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दुनिया के इकलौते यहूदी देश इजरायल में क्यों उतर आए हैं लाखों लोग सड़कों पर?

दुनिया का इकलौता यहूदी देश है, इजरायल जिसकी आबादी महज़ एक करोड़ के करीब है लेकिन वो परमाणु हथियारों से लैस होने के कारण दुनिया का 10वां ताकतवर मुल्क भी है. उसी मुल्क में लाखों लोग अब अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आये हैं. इसलिए कि वह न्यायपालिका की आजादी का गला घोंटकर सारे अधिकार सिर्फ अपने ही हाथ में रखने का कानून लाने की कोशिश में जुटी हुई है. वहां के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं. इसलिए प्रदर्शनकारी मानते हैं कि वे खुद को बचाने के लिए ही वहां की न्यायिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदल देने वाले प्रस्ताव को संसद से पास करवाकर तानाशाही भरा कानून देश में थोपना चाहते हैं.

सरकार की बदनीयती वाले इस फैसले के खिलाफ वैसे तो पिछले महीने से ही तेल अवीव और अन्य बड़े शहरों में प्रदर्शन हो रहे थे. लेकिन 13 फरवरी को देश की राजधानी यरुशलम में संसद के बाहर जुटे एक लाख से भी ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने विरोध की इस चिंगारी को और भी ज्यादा भड़का दिया है. हालांकि, इस प्रदर्शन का आह्वान वहां के विपक्षी दलों ने किया था लेकिन वहां के आम नागरिकों ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जो अपना पैसा खर्च कर संसद के बाहर तक पहुंचे थे. उस प्रदर्शन की विस्तार से कवरेज करने वाले अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे इजरायल के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बताया है जो पहले से ही अपने पड़ोसी मुल्क फिलिस्तीन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है.

लेकिन हैरानी की बात ये है कि न्यायपालिका का गला घोंटने वाली सरकार की कोशिश के खिलाफ हुए इस प्रदर्शन से ठीक एक दिन पहले ही इजरायल के राष्ट्रपति इसहाक हर्ज़ोग (Isaac Herzog) ने अपने टेलिविजन भाषण में सरकार को चेताया था कि मुल्क का संवैधानिक व सामाजिक ढांचा टूटने की कगार पर आ पहुंचा है. उन्होंने सरकार से ये अपील भी की थी कि इसे सुलझाने के लिए समझौते का कोई रास्ता निकाला जाए. लेकिन फिलहाल तो लगता नहीं कि नेतन्याहू सरकार ने उनकी इस अपील पर कोई गौर किया हो.

गौरतलब है कि नेतन्याहू पर रिश्वत लेने, धोखाधड़ी और विश्वासघात के आरोपों को लेकर मुक़दमा चल रहा है. हालांकि, नेतन्याहू इन आरोपों का खंडन करते रहे हैं. लेकिन हकीकत ये भी है कि इन आरोपों की वजह से ही जून 2021 में लगातार 12 साल तक पीएम रहने के बाद नेतन्याहू को अपना पद छोड़ना पड़ा था. लेकिन बीते साल नवंबर में हुए चुनावों में बिन्यामिन नेतन्याहू की पार्टी ने अन्य दलों के साथ गठबंधन करके दोबारा सत्ता में वापसी कर ली. 

बीते दिसंबर में जब उन्होंने पीएम का पद संभाला तब से हर शनिवार को उनके खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन करने का सिलसिला शुरु हो गया था. लेकिन इस साल जनवरी के पहले हफ्ते में पीएम नेतन्याहू के सबसे करीबी माने जाने वाले कानून मंत्री यारिव लेविन (Yariv Levin) ने ये प्रस्ताव पेश कर दिया कि सरकार अब न्यायिक व्यवस्था में पूरी तरह से सुधार करना चाहती है. बस, उसके बाद से ही सरकार के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन की आग और ज्यादा भड़क उठी.

इस प्रस्ताव में वैसे तो चार बदलाव लाने की बात कही गई है लेकिन मुख्य ये है कि 120 सदस्यों वाली संसद अब सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले को ठुकरा सकती है जिसके लिए 61 सदस्यों का बहुमत होना जरुरी है. लेकिन इजरायल के लोगों को जो बात ज्यादा परेशान कर रही है वो ये है कि अब सुप्रीम कोर्ट के जजों को नियुक्त करने का सारा अधिकार सरकार अपने हाथ में ही रखना चाहती है. फिलहाल वहां इसके लिए एक कमेटी है जिसमें प्रोफेशनल लोगों के अलावा जजों और सांसदों की समान संख्या है जो सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का फैसला लेती है. लेकिन ताजा प्रस्ताव के मुताबिक अब इस कमेटी में सांसदों का ही बहुमत होगा जो कि दक्षिण पंथी और धार्मिक रूढ़िवादिता पर यकीन रखने वाली गठबंधन सरकार के नुमाइंदे हैं.

कुछ ऐसी ही आवाज हमारे देश में भी सरकार के भीतर से उठ रही है. उन्हें जजों की नियुक्ति करने वाला सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम रास नहीं आ रहा है और वे चाहते हैं कि इसमें सरकार के प्रतिनिधि भी होने चाहिए. लेकिन शीर्ष अदालत को ये मंजूर नहीं है क्योंकि वह इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता में सरकार की गैर जरुरी दखलदांजी मानती है. बहरहाल, इजरायल में इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग पीएम नेतन्याहू के प्रस्तावित बदलावों को लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला बता रहे हैं. वे इसे सरकार का सबसे शर्मनाक फैसला भी करार दे रहे हैं. बड़ी बात ये भी है कि मुल्क के इतिहास में धार्मिक तौर पर सबसे कट्टर मानी जा रही सरकार के शपथ लेने के महज़ महीने भर के भीतर ही इतनी जबरदस्त मुख़ालफ़त की शुरुआत हुई है. आलोचकों का कहना है कि प्रस्तावित सुधार न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता को पंगु बना देंगे. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. ये अल्पसंख्यकों के हक में बाधा डालेंगे और इससे इसराइल की अदालती व्यवस्था में भरोसा कमज़ोर होगा.

लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि धार्मिक कट्टरता की जकड़न वाले इस मुल्क ने पिछले तीन दशकों में अपनी अर्थव्यवस्था को बेतहाशा रुप से मजबूत भी किया है. आईएमएफ ने 2023 में इजरायल की जीडीपी 564 बिलियन अमेरिकी डॉलर और इजरायल की प्रति व्यक्ति जीडीपी 58,270 अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान लगाया है, जो अमेरिका या किसी भी दूसरे उच्च विकसित और समृद्ध देश के मुकाबले कमतर नहीं है. लेकिन देखना ये है कि पीएम नेतन्याहू अपनी जनता की आवाज  सुनेंगे या फिर खुद को कानूनी शिकंजे से बचाने के लिए तानाशाही भरा फैसला मुल्क पर थोपकर ही चैन लेंगे?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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