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ड्रोन हमला: बातचीत से बौखलाए आतंकियों के खात्मे के लिए बदलनी होगी रणनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई जम्मू कश्मीर के नेताओं की बातचीत आतंकवादियों के साथ ही पाकिस्तान को जरा भी रास नहीं आई है. जम्मू के एयर फोर्स स्टेशन पर ड्रोन से किया गया. हमला उसी बौखलाहट का नतीजा है क्योंकि सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ अब पहले की तरह उतनी आसान नहीं रही. इसीलिये अब ड्रोन को ही आतंकी वारदातों को अंजाम देने का सबसे कारगर जरिया माना जा रहा है. दरअसल, घाटी में सक्रिय आतंकियों को पाकिस्तान की आर्मी व आईएसआई ही ट्रेनिंग देती आई है. वो किसी भी सूरत में ये नहीं चाहती कि कश्मीर में फिर से अमन-चैन बहाल हो और वहां विधानसभा चुनाव कराने लायक माहौल बन पाये. रक्षा विशेषज्ञों व खुफिया सूत्रों की मानें, तो सरकार के साथ कश्मीरी नेताओं की बातचीत की प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए पाकिस्तान इसी तरह के और हमलों को अंजाम देने की कोशिश आगे भी करता रहेगा.

दरअसल, पाकिस्तान व आतंकियों के बौखलाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के बाद सुरक्षा बलों को सरकार की तरफ से जो फ्री हैंड दिया गया था, उसके बेहद अच्छे नतीजे सामने आए हैं. सेना और सुरक्षा बलों ने मिलकर ऐसे कई ऑपरेशन को अंजाम दिया, जिसमें आतंकी गुटों के कई बड़े सरगना मारे गये. राज्य के डीजीपी दिलबाग सिंह के मुताबिक पिछले पूरे साल में 225 आतंकी मारे गए, जिसमें 46 टॉप कमांडर थे. सुरक्षा बलों के सूत्रों के मुताबिक अगस्त 2019 में राज्य का विशेष दर्जा वापस लेने के बाद से अब तक तीन सौ से भी ज्यादा आतंकी मारे गए हैं. कई कोशिशों के बाद भी जब पाक सेना सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ कराने में नाकाम हो गई, तो उसने ड्रोन के जरिये सुरक्षा बलों के ठिकानों पर हमले करने की तरकीब निकाली.

लिहाजा, सरकार को अब एक साथ दो मोर्चों पर अपनी कवायद तेज करनी होगी. एक तरफ जहां राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने के लिए चरमपंथी विचारधारा वाले नेताओं के बीच आम सहमति बनानी होगी, तो वहीं अत्याधुनिक तकनीक के जरिये किये जाने वाले ऐसे हमलों से निपटने के लिए सुरक्षा की रणनीति में भी जरूरी बदलाव करने होंगे. बताया गया है कि फिलहाल हमारी वायु सेना के स्टेशन ऐसे राडार सिस्टम से लैस नहीं हैं, जो कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ऐसे मानवरहित ड्रोन या अन्य उपकरणों को पकड़ सकें. लिहाजा, पहली प्राथमिकता तो यही होनी चाहिए कि अंतराष्ट्रीय सीमा के नजदीकी सभी स्टेशनों को ऐसे एन्टी ड्रोन सिस्टम से लैस किया जाये.

खुफिया एजेंसियों के सूत्रों की मानें, तो 24 जून को जब प्रधानमंत्री कश्मीरी नेताओं से बातचीत कर रहे थे, तब भी इसी तरह के हमलों से सुरक्षा बलों के ठिकानों को निशाना बनाने की योजना थी लेकिन चाक-चौबंद सुरक्षा इंतजाम और इंटरनेट सेवा बंद होने के कारण आतंकी उसे अंजाम नहीं दे सके. लेकिन जम्मू में ताजा ड्रोन हमले के बाद अगली रात फिर सुरक्षा बलों के ठिकानों के आसपास दो ड्रोन दिखाई देने का मतलब साफ है कि आईएसआई ने कश्मीर घाटी में बैठे आतंकियों तक इसकी सप्लाई कर दी है.

बताया जा रहा है कि ये छोटे किस्म के ड्रोन हैं जो 4-5 किलो की विस्फोटक सामग्री को लेकर अधिकतम ढाई किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं.कह नहीं सकते कि आतंकियों के पास ये कितने बड़े पैमाने पर उपलब्ध होंगे. 

ख़ुफ़िया सूत्रों का तो यह भी दावा है कि प्रधानमंत्री की बैठक से पहले पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके के तेजिन इलाके में पाक सेना और आईएसआई के अफसरों ने लश्कर ए तैयबा व हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख आतंकियों के साथ मीटिंग की थी. उसमें ही तय किया गया कि अब ड्रोन हमलों को ही एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाये.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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