हुए इसे 2000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.


हालांकि पूरे बजट में सरकार पर बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि उसने मनरेगा के बजट में इतनी जबरदस्त कटौती क्यों की है. इसी मुद्दे पर सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है. बता दें कि सरकार ने मनरेगा के बजट में सीधे 13 हजार करोड़ रुपये की कमी कर दी है, जो थोड़ी चौंकाने वाली बात है. मनरेगा का बजट पिछली बार की तुलना में इस साल घटाकर 60,000 करोड़ कर दिया गया है. जबकि पिछले बजट में मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे लेकिन बताया गया है कि अंत होते-होते सरकार ने इससे कई गुना ज्यादा खर्च किया, इसलिये कटौती करना जरूरी था. कुल मिलाकर बजट फिलहाल तो रुलाने वाला नहीं दिखता लेकिन ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा कि इसने महंगाई को कितना बढ़ाया और बेरोजगारी कितनी कम की?


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