ओपिनियन: आखिर क्यों खामोश हैं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल?
(नोट- नीचे दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
दिल्ली के सियासी गलियारों में उठ रहे एक सवाल ने इन दिनों यहां का पारा कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया है.सवाल उठाने वालों को इसलिये गलत नहीं ठहरा सकते कि हर छोटे-मोटे मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार की मुजमम्त करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जहांगीरपुरी में हुए बुलडोज़र कांड पर आखिर अब तक खामोश क्यों हैं? सवाल तो ये भी उठ रहा है कि दिल्ली के मुसलमानों से मिले एकतरफा वोटों की बदौलत लगातार दो बार अपनी सरकार बनाने वाले केजरीवाल चुप क्यों हैं? वे खुद सामने आने की बजाय अपने दो खास सिपहसालारों के जरिये मीडिया में ये बयान क्यों दिलवा रहे हैं कि जहांगीरपुरी में रहने वाले अधिकांश लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं.16 अप्रैल को हुई हिंसा के बाद से ही बीजेपी सबसे बड़ा आरोप यही लगा रही है कि ये सब उनका किया धराया है, जिसने साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले लिया.
इसलिये बड़ा सवाल ये उठता है कि उस हिंसा की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की फाइनल रिपोर्ट आने से पहले ही केजरीवाल की पार्टी के नेता भी बीजेपी की भाषा बोल रहे हैं. रायसीना हिल्स के साउथ और नार्थ ब्लॉक के निकले एक फरमान से देश की दशा-दिशा तय होने की गूढ़ जानकारी रखने वाले संजीदा लोग भी ये समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर केजरीवाल किस सियासी मजबूरी में चुप हैं.
इस पूरे मामले पर सीएम केजरीवाल की इस चुप्पी का रहस्य हम भी नहीं जानते लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते ये हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम लोगों की तकलीफों को लेकर किसी राज्य के या फिर देश के हुक्मरान के आगे ये सवाल रखें कि आखिर ऐसा क्यों होता है. यहां मामला देश की राजधानी से जुड़ा है,जहां होने वाली हर घटना और उसके बाद होने वाली किसी भी प्रतिक्रिया का संदेश पूरे देश में जाता है.देश की बाकी जनता भले ही भूल जाये लेकिन दिल्ली के लोग जानते हैं कि जब केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी बनाकर चुनावी-मैदान में कूदे थे,तब उन्होंने दिल्लीवासियों से ये वादा किया था कि उनकी पार्टी हर गरीब,अल्पसंख्यक और शोषण झेलने वालों के साथ खड़ी होगी और उनकी दुख-तकलीफों को दूर करने से कभी मुंह नहीं मोड़ेगी.
लिहाज़ा,बुलडोज़र कांड होने के बाद भी दिल्ली का आम मुसलमान केजरीवाल की इस खामोशी पर अगर कोई सवाल उठा रहा है,तो उसके गुस्से के उस दर्द को भी समझना होगा, जिसने आंख मूंदकर केजरीवाल की उस बात पे इतना भरोसा किया.आज अगर वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है,तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है. किसने मुस्लिम वोट बैंक का फायदा उठाकर अब उन्हें बेसहारा छोड़ दिया.
ये सोचने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने के बावजूद जहां करीब दो घंटे तक तोड़फोड़ की कार्रवाई चलती रही,वहां सीपीएम की नेता वृंदा करात कोर्ट आर्डर की कॉपी लेकर पहुंच जाती हैं लेकिन उसके दो-तीन दिन बाद भी केजरीवाल को वहां के जमीनी हालात का जायज़ा लेने और हर वर्ग के पीड़ित लोगों से मिलने की फ़ुरसत तक नहीं मिलती. सियासी मजबूरी अपनी जगह लेकिन नैतिकता का तकाज़ा कहता है कि सीएम को वहां जाना चाहिये था.हालांकि एक कड़वा सच ये भी है कि राजनीति में अब नैतिकता कोई मायने नहीं रखती. सारा खेल अपनी कुर्सी बचाने तक सिमट कर रह गया है,इसलिये जनता की आवाज़ सुनना या उनकी तकलीफों को दूर करना,सियासत की वो आख़री पायदान बन चुकी है,जिसने कभी किसी खास पार्टी को पहली पायदान पर पहुंचाकर उसकी ताजपोशी करवाई थी.
दरअसल,ये तमाम सवाल इसलिये उठ रहे हैं कि केजरीवाल ने अब तक बुलडोज़र कार्रवाई को न तो जायज़ ठहराया है और न ही नाज़ायज़.उन्होंने इस मसले पर मीडिया और सोशल मीडिया में अपने दो नेताओं को आगे कर रखा है.एक हैं,राघव चड्डा जो कल तक दिल्ली के विधायक थे लेकिन अब वह पंजाब से आप के राज्यसभा सदस्य बन चुके हैं.दूसरी हैं,उनकी पार्टी की फायर ब्रांड नेता आतिशी मलरेना.
इन दोनों ही नेताओं ने जहांगीर पुरी में हुई हिंसा के लिए बीजेपी को यो दोषी ठहराया है लेकिन साथ ही अपनी पार्टी के बचाव का तरीका भी खोज निकाला.वे हिंसा के लिये बीजेपी को तो कोस रहे हैं लेकिन साथ ही ये भी बता रहे हैं कि जहांगीरपुरी में रहने वाले अधिकांश लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या है. बीजेपी भी तो पहले दिन से यही बात कह रही है. फिर,आप और बीजेपी में फर्क कहां रहा.