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विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA पर फंसेगा कानूनी पेंच, जानिए क्या कहता है द एम्बलम एक्ट ऑफ इंडिया

एम्बलम एक्ट का पूरा नाम है, "द एम्बलम एक्ट ऑफ इंडिया, प्रोहिबिशन एंड प्रॉपर एक्ट यूज 2005", जो 1950 से था, पर 2005 में इसे संशोधित-परिवर्द्धित किया गया. इस एक्ट में पूरी तरह साफ है कि किन नामों का आप इस्तेमाल कर सकते हैं, किनका नहीं? किन चिह्नों का इस्तेमाल कर सकते हैं, किनका नहीं और "जो नाम आप इस्तेमाल नहीं कर सकते, उसमें एक नाम 'भारत' (' INDIA') भी है", अगर कोई पॉलिटकल पार्टी या अलायंस इस नाम का इस्तेमाल करती है, तो वह चिंता का विषय है. एम्बलम एक्ट की परिभाषा में यह साफ लिखा है कि एम्बलम का मतलब है, 'जैसा राज्य में वर्णित है'. उसका एक्ट 3 कहता है कि कोई भी दूसरा पक्ष वह नाम नहीं रख सकता, जिससे "राज्य द्वारा प्राधिकृत चिह्नों की व्याप्ति हो." अब मान लीजिए, अगर जैसे ही कोई संस्था या अलायंस ऐसा नाम रखती है तो यह धारणा बन सकती है कि यह तो भारत सरकार खुद है, जब ऐसी अवधारणा जाएगी, तो फ्री और फेयर इलेक्शन करवाना शायद मुश्किल होगा. इसीलिए भारत के चुनाव आयोग की यह ड्यूटी बनती है कि वह इसे रोके.

आप इंडिया नाम के आगे या पीछे कुछ और जोड़कर नाम बना सकते हैं. जैसे कांग्रेस का पूरा नाम है, “इंडियन नेशनल कांग्रेस” या भारतीय जनता पार्टी बीजेपी का पूरा नाम है. उसमें “भारत” भी है, लेकिन उसके आगे और पीछे भी है. सीधा INDIA नाम एब्रीवियेशन के आधार पर अगर बना लेंगे, तो ये गलत होगा. संजय राउत जो कह रहे हैं, वह पूरी तरह गलत है. यही गलती इंदिरा गांधी के समय हुई थी, “इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा”, लेकिन जनता ने तो नकार दिया था. अब फिर यह कहना कि यूपीए का नाम बदलकर इंडिया कर दिया गया है, यह महज बात को घुमाना कहा जाएगा. यह वैधानिक तौर पर गलत है और इसे चुनाव आयोग या कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर रोकना चाहिए.ऐसे तो फिर कल को कोई दल “भारत” नाम रख ले, कोई “हिंदुस्तान”भी रख ले और हम क्या अपने देश के नामों से ही दल बनाकर लड़ते रहेंगे क्या?जो भी यह नहीं समझ रहे हैं, जान लें कि यह “इम्प्रोपर यूज” के अंतर्गत आता है.
    

मुकदमे की है संभावना
निश्चित तौर पर इस मामले में मुकदमा दर्ज होने की संभावना है. विपक्ष को इससे बहुत अधिक फायदा नहीं होगा. नाम इस तरह का करने से विवाद उत्पन्न होगा और बहुत सारा संसाधन और समय इस मामले में, कोर्ट-कचहरी में बीत जाएगा. इस गठबंधन का जो सबसे बड़ा दल है, उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी खुद बड़े मामले में फंसे हुए हैं, वह सुप्रीम कोर्ट गए हैं और उनका बड़ा समय और संसाधन जा रहा है. ऐसे समय यह मामला खुद पर लाद लेना बुद्धिमानी तो नहीं कही जाएगी.

दोधारी तलवार है यह कदम उठाना

इसीलिए नीतीश कुमार जो इसकी अगुआई कर रहे हैं और जिन्होंने पटना में भी पहली बैठक को आयोजित करवाया था, इस नाम के खिलाफ दिख रहे हैं औऱ उन्होंने इसका विरोध भी किया था. उन्होंने कहा था कि इससे अनावश्यक विवाद होगा और वही हो भी रहा है. इसके अलावा यह भी देखने की बात है कि नाम पर यह भी विवाद है कि इसका असली सूत्रधार कौन है? ममता बनर्जी की पार्टी के लोग कह रहे हैं कि यह नाम उन्होंने रखा है, आम आदमी पार्टी के लोग इसमें उनकी अहम भूमिका बता रहे हैं तो कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया श्रीनेत इसे राहुल गांधी का “क्रिएशन” बता रही हैं. तो, खुद में जब इतना डिस्प्यूट है, इतना विरोध क्रेडिट लेने को लेकर ही है, तो गठबंधन कितना मजबूत है, यह तो दिख ही रहा है. दूसरा, मेरा यह भी मानना है कि चाहे जिसने भी यह नाम प्रमोट किया है, वह गठबंधन का भला तो नहीं ही कर रहा है. 

यह दोधारी तलवार है. अगर इस पर मुकदमेबाजी हुई है तो उससे पब्लिसिटी भी मिलेगी, लेकिन वह निगेटिव भी हो सकती है. दरअसल, पिछले 8-10 साल में विपक्ष की तरफ से पहली बार ऐसा कुछ आया है, जिस पर मोदी सरकार को रिएक्शन के मोड में आना पड़ा है. इंडिया या भारत एक देश का नाम है और इस पर प्रतिक्रिया तो आएगी. देखना है कि कांग्रेस इसका फायदा उठा पाती है या नहीं? 

भाजपा का भी है अपना एजेंडा

बीजेपी की तरफ से हम देख रहे हैं कि तर्क दिया जा रहा है कि वे “भारत” हैं. तो, जहां तक नैरेटिव निर्माण की बात है, तो ये भी हो सकता है. “इंडिया” बनाम “भारत”की लड़ाई का मामला भी खींचा जा सकता है, जो मोहन भागवत ने कुछ साल पहले कहा भी था. हालांकि, कानून इस मामले में बहुत स्पष्ट है. अब आप देखिए कि अगर गठबंधन बना है, तो उसका एक ऑफिस तो होगा ही. दिल्ली में ही होगा, उम्मीदतन. अब दफ्तर किसके नाम से खुलेगा? इंडिया के नाम से. कानून तो इसकी इजाजत नहीं देगा. तो किसी और पार्टी के नाम से रजिस्ट्रेशन कराना होगा. कौन पार्टी इसके लिए राजी होगी और राजी नहीं होगी तो क्यों नहीं होगी? कानूनी अड़चन तो इसमें आएगी. 

एक समस्या है कि जब आप इतने बड़े लेवल पर कोई फैसला लेते हैं, तो उससे पीछे हटना आपकी विफलता का प्रतीक होता है, आपकी बात से पीछे हटने का, कोई खामी होने का संकेत होता है. तो, कांग्रेस या गठबंधन जो भी है, वह इतनी जल्दी तो इस नाम को नहीं छोड़ेगा. इससे कुल मिलाकर नुकसान ही होगा. भाजपा और सरकार इस मामले पर कोर्ट में जा सकती है. “इंडिया” या “भारत” के आगे-पीछे लगाए बिना इनका इस्तेमाल गलत है और उनको जाना भी चाहिए. 
यह नाम किसी तरह स्वीकार्य नहीं

एम्बेलम एक्ट में ट्रेडमार्क की भी बात है. आम जनता अगर इस शब्द को सुनेगी कि तो उसके मन में साफ होना चाहिए कि बात किसकी हो रही है? अभी इन्होंने जो नाम रखा है, कूटाक्षरों के रूप में- आई, एन, डी, आई, ए- वह तो सीधे इंडिया की ही प्रतीति करता है, तो वोटर यह सोच सकता है कि वह “इंडिया” यानी देश के खिलाफ वोट क्यों करे, इससे फ्री एंड फेयर एलेक्शन पर भी असर पड़ सकता है. यह पीपल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट के भी खिलाफ है. इसलिए यह चुनाव आयोग की भी जिम्मेदारी है.

कानून ने बहुत दूर तक की सोच रखी है. ऐसा कोई भी मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में आएगा तो वह ट्रेडमार्क के अंदर आता है. देखा जाता है कि दो शब्द जो एक जैसे ही लिखे और सुने जाते हैं, क्या आम जनता उनमें फर्क कर पाती है या भ्रमित होती है, तो जज जब देखेंगे कि देश का नाम और गठबंधन का नाम भी -आई, एन, डी, आई, ए-ही है, तो वह ट्रेडमार्क इंफ्रिंजमेंट होगा न. भारत का सबसे बड़ा ट्रेडमार्क तो इसका नाम ही है न. तो, यह आज्ञा देने लायक नहीं है. यह साफ-सुथरा केस है और यह अलायंस इसमें हारेगा ही, इनको यह ट्रेडमार्क नहीं मिल पाएगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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