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हमास की पूरी तरह समाप्ति तक इजरायल नहीं बंद करेगा युद्ध, जब खत्म होगी जंग तो बदल जाएगा गाजा पट्टी का मानचित्र

इजरायल और हमास के बीच युद्ध और भी गंभीर हो गया है. लगभग 10वां दिन होनेवाला है, लेकिन युद्ध के खत्म होने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं. इजरायल के लिए लेबनान की तरफ से भी एक मोर्चा खुला है और ईरान ने भी धमकी दे दी है. पश्चिम एशिया के इस्लामिक देश लामबंद हो रहे हैं तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इजरायली हमलों की तुलना सेंट पीटर्सबर्ग पर नाजी हमले से कर दी है. चीन ने भी कहा है कि इजरायल अब हद पार कर रहा है. ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि दुनिया के बड़े हिस्से तक यह जंग फैलेगी या उसी इलाके तक सिमट कर रह जाएगी? 

लंबे समय तक चलेगी जंग

इस युद्ध को पूरी गंभीरता से देखने की जरूरत है. इजरायल और हमास के बीच यह संघर्ष हमास के हमले के बाद शुरू हुआ. इजरायल पूरी तरह प्रतिबद्ध है कि भविष्य में ऐसी आतंकी घटनाएं न हों, इसके लिए वह पूरी तरह से हमास को खत्म करना चाहता है. घटना के कुछ दिनों बाद इस्लामिक देशों का समूह एकत्रित होकर इजरायल के प्रति-उत्तर पर आक्रामक अभियान कर रहे हैं. यह सवाल तो विश्व-समुदाय के लिए भी उठता है कि हमास, हिजबुल्ला और अल-हैफी जैसे जो आतंकी संगठन हैं, इनको पनाह देनेवाले कौन देश हैं? दूसरी बात यह है कि हरेक को अपनी रक्षा करने का अधिकार है. इजरायल पर अगर आतंकी हमला हुआ है, तो उसका प्रत्युत्तर देना तो लाजिमी है और यह इजरायल का अधिकार भी है. यह तो हमास और उसके हिमायती देशों को पहले सोचना चाहिए था कि इजरायल को जवाब के लिए ही जाना जाता है. यह तो जाहिर है कि दक्षिणी, उत्तरी और समुद्री क्षेत्र की तरफ से जो इजरायल पर लगातार हमले हो रहे हैं, वह केवल हमास नहीं कर रहा है, उसको कुछ अन्य देशों की सहायता भी मिल रही है.

हमास का साथ केवल धर्म के नाम पर

जिस तरीके से हमास के लड़ाके ट्रेन्ड हैं, हमास के पास सॉफिस्टिकेटेड हथियार हैं, हमास के पास ऐसे हथियार हैं, जिससे व्यापक नरसंहार हो रहा है, इससे साफ होता है कि हमास अकेला नहीं लड़ रहा है. हां, ये जरूर है कि जो अब तक परोक्ष रूप से लड़ रहे थे, वे 22 इस्लामिक देश खुलकर इस युद्ध का विरोध कर रहे हैं. दूसरे, जो गाजा से सटे हैं या ईरान है, उसकी प्रमुख भूमिका दिख रही है. यह युद्ध बहुत लंबा खींचने की ताकत ईरान, तुर्किए, मिस्र या लेबनान में भी नहीं है, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. विचारधारा और धर्म के नाम पर ये युद्ध को 10 से 15 दिन तक खींच सकते हैं, लेकिन उससे अधिक नहीं. इजरायल की तरफ पूरा यूरोपीय संघ, अमेरिका और दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देश भी हैं, जो इस युद्ध में आतंकी हमले के खिलाफ हैं. दुनिया साफ तौर पर दो भागों में बंट गयी है. एक दुनिया वह है, जो आतंकी हमले के खिलाफ इजरायल के साथ खड़े हैं, दूसरी दुनिया केवल धर्म के नाम पर इजरायल की मुखालफत कर रही है. 

अमेरिका हो या इस्लामी मुल्क, परदे के पीछे रहेंगे

जहां तक युद्ध के बढ़ने की बात है, अमेरिका प्रत्यक्ष तौर पर युद्ध में शामिल नहीं होगा. अगर ऐसा करना होता तो वह यूक्रेन में खुलकर सामने आ जाता. वह युद्धपोत, हथियार और धन की व्यवस्था इजरायल के लिए करेगा. दूसरी ओर सीरिया, ईरान, इजिप्ट, तुर्किए वगैरह जो देश हैं, वे इस हालत में नहीं हैं कि वे एक-दो महीने का युद्ध झेल सकें. ये खुद ही बर्बाद हैं. अगर कोई यह कहे कि यह युद्ध भी रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह एक वर्ष से अधिक तक खिंचेगा, तो वह गलत बात होगी. यहां दो देश आमने-सामने नहीं हैं. यहां एक समूह है जो विचारधारा और धर्म के नाम पर कोशिश कर रहा है कि गाजा और हमास का समर्थन करें, उनके पास लेकिन संसाधन नहीं हैं.

यह इजरायल के ऊपर निर्भर करता है कि वह इस युद्ध को कितना लंबा खींचना चाहता है. इजरायल की नीति है कि वह आतंकी हमलों की संभावना को निर्मूल करे. इजरायल ने वेस्ट बैंक में फिलीस्तीन अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के साथ शांति स्थापित कर वह किया भी था. वह शांति की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन हमास के आतंकी हमले से अब बात पूरी तरह इजरायल पर आ गयी है कि वह इस जंग को कब खत्म करना चाहता है. दक्षिणी गाजा को पूरी तरह खाली कर वह अपनी सीमा को सुरक्षित रखना चाहता है, क्योंकि अभी भी यह आशंका है कि इजरायल में अभी भी कई आतंकी हो सकते हैं, तो बात अब पूरी तरह इजरायल पर निर्भर है. यह युद्ध देशों के बीच नहीं लड़ा जाएगा, जो भी होगा पर्दे के पीछे होगा. 

यहां जब हमास को मिटा दिया जाएगा तो महमूद अब्बास ही से बात होने की संभावना बनेगी. वह भले अभी छोटे से इलाके पर काबिज हैं, लेकिन वार्ता तो हमास से होगी नहीं, क्योंकि वह आतंकी संगठन है. इस्लामी मुल्कों को भी यही करना चाहिए कि महमूद अब्बास के हाथ मजबूत करें और फिर इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू उनके साथ बैठक करें और फिर शांति की राह तलाशी जाए. हमास को समर्थन देना आतंक को समर्थन देना है, इस्लामी देशों के इस रवैए से गाजा में प्रभावित नागरिकों का जो संकट है, वह भी बढ़ रहा है. इतना तो तय है कि इजरायल जब युद्ध की समाप्ति की घोषणा करेगा तो दक्षिणी गाजा समेत गाजा पट्टी का कुछ न कुछ भूगोल तो बदलेगा. इजरायल भी महमूद अब्बास को ही नेता मानेगा, लेकिन हां गाजा का मानचित्र जरूर बदल जाएगा. यह सब कितने दिनों में होगा, कैसे होगा यह तय करना कठिन है, लेकिन इतना तय है कि इस इलाके का भूगोल बदल जाएगा. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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