विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को SCO विदेश मंत्रियों की बैठक की पूर्व संध्या पर चीनी विदेश मंत्री किन गैंग और रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ द्विपक्षीय बैठकें की. विदेश मंत्री जयशंकर ने चीनी समकक्ष के सामने दो टूक कहा कि जब तक एलएसी पर हालात नहीं सुधरते तब तक रिश्ते सामान्य नहीं होंगे. दूसरी तरफ पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर भी चेताया. इसे कैसे देखा जाना चाहिए? क्या भारत-पाक के बीच वार्ता शुरू होने की कोई गुजाइश है? दरअसल, चीन के विदेश मंत्री एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के उद्देश्य से आए. इस बैठक से इतर भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर जी ने रूसी विदेश मंत्री लावरोव से भी मुलाकात की और चीन के विदेश मंत्री किन गैंग से भी मिले. उन्होंने अलग से चीन के विदेश मंत्रियों से बातचीत की है, उसमें उन्होंने LAC पर जारी तनाव को खत्म करने को लेकर भारत का पक्ष फिर से दोहराया है.


जब से दोनों देशों के बीच बातचीत शुरु हुई तो भारत की तरफ से यही रवैया रहा है. अब तक कुल 18 राउंड की वार्ता हो चुकी है. इसमें भारत ने बार-बार कहा है कि आगे की वार्ता को बढ़ाने के लिए हमें फिर से 5 मई 2020 के पहले की स्थिति को एलएसी पर बहाल करनी होगी. अभी तक भारत-चीन का जो पारस्परिक संबंध है, इस मुद्दे पर मेल नहीं खा रहा है. इस बार की बैठक से भी यही दिख रहा है कि अभी फिलहाल इस स्थिति में कोई बदलाव आने की गुंजाइश नहीं है. इस मंच पर ये मुद्दे को उठाने की बात नहीं थी क्योंकि दोनों ने आपस में एक तरीके से बातचीत की. जैसा मैंने कहा कि भारतीय विदेश मंत्री ने पुनः भारत का पक्ष रखा है. चूंकि एससीओ एक मल्टीलेटरल फोरम है उसके तहत और चूंकि भारत और चीन का संबंध इस वक्त थोड़ा सा तनाव वाली स्थिति में है. इसका असर थोड़ा बहुत तो एससीओ के ऊपर भी पड़ेगा. 



एससीओ से इतर भारत-चीन की संबंधों पर चर्चा


जैसे आप देखेंगे कि रूसी विदेश मंत्री के साथ एस. जयशंकर ने मल्टीलेटरलिज्म की बात की.  उन्होंने किस तरीके से एससीओ के मल्टीलेटरल फोरम को आगे बढ़ाना है, उसके बड़े परिप्रेक्ष्य को कैसे देखा जा सकता है. इस पर उन्होंने रूसी विदेश मंत्री से बातचीत की है. चीनी विदेश मंत्री के समक्ष जयशंकर ने द्विपक्षीय मुद्दों को इसलिए उठाया क्योंकि भारत की नजर में जब तक संबंध सामान्य नहीं हो जाता है, तब तक इस रिश्ते की आगे बढ़ने की संभावनाएं थोड़ी कम हैं. कोई भी एक ऐसा कदम हो जिससे यह समझा जाए की किसी समस्या का हल निकाला जा सकेगा तो हमें उसका स्वागत करना चाहिए. लेकिन इस समय तो ऐसी कोई उम्मीद नहीं जाग रही है कि भारत-पाकिस्तान के बीच जो वार्ताएं हैं वो फिर से शुरू हो पाएगी.


हां ये जरूर है कि इस तरह से पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी का आना इस बात का संकेत देता है कि एससीओ जो कि एक मल्टीलेटरल प्लेटफार्म है और उसमें भारत-पाकिस्तान दोनों ही सदस्य देश हैं, उसको हम किसी कीमत पर भी बिगड़ने या बिखरने नहीं देना चाहते हैं. ये भारत की तरफ से संकेत है. हालांकि, चीन और भारत-पाकिस्तान के जो रिश्ते हैं वह थोड़ी सी इस वक्त खटाई में है. लेकिन एससीओ के जरिए हम यह कोशिश करेंगे कि उसको आगे बढ़ाते रहें और इसका दुष्प्रभाव तो थोड़ा बहुत दिखेगा ही. 


भारत ने किया अपना रुख साफ


अपने-अपने जो रूख हैं उसे दोनों देश फिर से आगे कर रहे हैं. ये हम चीन के साथ भी देखते हैं और जो हमारी अपेक्षाएं हैं वह किस तरह कि है और पाकिस्तान के साथ भी हम क्या चाहते हैं. इन दोनों को स्पष्ट रूप से यह संकेत दे दिया गया है कि कुछ मुद्दों को पूरी तरीके से सुलझाना पड़ेगा जिससे कि रिश्ते आगे बढ़ें. भारत ने अपनी तरफ से अपना रूख साफ कर दिया है. मुझे नहीं लगता कि भारत की तरफ से कुछ ज्यादा अग्रेशन दिखाया जा रहा है. मेरी राय में तो भारत एक तरीके से औपचारिक तौर पर अपनी बातों को आगे रख रहा है. भारत नहीं चाहता है कि किसी भी तरीके से कुछ गलत संदेश ना चला जाए क्योंकि हमारा जो बेसिक स्टैंड है उसे हम आगे बढ़ा रहे हैं. इसमें कोई शंका-सुभा नहीं हो कि हम मिल रहे हैं तो इसलिए सारी चीजें ठीक हो गईं. इस तरह से ये स्टैंड भारत का रहा है. हम यह पिछले 1 साल से देख रहे हैं. जब से दोनों देशों के कमांडर लेवल पर या कूटनीतिक लेवल पर बातचीत शुरू हुई है. जबकि चीन बार-बार ये कह रहा है कि हमें रिश्तो को आगे बढ़ाना चाहिए. एक तरीके से हम ऐसी स्थिति में है जहां पर दोनों देशों के नजरिए का मिलाप नहीं हो पा रहा है. 


ऐसा लगता है कि दोनों के बीच मामला थोड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा. चूंकि दोनों एक-दूसरे के समक्ष खड़े हो रहे हैं और जो बातें हैं उन्हें रख रहे हैं. लेकिन ये नहीं दिख रहा है कि जो कदम उठाए जाने चाहिए वो उठाए जा रहे हैं. ये संतोष हो सकता है कि चलिए बातें हो रही हैं, मुलाकातें हो रही हैं. रिश्ते पूरी तरीके से टूटे हुए नहीं हैं और किसी स्थिति में ऐसा हो कि कुछ बदलाव हो ही जाए. लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है. लेकिन ये है कि दोनों के रिश्ते एक स्तर पर स्थिर हो गए हैं और हो सकता है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सितंबर में जी-20 के शिखर वार्ता में शामिल होने के लिए भारत आएं. तब तक कुछ उम्मीद निकले तो बात हो, लेकिन फिलहाल तो ऐसी स्थिति नहीं है.


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]