इजरायल-हमास की जंग के बीच भारत समेत दुनियाभर में इस वक्त मुस्लिमों की तरफ से प्रदर्शन किए जा रहे हैं. भारत में नेताओं के कुछ संगठनों की तरफ से बयान दिए जा रहे हैं, इससे ऐसा लग रहा है कि ये हमला फिलिस्तीन के खिलाफ है और भारत ने फिलिस्तीन के संदर्भ में अपनी नीति बदल दी है. ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे हमास के साथ इजरायल की लड़ाई, हमास के साथ न होकर नए सिरे से फिलिस्तीन को खत्म करने की लड़ाई है.
लेकिन, इसमें कोई सच्चाई नहीं है. ये बात बिल्कुल सच है कि हमास, फिलिस्तीन की ही बात करता है. लेकिन, हमास के तरीके से फिलिस्तीन के भारी संख्या में लोग ही सहमत नहीं हैं, ये भी सच्चाई माननी चाहिए.
इस वक्त फिलिस्तीन में जो मोहम्मद अब्बासी की सरकार है, उनके साथ भी हमास का तनाव चलता रहता है. हमास ने जिस तरीके से 7 अक्टूबर को इजरायल के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हमला कर जिस तरह से 260 लोगों को मौत के घाट उतारा गया, उनके साथ जिस तरह से क्रूरताएं की गई हैं, लाशों के साथ जिस तरह से बलात्कार किया है, गर्भवती महिला का पेट चीरकर जिस तरह से बच्चे निकाले गए, उसके बाद बच्चे और फिर महिला को मार दिया गया, ऐसी वीभत्स चीजों को क्या राष्ट्रीय आजादी के लिए संघर्ष माना जाएगा या आतंकी घटना मानी जाएगी?
हमास ने की क्रूरता की हदें पार
ये घटना बिल्कुल वैसी ही थी जैसे आईएसआईएस अपने समय में लोगों के साथ हत्याएं और क्रूरता कर रहा था. उसके लिए युद्ध के कोई नियम नहीं थे. आतंकी संगठनों के लिए युद्ध का कोई नियम नहीं होता है. इसलिए, ये लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है. इजरायल इस समय फिलस्तीन से नहीं बल्कि हमास नाम के आतंकी संगठन से वॉर लड़ रहा है. किसी भी देश के अंदर घुसकर या किसी भी देश के नागरिक के साथ अगर कोई आतंकी समूह इस तरह से हमला करेगा तो उसके साथ वह देश क्या व्यवहार करेगा?
आतंकवाद के खिलाफ अगर विश्व में एकता है तो इजरायल का क्या रिएक्शन होना चाहिए था? इसलिए संपूर्ण दुनिया इस वक्त इजरायल के साथ है. भारत के प्रधानमंत्री ने बिना समय गंवाए हुए साफ कर दिया कि इजरायल पर आतंकी हमला हुआ है और आतंकवाद में कोई किंतु-परंतु नहीं होता है. भारत हर दृष्टि से इजरायल के साथ खड़ा है और यही भारत जैसे देश की नीति होनी चाहिए.
क्योंकि, आप अगर दूसरे देश के आतंकी हमले पर किंतु-परंतु करेंगे तो फिर जब आपके यहां पर हमले होंगे तो फिर दूसरे भी यही करेंगे. कश्मीर में आतंकवाद को लेकर अमेरिका-यूरोप के देश भी यही करते रहे हैं. भारत जैसा देश जो आतंकवाद से खुद पीड़ित रहा है, इससे लड़ता रहा है, वो तो ऐसी ही घोषणाएं करेगा.
क्या भारत ने बदली फिलिस्तीन नीति?
दूसरी बात ये बताई जा रही है कि भारत ने अपनी फिलिस्तीन नीति पीएम नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बदल दी है. इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता है. भारत ने फिलिस्तीन का समर्थन हमेशा किया, लेकिन भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने फिलिस्तीन ने जाने की जहमत नहीं उठाई. नरेन्द्र मोदी वो पहले भारत के प्रधानमंत्री हैं, जो 10 फरवरी 2018 को फिलिस्तीन की यात्रा पर गए और फिलिस्तीन के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्बासी ने वहां का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ग्रांड कॉलर नरेन्द्र मोदी को दिया, क्योंकि उनका ऐसा मानना था कि भारत की भूमिका फिलिस्तीन की लड़ाई में महत्वपूर्ण है, इसलिए ये सम्मान दिया गया.
ऐसे में जिस देश के राष्ट्रपति ये कह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है, इसलिए ये अवॉर्ड दे रहे हैं, और आप यहां बैठकर फिलिस्तीन-फिलिस्तीन चिल्ला रहे हैं, कोई हमास की आलोचना नहीं कर रहा है, ऐसे में दुनिया कैसे चलेगी?
ये आतंकवाद से दुनिया चलेगी? दूसरी बात ये कि उस वक्त भी प्रधानमंत्री ने ये स्पष्ट कहा है कि भारत एक संप्रभु, स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के पक्ष में है, रहेगा... किंतु भारत ये चाहता है कि शांतिपूर्ण तरीके से फिलिस्तीन राष्ट्र का निर्माण हो. ये बहुत कठिन काम है, लेकिन रास्ता यही है. इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा और एक दिन इतिहास की जो क्रूर घटनाएं हैं, वो जरूर बंद होंगी और फिलिस्तीन को जरूर अधिकार मिलेगा.
इस बार भी जब सवाल उठाया गया तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ठीक इसी को दोहराया है कि भारत हमेशा से एक शांतिपूर्ण और वैध तरीके से, संयुक्त राष्ट्र संघ ने जो प्रस्ताव पारित किया है, उसके माध्यम से स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र का समर्थन करता है और करता रहेगा. स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र चाहिए लेकिन हमास का हमला एक आतंकी हमला है. ये इजरायल और फिलिस्तीन युद्ध नहीं है, जिसमें कोई दूसरा कदम उठाने की जरूरत पड़े.
फिलिस्तीन के इतिहास में ब्लैक सितंबर
अब तीसरी बात का उल्लेख करते हैं. सबसे पहले पाकिस्तान की तरफ से प्रतिक्रियाएं आयीं हैं. पाकिस्तान के लोगों ने कहा कि ये तो भारत ने अपनी नीति बदल दी है. उसने कहा कि इजरायल मुसलमानों को मार रहा है. ईरान ने भी ये बातें कहीं. सऊदी अरब के साथ ईरान के राष्ट्रपति ने बात की है. सीरिया और लेबनान ने तो एक तरह से इजरायल के खिलाफ हमला ही शुरू कर दिया है. लेकिन, इतिहास के कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो दुनिया के सामने नहीं लाए जा रहे हैं.
1970-71 का एक ब्लैक सितंबर हुआ है. ब्लैक सितंबर उसको कहा जाता है कि उस सितंबर महीने में सबसे ज्यादा फिलिस्तीनियों को गाजर-मूली की तरह काट दिया गया था. ये फिलिस्तीन को काटने वाले और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तान की सेना थी.
जॉर्डन में वहां के शासक के खिलाफ फिलिस्तीनियों ने विद्रोह कर दिया था. यासर अराफात फिलिस्तीनी ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख थे. चार विमान का अपहरण किया गया, जिसमें से 3 विमान को उड़ा दिया गया. वहां के शासक ने इसे देखते हुए गृह युद्ध की घोषणा की. ब्रिटेन और अमेरिका से मदद ली. यहां तक कि उन्हें इजरायल से भी कुछ सहयोग लेना पड़ा था.
पाकिस्तान की सेना वहां गई थी, जिसका नेतृत्व कर रहे थे जियाउल हक. वही जियाउल हक जो बाद में वहां के सैन्य प्रमुख और राष्ट्रपति बने. जियाउल हक के नेतृत्व में एक मोटा-मोटी आंकड़ा ये है कि आठ से दस हजार फिलिस्तीनियों को खुलेआम कत्लेआम किया गया. तब जाकर वो विद्रोह रुका. तो क्या वो फिलिस्तीनी नहीं थे? उस वक्त वे भी तो आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे कि जॉर्डन भी जमीन छोड़े और इजरायल भी जमीन पर अवैध कब्जा छोड़े. क्या आज पाकिस्तान को ये याद है कि उन्होंने फिलिस्तीनियों के साथ क्या सलूक किया था?
क्या ये आज दुनिया को बताने की जरूरत है कि जितनी हत्याएं पाकिस्तान और जॉर्डन ने फिलिस्तीनियों की की है, इतनी तो इजरायल ने भी नहीं की है. अब अगले प्वाइंट की बात करते हैं. हमास ने कहा कि इजरायल ने अल अक्सा मस्जिद को नापाक किया है. हम सब लोग ये मानते हैं कि दुनिया की कोई भी जो पवित्र स्थल है, उसको हमेशा पवित्र रखा जाना चाहिए. कोई भी राज्य या संगठन उसमें जाता है तो फिर उसके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन, क्या पहली बार हुआ है. कहीं भी विद्रोह के नारे लगे, तो पुलिस की तरफ से कार्रवाई होना चाहिए या नहीं होनी चाहिए?