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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

काबुल हमला: बेगुनाहों का खून बहाने वाला ये कौन-सा इस्लाम है?

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा करने के 11 दिनों तक चली शांति के बाद आखिर हुआ वही, जिसका अंदेशा भारत समेत दुनिया के तमाम ताकतवर मुल्कों को था. वह ऐसी शांति थी जो उस भयानक तूफ़ान आने से पहले होती है जिसके आगोश में कई जिंदगिया तबाह हो जाती हैं. काबुल में हुए हमलों के बाद अब वो मुल्क दुनिया में आतंकवाद का न सिर्फ सबसे बड़ा केंद्र बनता जा रहा है,बल्कि इससे निपटने के लिए  कई देशों को एकजुट होकर मुकाबला करने की रणनीति पर भी दोबारा सोचना होगा.

'ISIS का हाथ या पाक का भी साथ'
सवाल ये नहीं है कि इन हमलों के पीछे ISIS जैसा खूंखार आतंकवादी संगठन है या इसमें पाकिस्तान का भी हाथ है,बल्कि अहम मुद्दा ये है कि बहुत सारे मुल्कों को इस्लामिक स्टेट में बदलने का ख्वाब देखने और उसके लिए बेगुनाह मासूमों का खून बहाने वाले ये जिहादी आखिर किस इस्लाम के अनुयायी हैं? इस्लाम न तो ऐसी हिंसा की तालीम देता है और न ही मज़हब की पाक किताब कुरान की कोई आयत ही ऐसा करने की किसी मुस्लिम को इजाज़त ही देती है. इस हक़ीक़त से सब वाकिफ़ हैं कि आतंकवाद का न कोई मज़हब होता है और न ही कोई जाति लेकिन इन हमलों के बाद दुनिया के उन करोड़ों मुस्लिमों की जिंदगी पर दुश्वारी के बादल छा जाएंगे, जो अमन-चैन व भाईचारे के साथ ही जीने पर यकीन रखते हैं.

'आतंक से इस्लाम को किया बदनाम'
वैसे तो दुनिया के हर धर्म के ग्रंथ सिर्फ शांति व इंसानियत निभाने का ही पैगाम देते हैं लेकिन हक़ीक़त ये है कि आतंक फैलाकर किसी भी मुल्क को फतह करने का सपना देखने वालों ने इस्लाम को सबसे ज्यादा बदनाम किया है. अमेरिका के ट्विन टावर पर हुए सबसे बड़े हमले के बाद इस आतंकवाद को इस्लाम बनाम ईसाइयत की लड़ाई  की जो शक्ल दी गई थी, उसने दो दशक बाद फिर से अपना विकराल रुप दिखाना शुरू कर दिया है.

अतिरिक्त सेना बल भेज सकता है अमेरिका 
बेशक काबुल एयरपोर्ट के हमलों में कोई भारतीय नागरिक नहीं मारा गया लेकिन ये अमेरिका की तरह ही हमारे लिए ज्यादा बड़े खतरे की घंटी है क्योंकि भौगोलिक रुप से वो हमारे ज्यादा नजदीक है और पाकिस्तान इन आतंकी ताकतों का सबसे बड़ा हमदर्द है. लिहाज़ा, ये हमले पश्चिमी देशों से ज्यादा फिक्रमंद भारत को करते हैं. चूंकि अमेरिका ने ऐलान कर दिया है कि वो इन हमलों के आकाओं को बख्शेगा नहीं और जरुरत पड़ी, तो वह अतिरिक्त सेना बल अफगानिस्तान भेजने से पीछे नहीं हटेगा. इसलिए कह सकते हैं कि आने वाले दिन और ज्यादा भयावह होने वाले हैं. वहां औपचारिक तौर पर हुकूमत अभी किसी की भी नहीं है. ऐसी सूरत में सवाल उठता है कि क्या अमेरिकी फौज तालिबान से लड़ेगी या फिर इन हमलों के मास्टरमाइंड को पकड़वाने के लिए अमेरिका तालिबान को आर्थिक मदद की पेशकश करेगा? हो सकता है कि इन हमलों का एक बड़ा मकसद डराने के अलावा इफ़रात में पैसा वसूलना भी हो.

'अमेरिका ने की जल्दबाजी'
वैसे तो अंतराष्ट्रीय समुदाय के बीच अमेरिका की किरकिरी होना तभी शुरु हो चुकी थी जब फरवरी में उसने तालिबान पर भरोसा करते हुए दोहा में उसके साथ समझौता किया और 31 अगस्त तक अपने सारे सैनिकों की वापसी का फैसला लिया. लेकिन इन हमलों ने साबित कर दिया कि अमेरिका ने कहीं न कहीं ये समझौता करने में जल्दबाजी दिखाई,जिसका नतीजा ये हुआ कि तालिबान ने खुद को उससे ज्यादा ताकतवर होने का दिखावा शुरु कर दिया.

'ISIS के पीछे किसका हाथ' 
काबुल हमलों के पीछे जिस ISIS का हाथ माना जा रहा है,उसका पूरा नाम है-इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया. इस आतंकी समूह के पैदा होने और पनपने के पीछे भी जाने-अनजाने अमेरिका का ही हाथ रहा है. अबू बकर अल बगदादी ने 2006 में उस वक्त ये आतंकी समूह खड़ा किया था, जब अमेरिका ने लंबी लड़ाई के बाद इराक़ को सद्दाम हुसैन के चंगुल से आज़ाद करा लिया था. इराक़ से पैदा हुए इस संगठन ने सीरिया में ऐसे पैर पसारे कि अमेरिका ने वहां की सेना के लिए जो हथियार भेजे थे, वो साल भर के भीतर ही इस आतंकी गुट के हाथ लग गए. अब पश्चिम एशिया के कई मुल्कों में उसका खौफ है.

ISIS को इन्होंने किया मजबूत
अमेरिका की सुरक्षा एजेंसी से जुड़े रहे एडवर्ड स्नोडेन ने जुलाई 2014 में ईरान के अखबार तेहरान टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में ये खुलासा किया था कि किस तरह से अमेरिका ने इस आतंकी समूह को आगे बढ़ाने में मदद की. एडवर्ड स्नोडेन वही शख्स हैं, जिन्होंने 2013 में अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के मकड़जाल का खुलासा किया था. स्नोडेन के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन और इजराइल ने मिलकर बगदादी के इस संगठन को मजबूत किया.

अमेरिका के लिए चुनौती
वैसे कुदरत का नियम भी है कि जो बोओगे, वही काटोगे. अमेरिका की मदद से ही पहले ओसामा बिन लादेन के अल कायदा का जन्म हुआ और इसका अंजाम भी उसने झेला. अब ये आतंकी समूह भी अमेरिका के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. देखना है कि वह अब इसका सफाया कितनी जल्द कर पाता है. 

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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