उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर 21 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार में अब सिर्फ दो दिन का वक्त और बाकी है। 2022 में होने वाला ये उपचुनाव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पहले सरकार के लिए नहीं बल्कि विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती दिख रहा है... करीब डेढ़ साल पहले मार्च 2018 में जब उत्तर प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे, तब सपा और बसपा ने मिलकर भाजपा को तीनों सीटों पर करारी शिकस्त दी थी... उस वक्त भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश से ही खड़ी होती दिखी थी... लेकिन 2019 की हार के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत फिर से उसी पड़ाव पर जा पहुंची... जहां पहले हुआ करती थी... लोकसभा चुनाव की हार से हताश सपा.. बसपा.. और कांग्रेस आधी-अधूरी तैयारी के साथ उपचुनाव में भाजपा के सामने खड़े दिख रहे हैं... जनता के बीच ले जाने के लिए ना तो किसी के भी पास नीति दिख रही है ना ही कोई मुद्दा.... जो विपक्ष बेरोजगारी.. महंगाई और कानून व्यवस्था को विधानसभा को ठप कर देता है... उसकी जनसभाओं में इनका जिक्र तक नहीं है। हालांकि उपचुनाव के प्रचार में अयोध्या का नाम कोई नहीं ले रहा लेकिन अपनी अपनी तरफ से इस बार भी ध्रुवीकरण की कोशिशें जारी हैं और पूरा प्रचार अब सिर्फ बयानों के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। ऐसे में सरोकार की राजनीति के लिए जनता जैसे विपक्ष की अपेक्षा कर रही था वो विपक्ष एक बार फिर से नदारद दिख रहा है।
11 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे दिलचस्प मुकाबला रामपुर सदर सीट पर है, जहां से सपा सांसद आजम खान की पत्नी तजीन फ़ातिमा मैदान में हैं और सपा का पूरा फोकस इसी सीट पर है, चुनाव प्रचार के दौरान आजम खान सिर्फ अपने खिलाफ दायर मुकदमों का जिक्र कर रहे हैं और बिना नाम लिये सीएम योगी पर जुबानी हमला कर रहे हैं
उपचुनाव के प्रचार में ये बात भी साफ हो गई है कि समाजवादी पार्टी अब भी लोकसभा चुनाव में मिली हार से नहीं उबर सकी है। सपा नेता और पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव अपनी हार की तुलना काली रात से कर रहे हैं और जनसभाओं में भाजपा को चेतावनी दे रहे हैं कि जब भी वो सत्ता में वापस लौटेंगे तो भाजपा की काली रात शुरु हो जाएगी....
लेकिन भारतीय जनता पार्टी इस उपचुनाव को भी उसी तरह लड़ रही है... जैसी की वो हर छोटे से छोटे चुनाव में दिखती है... इस अपनी हर जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विपक्ष पर तीखे हमले कर रहे हैं... और सपा बसपा की नैतिकता पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं
इन हालात में सवाल ये है कि क्या यूपी उपचुनाव से असल मुद्दे गायब है?...क्या दिशाहीन और बिखरा हुआ विपक्ष 'योगी रथ' को रोक पायेगा... और क्या बयानों से ध्रुवीकरण पैदा करने की कोशिश हो रही है
इस उपचुनाव के नतीजों से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने जा रह है... लेकिन अगर नतीजे मिलेजुले भी आते हैं तो ये यूपी में मरणासन्न पड़े विपक्ष के लिए संजीवनी साबित हो सकती है.. हालांकि ये चुनाव ढाई साल के कार्यकाल के बाद योगी सरकार के रिपोर्ट कार्ड की नजर से भी देखा जाना तय है... वहीं कश्मीर से 370 हटाए जाने के बाद देश के दो राज्यों के चुनावों के साथ यूपी में हो रहा उपचुनाव.. एक बार फिर जनता का मूड बताने वाला साबित हो सकता है।