एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए, चीनी राष्ट्रपति ने जी20 के शिखर सम्मेलन में आने से मना कर दिया है. 2008 के बाद से राष्ट्राध्यक्षों की वार्ता और सम्मेलन की जी20 में शुरुआत हुई थी. सोमवार यानी 4 सितंबर को चीन ने घोषणा की कि वह राष्ट्रपति जिनपिंग के बजाय अपने प्रधानमंत्री को जी20 के शिखर सम्मेलन में भेजेगा, जिसकी मेजबानी भारत कर रहा है. द्विपक्षीय संबंधों का जहां तक सवाल है, तो यह कदम पहले से कड़वे चले आ रहे रिश्तों में थोड़ी और कड़वाहट घोल सकता है.
समिट के महज चार दिनों पहले, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रीमियर ली कियांग नयी दिल्ली में बैठक में हिस्सा लेंगे, “भारतीय गणराज्य के आमंत्रण पर नयी दिल्ली में हो रहे 18वें जी20 समिट में 9-10 सितंबर को प्रीमियर ली कियांग हिस्सा लेंगे.” यह जानकारी चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ नियांग ने दी.
चीन की जी20 समिट से अपेक्षा के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘दुनिया की अर्थव्यवस्था चूंकि नीचे जा रही है, दबाव और चुनौतियां वैश्विक विकास के लिए बढ़ रहे हैं, तो यह अहम है कि जी20 जो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का मंच है, साझीदारियों को बढ़ावा दे और वैश्विक अर्थव्यवस्था और विकास को मिलने वाली चुनौतियों का सामना करे, ताकि दुनिया की इकोनॉमी सुस्थिर हो और वैश्विक सतत विकास की चुनौती पूरी हो सके.’
उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि नयी दिल्ली समिट इस पर सर्व-सहमति बनाएगी, विश्वास का एक संयुक्त संदेश देगी और साझा समृद्धि और विकास को बढ़ावा देगी.’ उनका बयान साफ तौर पर दिखाता है कि शी भारत नहीं आएंगे, हालांकि उन्होंने इस बात का बिल्कुल स्पष्ट उल्लेख नहीं किया. पत्रकारों के कई बार पूछने पर भी उन्होंने शी की अनुपस्थिति का कोई कारण नहीं बताया.
नुकसान तो चीन का है
राजनयिक सूत्रों का कहना है कि चीन के सर्वोच्च नेता की इस साल के जी20 शिखर सम्मेलन से अनुपस्थिति ने चीन की इस नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है कि वह जी20 को एक समूह के तौर पर कितना महत्व देता है? सूत्रों का यह भी मानना है कि शी जिनपिंग ब्रिक्स समिट में हिस्सा लेने तो दक्षिण अफ्रीका पहुंच गए थे, लेकिन वह भारत नहीं आ रहे तो दिखाता है कि वह समूह को लेकर ‘गंभीर नहीं’ हैं.
हालांकि, माओ इसका जवाब देती हैं, ‘अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए जी20 महत्वपूर्ण फोरम है. चीन ने अब तक इसको लगातार बहुत महत्व दिया है और जी20 के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है. इस साल के जी20 समिट में, प्रीमियर ली कियांग चीन के विचार और प्रस्तावों को जी20 के फोरम पर रखेंगे ताकि सहयोग और संगठन को जी20 देशों के बीच बढ़ाया जाए. हम सभी पक्षों के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं ताकि जी20 समिट सफल हो सके और वैश्विक इकोनॉमी की मजबूती और सतत विकास के एजेंडे को पूरा कर सकें.’
जी20 समिट सालाना तौर पर होता है और इसकी अध्यक्षता हरेक साल अलग-अलग सदस्य देशों को मिलती है. जी20 की अध्यक्षता का मतलब है कि वह देश सदस्य देशों से विचार कर जी20 के एजेंडे को पूरा करें और वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दें. निरंतरता बनाए रखने के लिए, अध्यक्ष देश को वर्तमान, उसके तुरंत पहले के अध्यक्ष देश और अगले मेजबान देश का समर्थन मिलता है. इस बार भारत की अध्यक्षता में यह तीन देश इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील हैं.
चीन में भारत के पूर्व राजदूत और राजनयिक अशोक कंथा ने बताया, ‘राष्ट्रपति शी का समिट में न आना कहीं से यह नहीं दिखाता कि वह समूह को कम महत्व दे रहे हैं या चीन इस समूह को छोड़ना चाहता है. यह मामला होता तो चीनी प्रीमियर भी नहीं आते. हालांकि, राष्ट्रपति का कद चीनी व्यवस्था में बहुत बड़ा होता है. हां, इतना तय है कि राष्ट्रपति जिनपिंग उन फोरम में हिस्सा लेना पसंद करते हैं, जहां चीन की अधिक केंद्रीय भूमिका हो.’
उन्होंने यह भी कहा कि यह चीन का ही नुकसान है क्योंकि वे पूरी तरह से जी20 का फायदा नहीं उठा सकेंगे और यह बड़ा गैप हो सकता है. प्रीमियर को भेजने से मदद इसलिए नहीं मिलेगी, क्योंकि जिनपिंग ही सुप्रीम लीडर हैं.
2007 और 2009 की वैश्विक मंदी के बीच जी20 को राष्ट्राध्यक्षों या सरकारों के प्रमुख के स्तर तक अपग्रेड किया गया था, जब यह समझ में आ गया कि संकट से निबटने और समन्वय के लिए उच्चतम स्तर पर बात करनी होगी. उस समय से ही जी20 के सर्वोच्च नेता लगातार मिलते रहे हैं और बहुपक्षिय फोरम अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है.
अब तक, केवल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ही इस पर अपनी ‘निराशा’ जाहिर की है कि व्यक्तिगत तौर पर जिनपिंग समिट में नहीं होंगे. हालांकि, बाइडेन और जिनपिंग नवंबर में सैन फ्रांसिस्को में होनेवाले एपेक (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन में मिलेंगें. पिछली बार दोनों नेता बाली में मिले थे.
भारत और चीन के संबंधों में आ सकता है तनाव
जी20 समिट को राष्ट्रपति जिनपिंग अटेंड नहीं कर रहे हैं और यह भारत की अध्यक्षता में हो रहा है. यह दोनों देशों के बीच संबंधों की हालत बयान करता है. गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच स्टैंडऑफ के बाद से ही लगातार तनाव बना हुआ है, जो 18 चक्र की वार्ता (कोर कमांडर्स के बीच) के बाद भी नहीं सुधरा है. गलवान में चीन ने हालांकि आज तक अपने पक्ष के मृतकों की संख्या नहीं बतायी है, लेकिन अनुमान है कि पीएलए के 50 से अधिक चीनी सैनिक उस लड़ाई में मारे गए थे, वहीं 20 भारतीय सैनिकों ने भी बलिदान दिया था.
जिनपिंग के नहीं आने से चीन भारत को एक ‘सख्त संदेश’ देना चाहता है कि वह सीमा पर अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटेगा और उसका विस्तारवादी रवैया चलता रहेगा. इस बीच भारतीय वायुसेना चीन और पाकिस्तान से जुड़े सीमाई इलाकों में एक बड़ा युद्धाभ्यास कर रही है, जो 14 सितंबर तक चलता रहेगा. ऑपरेशन त्रिशूल में राफेल, मिराज और एसयू-30एमकेआई जैसे फाइटर एयरक्राफ्ट हिसला ले रहे हैं.
कंथा कहते हैं कि शी जिनपिंग ने 2013 से अब तक सभी जी20 समिट में हिस्सा लिया है, इसलिए उनका भारत नहीं आना रूटीन या सामान्य नहीं है. यह एक संदेश है. हालांकि, उनका यहां आना भी भारत-चीन के सीमाई तनाव को कम नहीं करता, लेकिन यह साफ तौर पर इसका संकेत है कि द्विपक्षीय संबंध ठीक नहीं चल रहे हैं. यह एक संकेत है.
शी इस साल एससीओ की मीटिंग में जुलाई में आनेवाले थे, लेकिन उस वक्त चीनी राष्ट्रपति नहीं आ सके, क्योंकि आखिरी वक्त भारत ने वह मीटिंग वर्चुअल कर दी थी. मोदी और जिनपिंग दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स समिट के दौरान कुछ देर के लिए मिले थे और दोनों ने ही संबंधित अधिकारियों को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों को कम करने और डी-एस्केलेशन को ‘तीव्र’ करने को कहा था. मोदी ने जिनपिंग को कहा था कि भारत-चीन संबंधो को सामान्य करने के लिए सीमावर्ती इलाकों में शांति और स्थिरता को बनाए रखना बेहद जरूरी है.
नयी दिल्ली में राष्ट्रपति जिनपिंग दिल्ली में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित नहीं होंगे, लेकिन यह तय है कि बीजिंग संयुक्त बयान या दिल्ली डेक्लेरेशन के रास्ते में बाधाएं डालेगा. चीन ने रूस के साथ मिलकर यह स्पष्ट किया है कि दोनों ही देश उसको समर्थन नहीं देंगे अगर यूक्रेन युद्ध का उसमें उल्लेख होगा, हालांकि दोनों ही देश इसके लिए पिछले समिट में तैयार हो गए थे.
भारत उस वक्त जी20 की अध्यक्षता कर रहा है, जब पिछले 18 महीनों से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है और अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतियोगिता और तेज हो गयी है.
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