जमीयत के वरिष्ठ नेता अरशद मदनी के बयान का काफी विरोध देखने को मिला. देश का जो राजनीतिक और सामाजिक महौल बिगड़ रहा है उसमें बात का बतंगड़ बनाना एक फैशन सा हो गया है. बात क्या है और उसे किसे तरह से पेश किया जाता है. इतिहास, तथ्य और जो लोगों के व्यक्तित्व की जो मंशा होती है उसके ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. दरअसल, यहां पर हम मोटे तौर पर तीन बातें कह रहे हैं...एक तो ये कि जमीयत उलेमा का जो 34वां राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा था जो उसके अध्यक्ष हैं महमूद मदनी, उन्होंने एक बात कही कि इस्लाम धर्म के अनुयायी भारत वर्ष में शुरुआत से ही रह रहे हैं, तो वे पूर्ण रूप से भारतीय हैं, वे बाहर से नहीं आए हैं.
दूसरी बात, उनके चाचा अरशद मदनी ने की है. उन्होंने जो धर्म और आस्था से संबंधित बात की है. उसको लेकर कुछ जैन धर्म गुरुओं ने आपत्ति की. तीसरी बात जो आती है उसको हिंदू-मुस्लिम का रंग देने की या उसका राजनीतिकरण या जिन्ना कि बात कही जा रही है. दरअसल, वो असत्य है और वो समझ से भी परे है...क्योंकि अगर आप जमीयत उलेमा-ए-हिंद का इतिहास देखें जब भारत में जो जिन्नावादी सोच थी, जो टू नेशन थ्योरी थी उसके विरोध में खड़ी हुई थी. उसके जो मौलाना हुसैन अहमद मदनी थे उनका मानना ये था कि भारत में जो लोग रहते हैं, हिंदू-मुसलमान, सिख-ईसाई वो सब एक ही कौम के हैं. उनका एक कौम का नजरिया था जो टू नेशन थ्योरी के विरूद्ध था.
मौलाना अरशद मदनी ने भाव में बहकर दिया बयान
मौलाना मदनी जो महमूद मदनी के दादा जी हैं, वे स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका मानना था कि मिल्लत और कौम के बीच में अंतर करते हुए कहा था कि हिंदू और मुस्लिम जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहें हैं वो सब एक ही कौम हैं. उन्होंने कहा था कि जो मुस्लिम मिल्लत होती है, उसमें अलग-अलग समाजिक और धार्मिक सोच आती है. मौलाना अरशद मदनी ने जो बयान दिया है, जिसके ऊपर प्रश्न उठाया गया है, जैन मुनी के द्वारा देखिए उसके दो पहलू हैं.
एक तो ये कि उनकी एक अपनी धार्मिक आस्था की वर्णन किया और वो ऐसा फोरम नहीं था क्योंकि जमीयत उलेमा ने अपने अधिवेशन में दूसरे धर्मगुरुओं को बुलाया था तो उसका ये मुद्दा था जो उन्होंने अपना एक प्रस्ताव पास किया है. उससे भी साफ जाहिर है कि हिंदुस्तान में जहां एक से ज्यादा धर्म रहते हैं, वहां पर वे आपस में मिलजुल कर कैसे रहें. मुद्दा ये नहीं था कि किस धर्म की क्या मान्यता है. तो मुझे लगता है कि मौलाना अरशद मदनी भाव में बह गए और उन्होंने जिन शब्दों का चयन किया उससे दूसरे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है.
इस्लाम धर्म का भी अगर आप अध्ययन करें तो इस्लाम धर्म में दूसरे धर्म के बारे में लोगों के बारे में बहुत सोच-समझ कर बोलने की बात कही गई है. किसी भी तरह से दूसरे धर्म को नीचा दिखाया जाए और वे अपमानित महसूस करें ये इस्लाम धर्म की मंशा भी नहीं है. अरशद मदनी ने जो बात कही है उसके ऊपर उन्हें एक बार बयान देना चाहिए. जो अधिकृत बयान आया हैं और जो रिजोल्यूशन मैंने पढ़ें हैं, वो ये कि उसमें तो ये बातें कही है कि देश सबका है और सब उसमें कैसे योगदान दें सकें और कैसे मजबूत कर सकें वो उसका एक सार है. ये महत्वपूर्ण नहीं है कि देश हमारे लिए क्या कर रहा है...और हम देश के लिए क्या कर रहे हैं...और समाज को कैसे मजबूत करें...
विवाद खड़ा करना गिरिराज सिंह का रहा है ट्रैक रिकॉर्ड
गिरिराज सिंह का एक ट्रैक रिकॉर्ड है वे कहीं की बात को कहीं से जोड़ कर देखते हैं...जिन्ना का तो धर्म से कोई लेना-देना नहीं था जो उनकी अपनी एक राजनीतिक सोच थी. टू नेशन थ्योरी की जो बात थी उसका सबसे ज्यादा विरोध था उस जमाने के मुस्लीम धर्मगुरुओं व अनुयायी जिसमें जमीयत ऊलेमा ए हिंद सबसे आगे था. उससे गिरिराज या जिन्ना को चाहें अब्दुल कलाम आजाद हों या हुसैन अहमद बदरी हों, इन तमाम लोगों से उनका वैचारिक मतभेद था...ये तो बहुत अटपटा लगता है कि ये जिन्नावादी सोच है. मुझे तो लगता है कि जमीयत उलेमा का जो अधिवेशन का फोकस था और उसमें जो महमूद मदनी जो कि अध्यक्ष हैं, उन्होंने जो बयान दिया है उसको तवज्जो देनी चाहिए.
उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही थी कि देश का जो मुसलमान है वो पूर्ण रूप से भारतीय है और इस पर कोई बाहर वाला टैग नहीं लगाना चाहिए..देश के इतिहास में बहुत सारे उतार-चढ़ाव हुए हैं, कई शासक आएं जो उनकी सोच थी. लेकिन इस्लाम धर्म को मानने वाले शुरुआती दौर से, केरल में एक मुहम्मद साहब के समय से एक मस्जिद भी है. उसका मतलब ये है कि जब इस्लाम आया तो यहां के मुसलमान शुरू से ही यहीं के थे.
अधिकृत बयान पर होनी चाहिए चर्चा
ये आज की बात नहीं है कि जो सौहार्द की बात करता है, जो एकजुटता की बात करता है, विविधता की, देश की एकता कीतो उस चीज को कुछ लोग अपने राजनीतिक नफा-नुकसान की दृष्टि से देखते हैं. इसलिए जो अधिकृत बयान है या जो प्रस्ताव है जिसमें उलेमा ए हिंद ने मुस्लिम समाज की जो महिलाएं हैं और जो उनका हक है वो दिए जाएं. तमाम चीजें शादी-विवाह, तलाक के मामलों को लेकर उनके जो जमीन, ज्यादाद के हक हैं उसको लेकर उन्हें इंसाफ मिले और उनके साथ अच्छा वर्ताव किया जाए...और जो तमाम चीजें जो सकारात्मक बाते हैं...उस पर ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है. उनको औ उनके संगठन को भी यह कहना चाहिए कि जो अरशद मदनी के जो बयान उनको इसके ऊपर स्पष्टिकरण देना चाहिए...ताकि मामला ज्यादा तूल पकड़े. जैसा मैंने कहा कि ये जो जमीयत उलेमा का जो अधिवेशन में दूसरे धर्मगुरुओं को बुलाया गय था वो इसलिए कि वे उसका जो काम है उसको देखें कि कैसे वो समाम में, विभिन्न धर्मों में एकता और समरसाता लाकर काम कर रही है ये उनकी मंशा थी.
प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि इन सब चीजों से बचना चाहिए
देखए, जब हम जनमानस की बात करते हैं तो एक चीज तो ये होती है कि एक साइमलेंट कम्यूनिटी है, जो समझदार होता है. दूसरा वो होता है जो राजनीतिक चश्में से इन सब चीजों को देखता है...और उसका गुणा-भाग करता हैं. कुछ लोग मीडिया के जरिये उस नैरेटिव को वो अपने तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं. मुझे लगता है कि गिरिराज सिंह वही प्रयास कर रहे हैं. हालांकि इससे उन्हें बचना चाहिए. प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि इन सब चीजों से बचना चाहिए लेकिन वो उनकी एक आदत है. और वे उसी तरीके से करते हैं. मुझे लगता है कि उसका कोई व्यापक असर नहीं पड़ेगा. दो चार दिन में वो बात सेटल हो जाएगी. लेकिन ये जरूर है कि जमीयत उलेमा की जो मंशा थी इस कार्यक्रम के माध्यम से उसको अनावश्यक रूप दे दिया गया है.
अरशद मदनी को अपने पर देना चाहिए था सपष्टीकरण
यह भी देखना चाहिए कि जिस मंच से अरशद मदनी ने अपनी बात रखी उसी मंच पर जैन मुनी को अपनी बात पुरजोर तरीके से रखने का मौका मिला. हालांकि वे फिर वहां से मंच छोड़कर चले गए. लेकिन वहां न कोई नारेबाजी हुई और ना हीं उनको कोई वहां से जाने के लिए बाध्य किया था. लेकिन वो उनका एक हक भी था कि वो जिस तरीके से उन्होंने सोचा वो अपनी बात रखी. देखिए लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात रखने का हक है और जिस मंच पर अगर किसी व्यक्ति को बुलाया गया था वहां पर एक शिष्टाचार की बात होती है. तो जिस तरह से बात रखी गई उससे किसी को ठेस लगी है तो उसका स्पष्टीकरण होना चाहिए था, उसी समय जो नहीं हुआ. उस व्यक्ति ने अपनी बात भी कह दी और उसके बाद उसे शांत हो जाना चाहिए था बाकी कार्यक्रम आगे बढ़ना चाहिए था. लेकिन जो होना था वो अब हो गया. देखिए सभी धर्म एक हैं लेकिन धर्म को मानने वाले और धर्मगुरु उस चीज को नहीं समझते हैं और उसको लेकर विवाद नहीं होना चाहिए. सभी मानते हैं कि हम सब ईश्वर की संतान हैं इसमें बातों का बतंगड़ नहीं बनना चाहिए था.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)