एक्सप्लोरर

डूरंड लाइन पर शांति के लिए जरूरी है पश्तो भाषियों से संवाद, पाकिस्तान बाज आए हिमाकत से

पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान को विभाजित करने वाली  डूरंड रेखा अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है. औपनिवेशिक शासन के दौरान निर्धारित सीमाएं जनाकांक्षाओं का सम्मान नहीं करतीं हैं. मध्य एशिया को दक्षिण एशिया से जोड़ने वाले इलाके अशांत हैं क्योंकि पाकिस्तान अपनी ही बिछाई हुई जाल में फंस गया है. जिस तालिबान को पाकिस्तान अपनी कठपुतली मानकर नीतियां बना रहा था, अब उसका शासन ही मुल्क के वजूद को चुनौती दे रहा है. पिछले साल 28 दिसंबर को पाक-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबानी लड़ाकों ने पाकिस्तानी फौज पर बड़ा हमला किया. इस हमले के बाद अफगानिस्तान ने दावा किया है कि पाकिस्तान द्वारा किए गए हवाई हमले का जवाब दे दिया गया है. अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इनायतुल्ला ख्वारजामी ने सोशल मीडिया मंच "एक्स" पर  पोस्ट कर कहा है कि इन हमलों में उन लोगों को निशाना बनाया गया, जो पक्तिका पर हुए हवाई हमले में समन्वय कर रहे थे.

पाकिस्तान पर हमला, तालिबान हौसलामंद

तालिबानी शासन के हौसले बुलंद हैं क्योंकि माना जा रहा है कि पाकिस्तान के अंदर कई ठिकानों को नष्ट किया गया है. अफगानी मीडिया की मानें तो इस हमले में 19 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं जबकि पाकिस्तान के मोर्टार हमले में तीन अफ़ग़ानी नागरिकों की मृत्यु हो गयी है. हालांकि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय इस मामले में खामोश है. डूरंड लाइन के करीब पक्तिका एवं खोस्त इलाकों में दोनों मुल्कों की सेनाओं के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. तालिबान के आक्रमण के बाद पाकिस्तान सेना को पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा.

दरअसल 24 दिसंबर 2024 को पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान बॉर्डर के पास पक्तिका में हवाई हमला किया था, जिसमें 46 लोगों के मारे जाने की चर्चा हुई थी. पाकिस्तान के इस हमले का मकसद आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के संदिग्ध ठिकानों को तबाह करना था. अफगानिस्तान के तालिबानी शासन पर पाकिस्तान लगातार आरोप लगाता रहा है कि वह टीटीपी की आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है. पाकिस्तान इस आतंकी संगठन को अपनी संप्रभुता के लिए एक बड़ा खतरा मानता है. पाकिस्तान के दावों के विपरीत तालिबानी हुकूमत ने साफ तौर पर कहा है कि उसकी जमीन का इस्तेमाल आतंकी हमले के लिए नहीं हो रहा है. अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार की पुनर्स्थापना को पाकिस्तान अपनी कामयाबी मानकर खुश था, लेकिन तालिबानी सरकार के फैसलों ने पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान को अपने इस पड़ोसी देश के मामले में नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.

अफगानिस्तान है पांच दशकों से अस्थिरता का शिकार

1973 में शाह जहीर का तख्ता पलट कर अफगानिस्तान को गणतंत्र तो घोषित कर दिया गया. लेकिन इस घटनाक्रम के पश्चात् यहां की राजनीतिक व्यवस्था दिशाविहीनता, अस्थिरता एवं अनिश्चयता की शिकार होने लगी. अफगानिस्तान के शासन तंत्र को प्रभावित करने की मंशा सोवियत संघ की हमेशा से रही है. साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित राजनीतिक दल अफगानिस्तान में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की रूपरेखा तैयार करने के बजाय सत्ता पर काबिज होने के खेल में शामिल हो गए.

अमेरिका मध्य एशिया में सोवियत संघ को कमजोर करने के लिए अफगानिस्तान की जमीन इस्तेमाल करने की ख्वाहिश कभी नहीं छोड़ सका. दो महाशक्तियों की महत्वाकांक्षाओं से जूझते हुए यह मुल्क कब आतंकी संगठनों की पनाहगाह बन गया, इस गुत्थी को कोई नहीं सुलझा सका. अफगानिस्तान में कई राजनीति के किरदार उभरते रहे, लेकिन किसी में रहनुमा बनने की काबिलियत नहीं थी. मोहम्मद दाऊद, नूर मोहम्मद तराकी, हफीज उल्लाह अमीन एवं बबरक करमाल के उत्थान और पतन की कहानियां सोवियत रूस व अमेरिका की चर्चा के बिना पूरी नहीं होतीं. सोवियत संघ अपने कुछ विशेष हितों की रक्षा हेतु अपने सैनिकों को 1979 में जब अफगानिस्तान भेजा तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इस फैसले से अंततः इस्लामी कट्टरपंथियों को अपनी जड़ें मजबूत करने का मौका मिलेगा.

अमेरिका की वापसी से गुत्थी और उलझी

सोवियत सैनिकों का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप और उनके निरंतर अफगानिस्तान में बने रहने से ही समस्याओं का जन्म हुआ. अफगानिस्तान से सोवियत सैनिकों की वापसी के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान के जरिए मुजाहिदीनों एक नहीं, बल्कि कई फौज खड़ी कर दी. जिसके कारण दक्षिण एशिया में तनाव का वातावरण उत्पन्न हो गया. अफगानिस्तान में सत्ता के कई दावेदार सामने आने लगे. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ गुलबुद्दीन हिकमतयार, अहमदशाह मसूद एवं रशीद दोस्तम की युद्ध कला के बारे में लोगों को अधिकाधिक जानकारी दे रहे थे. अफगानिस्तान का अफसाना डरावना तब हो गया जब मुल्ला उमर के नेतृत्व में तालिबानी शासन की स्थापना हो गयी और राष्ट्रपति नजीबुल्ला को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया. बामियान में गौतम बुद्ध की प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई और अमेरिका खामोश रहा. अमेरिका की नींद उस वक्त खुली जब अलकायदा के आतंकवादियों ने उसके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर दिया.

तालिबान एवं अलकायदा की सांठगांठ वैश्विक शांति के लिए बड़ी चुनौती हो गयी तो अमेरिका और उसके सहयोगियों ने नवम्बर 2001 में अफगानिस्तान से तालिबान की हुकूमत को उखाड़ फेंका. आतंकवाद के खिलाफ छेड़ी गयी उस लड़ाई में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ अमेरिका के साथ खड़े थे. लेकिन अलकायदा चीफ ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में छुपा रहा, जहां अमेरिकी कमांडो ने 2011 में उसे मौत की नींद सुला दी. अपने दुश्मन को मार डालने के बाद अमेरिका की अफगानिस्तान में रुचि कम होने लगी.

पाकिस्तान काट रहा है अपना बोया

पाकिस्तान में तालिबानी लड़ाकों के शुभचिंतकों की कभी कमी नहीं रही. जिन्ना के मुल्क में मजहबी रहनुमा राजनीति में दखल देना अपना फर्ज समझते हैं. इसलिए पश्चिमी पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख़्वा के शिक्षित समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान का भाव नहीं के बराबर है. पश्तो भाषी लोग पाकिस्तान से अलग होकर अपना मुल्क बनाने का ख्वाब देख रहे हैं और उन्हें यकीन है कि तालिबान उनकी मदद करेंगे. इनके लिए डूरंड लाइन एक काल्पनिक रेखा है. वैसे भी यह सीमा रेखा जब निर्धारित की गयी थी तो स्थानीय बाशिंदों से उनकी मर्जी नहीं पूछी गयी थी.

अगस्त 2021 से काबुल की सड़कों पर तालिबानी लड़ाके बेखौफ घूम रहे हैं. मुल्क मध्ययुगीन शासन झेलने के लिए अभिशप्त है. काबुल हवाई अड्डे का नजारा भूलना मुश्किल है. अफगानिस्तान के नागरिक तब हवाई जहाज पर ऐसे बैठ रहे थे, जैसे ग्रामीण इलाकों में लोग बसों की छत पर बैठ जाते हैं. अब अफगानिस्तान में हामिद करजई, अब्दुल्ला अब्दुल्ला एवं अशरफ गनी की कोई चर्चा नहीं होती. संयुक्त राष्ट्र संघ के नुमाइंदे इस मुल्क की महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए बयान भी नहीं दे रहे हैं. इनके मानवाधिकारों की फिक्र भी किसी को नहीं है. पाकिस्तान की रणनीति अफगानिस्तान में विफल रही क्योंकि वह भारत के विरुद्ध तालिबान का इस्तेमाल नहीं कर सका. तालिबान सरकार के जिम्मेदार अधिकारी अपने मुल्क में आधारभूत संरचना के विकास हेतु भारत की भूमिका से अवगत हैं. उन्होंने पाकिस्तान के हस्तक्षेप को न केवल नकार दिया है, बल्कि अपनी स्वतंत्र सैन्य क्षमता का उद्घोष भी किया है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

दिल्ली-यूपी से लेकर बिहार-बंगाल तक कांपी धरती, नेपाल में आया 7.1 तीव्रता का भूकंप
दिल्ली-यूपी से लेकर बिहार-बंगाल तक कांपी धरती, नेपाल में आया 7.1 तीव्रता का भूकंप
अनीता आनंद कौन हैं जो बन सकती हैं कनाडा की अगली PM, भारत से है खास रिश्ता, क्या अब अच्छे होंगे इंडिया-कनाडा संबंध
अनीता आनंद कौन हैं जो बन सकती हैं कनाडा की अगली PM, भारत से है खास रिश्ता, क्या अब अच्छे होंगे इंडिया-कनाडा संबंध
'मामला तो गांधी मैदान में ही निपटेगा', जन सुराज संयोजक प्रशांत किशोर ने किसे दी चेतावनी?
'मामला तो गांधी मैदान में ही निपटेगा', जन सुराज संयोजक प्रशांत किशोर ने किसे दी चेतावनी?
साढ़े 5 फुट के प्लेयर ने मचाया कोहराम, भारत से छीना WTC फाइनल और अब लिख रहा स्वर्णिम इतिहास
साढ़े 5 फुट के प्लेयर ने मचाया कोहराम, भारत से छीना WTC फाइनल और अब लिख रहा स्वर्णिम इतिहास
ABP Premium

वीडियोज

24 Ghante 24 Reporter Full Episode: देखिए देश-दुनिया की बड़ी खबरें | Justin Trudeau resigned | BPSCMumbai: लोन बचाया...दूसरी गाड़ी का नंबर चुराया! | Maharashtra | ABP NewsHMPV Virus in India: कहीं आपको भी तो नहीं इस वायरस के लक्षण? | HMPV Virus Symptoms | ABP NewsJanhit with Chitra Tripathi: Delhi की चुनावी लड़ाई...'शीश महल' पर आई! | Atishi | Ramesh Bidhuri

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
दिल्ली-यूपी से लेकर बिहार-बंगाल तक कांपी धरती, नेपाल में आया 7.1 तीव्रता का भूकंप
दिल्ली-यूपी से लेकर बिहार-बंगाल तक कांपी धरती, नेपाल में आया 7.1 तीव्रता का भूकंप
अनीता आनंद कौन हैं जो बन सकती हैं कनाडा की अगली PM, भारत से है खास रिश्ता, क्या अब अच्छे होंगे इंडिया-कनाडा संबंध
अनीता आनंद कौन हैं जो बन सकती हैं कनाडा की अगली PM, भारत से है खास रिश्ता, क्या अब अच्छे होंगे इंडिया-कनाडा संबंध
'मामला तो गांधी मैदान में ही निपटेगा', जन सुराज संयोजक प्रशांत किशोर ने किसे दी चेतावनी?
'मामला तो गांधी मैदान में ही निपटेगा', जन सुराज संयोजक प्रशांत किशोर ने किसे दी चेतावनी?
साढ़े 5 फुट के प्लेयर ने मचाया कोहराम, भारत से छीना WTC फाइनल और अब लिख रहा स्वर्णिम इतिहास
साढ़े 5 फुट के प्लेयर ने मचाया कोहराम, भारत से छीना WTC फाइनल और अब लिख रहा स्वर्णिम इतिहास
Bigg Boss 18 Winner: कौन बनेगा सलमान खान के शो बिग बॉस 18 का विनर? विवियन डीसेना को पछाड़ते हुए ये कंटेस्टेंट निकला आगे
कौन बनेगा सलमान खान के शो बिग बॉस 18 का विनर? विवियन डीसेना को पछाड़ते हुए ये कंटेस्टेंट निकला आगे
भारतपोल और इंटरपोल में है ये अंतर, अपराधियों के खिलाफ ऐसे करते हैं काम
भारतपोल और इंटरपोल में है ये अंतर, अपराधियों के खिलाफ ऐसे करते हैं काम
Gluten Ataxia की बीमारी से जूझ रही थीं नेहा धूपिया, जानें इसके लक्षण और कारण
Gluten Ataxia की बीमारी से जूझ रही थीं नेहा धूपिया, जानें इसके लक्षण और कारण
Aaj Ka Panchang: आज 7 जनवरी 2025 का शुभ मुहूर्त, राहुकाल और पंचांग जानें
आज 7 जनवरी 2025 का शुभ मुहूर्त, राहुकाल और पंचांग जानें
Embed widget