इजरायल और हमास के बीच युद्ध अब तीसरे सप्ताह में पहुंच गया है. इस बीच लैटिन अमेरिकी देश बोलीविया ने इजरायल से अपने तमाम संबंध समाप्त कर लिए हैं. इसके साथ ही चिली और कोलंबिया ने अपने राजदूत वापस बुला लिए हैं. इजरायल पर दबाव बनाने की यह रणनीति हालांकि काम करती दिख नहीं रही है, क्योंकि उसके हमले बदस्तूर जारी हैं. पहले ईरान और अरब देशों की धमकी के बावजूद इजरायल ने हमले बंद नहीं किए थे. हमास ने बोलीविया के कदम का स्वागत करते हुए सभी अरब देशों से भी ऐसा करने की अपील की है. इजरायल ने बोलीविया को ईरान से डरकर यह कदम उठाने का दोषी करार दिया है. 


नहीं होगा इजरायल पर असर


इजरायल के बोलीविया से जो राजनयिक संबंध बने थे, वह बहुत पुराने नहीं थे. 2019 में ही उनकी बहाली हुई थी. उसके पहले भी इजरायल ने जब गाजा पट्टी पर हमला किया था, तो बोलीविया ने उससे संबंध तोड़े ही हुए थे. यह इजरायल के लिए नयी बात नहीं है और इससे इजरायल पर कोई बड़ा असर भी नहीं पड़ेगा. इजरायल जिस लक्ष्य से अपना ऑफेंसिव गाजा में चला रहा है, उस लेवल पर वह अभी तक नहीं लाया है, जहां तक उसे ले जाना था या ले जाना है. बोलीविया चूंकि कोई बड़ा यूरोपीय राष्ट्र नहीं है, इसलिए भी उसका बहुत असर इजरायल पर नहीं पड़ेगा. उसने 4 साल ही संबंध चलाए जो 2019 में काफी वर्षों बाद शुरू ही किए थे. वही संबंध फिर से खटाई में पड़ गए हैं, तो इजरायल के लिए यह कोई शॉकिंग घटना नहीं है. जहां तक दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों चिली और कोलंबिया का सवाल है, जिन्होंने अपने राजदूत वापस बुला लिए हैं, तो यह कदम भी इजरायल को फिलहाल रोकने लायक तो है नहीं.



इजरायल को अभी युद्ध में क्या चाहिए? उसे गोला-बारूद और शस्त्रास्त्र चाहिए. उसे न तो सैनिक चाहिए, न ही उसे देशों का समर्थन तब तक चाहिए, जब तक यूरोप के देश और अमेरिका उसके साथ हैं. उसके पास तब तक तकनीक और आधुनिकतम हथियार भी मुहैया होते रहेंगे. इसलिए, इजरायल बहुत कुछ अभी रुकने वाला नहीं है. वह इन लैटिन अमेरिकी देशों के व्यवहार से प्रभावित नहीं होगा. जहां तक इन देशों की बात देखें तो अधिकांश इन लैटिक अमेरिकी देशों में लेफ्ट की सरकारें हैं, तो इजरायल में नेतन्याहू के नेतृत्व में राइट विंग की सरकार है. चिली, बोलीविया और कोलंबिया में अपने घरेलू राजनीतिक मामले और दबाव भी हैं, उसी के असर में इन तीनों देशों ने ऐसी प्रतिक्रिया दी है. युद्ध में अभी इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला है. जब तक इजरायल अपने बंधकों को न छुड़ा ले और हमास के ठिकानों को खत्म न कर ले, इजरायल अपने युद्ध की इंटेंसिटी बढ़ाएगा, घटाएगा नहीं.  



मिडिल ईस्ट के देश इजरायल के मुकाबले कमजोर 


जहां तक मध्यपूर्व के देशों और उनकी धमकियों का सवाल है तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है, लेकिन प्रतीकों के महत्व के साथ यह भी देखना चाहिए कि इजरायल के मुकाबले जो देश आ रहे हैं मध्य पूर्व के, उनकी सामरिक और आर्थिक स्थिति कैसी है. क्या इजरायल के हथियारों, रसद या उसके व्यापार पर, उसकी अर्थव्यवस्था पर ये देश कोई असर डाल सकते हैं? जवाब होगा- नहीं. ये लैटिन अमेरिकी देश जो हैं, उनका भू-राजनैतिक संदर्भ में कोई बहुत महत्व नहीं है. बोलीविया से संबंध अगर पहले अच्छे होते और अभी खराब होते तो कुछ असर पड़ता, लेकिन वो तो पहले से ही खराब हैं. इजरायल का इतिहास युद्ध में जाने का रहा है. फिलीस्तीन के जो पड़ोसी अरब देश हैं, वे तो बस सोच रहे हैं, सोच ही रहे हैं. अगर युद्ध की शुरुआत में ही, जब इजरायल ने हमला किया, तो ही अगर अरब के देश कोई बड़ा कदम उठाते तो शायद तस्वीर कुछ और होती. वे तो अभी भी अपने विकल्पों को तोल रहे हैं, तलाश रहे हैं. ईरान की जहां तक बात है, तो पहले से ही पता था कि ईरान तो इजरायल के खिलाफ जाएगा ही. यह युद्ध केवल इजरायल और फिलीस्तीन के बीच नहीं है. हिजबुल्ला तो दूसरा मोर्चा खोल चुका है, तो ईरान के साथ भी ये युद्ध है. ईरान हिजबुल्ला को सपोर्ट कर ही रहा है, लेकिन क्या वह अपनी सेना को लगाएगा, क्या मिडिल ईस्ट के जितने देश हैं, वे सैन्य ताकत का इस्तेमाल करेंगे? अभी तो ऐसा नहीं लगता है. दुनिया में बाकी के जो देश हैं, यूएस है, यूके है, यूरोपीय यूनियन है, तो वे स्थिति को इतनी बिगड़ने नहीं देंगे.


इजरायल को पता है अपना लक्ष्य


फिर, इजरायल का लक्ष्य क्या है...वह कोई गाजा पट्टी पर कब्जा कर वहां रहना नहीं है. आज की जो अंतरराष्ट्रीय स्थिति है, उसमें किसी देश पर कब्जा करके रहना सबसे मुश्किल काम है. इसलिए, इजरायल कब्जा नहीं करेगा. आसान काम है एक खास मकसद लेकर जाना और सफल होना. आतंकवाद के खिलाफ आज पूरी दुनिया में माहौल बन चुका है. हमास ने जो किया है, वह पहली बार किया है. मिडिल ईस्ट में युद्ध हुआ है, लेकिन इस बार क्रूरता और वीभत्सता की जो तस्वीरें हमास ने दिखायीं हैं, वह बहुत कुछ बदल देता है. जहां तक विश्व युद्ध का सवाल है, तो ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है. चंद दिनों पहले रूस औऱ यूक्रेन के युद्ध को भी इसी तरह पेश किया गया था, लेकिन वह रीजनल वॉर बन कर रह गया. इजरायल और हमास का युद्ध भी अभी लंबे समय तक चलेगा या कुछ दिनों में निबट जाएगा, यह तो स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह पूरी दुनिया में नहीं फैलेगा, इतना तय है. इजरायल और मध्य पूर्व में वैसे भी छिटपुट युद्ध तो चलता ही रहता है. हां, पिछले कुछ साल से यह बंद था, बाकी तो वे युद्ध में रहे ही हैं. 


हां, भारत में इसके बहाने से इस्लाम के नाम पर मुसलमानों को रेडिकलाइज करने की कोशिश की जा सकती है, उनको रेडिकलाइज किया जाएगा. एक छोटा हिस्सा है, जिसे लगातार भड़काने की कोशिश की जाती है. भारत में हमने देखा है कि छोटे हिस्से में प्रदर्शन हुआ है. गाजा में अगर डिस्प्रपोर्शनेट नुकसान हुआ, गाजा में अधिक नुकसान हुआ, तो भारत में बीजेपी की सरकार को दक्षिणपंथी सरकार कहकर और भड़काने की कोशिश की जाएगी. इससे अधिक और कोई प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है. 



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