जिसे अब तक कश्मीर का अलगाववादी नेता बताया जा रहा था, उसी यासीन मलिक को दिल्ली की विशेष NIA अदालत ने आतंकवादी ठहराते हुए उम्र कैद की सज़ा सुना दी है. ये फैसला आने के महज़ दो घंटे के भीतर ही आतंकियों ने कश्मीर घाटी में एक टीवी एक्ट्रेस की हत्या करके जो दहशत फैलाई है, वो हमें एक ख़तरनाक मंज़र दिखाने की तरफ इशारा कर रहा है.


जाहिर है कि कोर्ट के इस फैसले से पाकिस्तान पूरी तरह से बौखला उठा है और उसने अपने गुर्गों को घाटी में दहशतगर्दी फैलाने का फ़रमान सुना दिया है. लेकिन हमारे सुरक्षा बलों के लिये सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि पाकिस्तान के खाद-पानी से पलने वाले इन आतंकियों ने अब महिला व बच्चों को अपना टारगेट बनाना शुरु कर दिया है. पाकिस्तान की बौखलाहट इसलिये है कि उसने पिछले तीन दशकों में कश्मीर में आतंक फैलाकर उसे भारत से तोड़ने की कोशिश करने में लगे यासीन जैसे तमाम अलगाववादी नेताओं की अपने मुल्क में एक दामाद की तरह से  मेहमान नवाजी की है.


शायद यही वजह थी कि यासीन मलिक को सजा सुनाये जाने से पहले ही पाकिस्तान इतना बैचेन हो उठा, मानो यासीन मलिक की पैदाइश भारत में नही, पाकिस्तान में हुई हो. भारत में रह चुके पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने एक ट्वीट के जरिये अपनी भड़ास निकाली, तो वहीं पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी भी एक आतंकी के बचाव में कूद पड़े.


हालांकि अब्दुल बासित के  ट्वीट को लेकर कश्मीरी पंडित व फ़िल्म मेकर अशोक पंडित समेत कई लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर जमकर लताड़ा, जिसके बाद उनकी ये हिम्मत नहीं हो सकी कि वे उसका जवाब दे पाएं. बासित ने अपने ट्विट में लिखा कि "शर्मनाक! भारत की कंगारू कोर्ट  के द्वारा न्यायिक आतंकवाद फैलाया जा रहा है. इससे पहले कि मोदी खुद को फासीवादी ताकत में बदल लें, दुनिया को भारत के सामने उठकर खड़ा होना पड़ेगा."


उन्हें इसका जवाब देते हुए अशोक पंडित ने अपने ट्वीट में लिखा - "शुक्र मनाओ कि आप अब तक जिंदा हो! जिनको बचाने की कोशिश कर रहे हो,वो ही आपको शिकार बनाएंगे!" अलगाववादी नेता से आतंकी करार दिए गए यासीन को लेकर पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने भी नफरतभरा ट्वीट किया है.अफरीदी ने कहा, भारत उन आवाजों को दबाने की कोशिश कर रहा है जो कि मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ उठ रही हैं.


अफरीदी ने अपने ट्वीट में लिखा, "यासीन मलिक के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाकर कश्मीर की आजादी के संघर्ष को रोका नहीं जा सकेगा. यूएन को कश्मीरी नेताओं के खिलाफ इस तरह के गैरकानूनी मुकदमों का संज्ञान लेना चाहिए."' अफरीदी के इस नफरतभरे ट्वीट पर पूर्व क्रिकेटर अमित मिश्रा ने करारा जवाब दिया. उन्होंने कहा, "प्रिय शाहिद अफरीदी, उसने कोर्ट में खुद अपना जुर्म कबूल किया है. तुम्हारी जन्मतिथि की तरह सब कुछ मिसलीडिंग नहीं हो सकता."


हालांकि आतंकियों ने बुधवार की देर शाम घाटी के बडगाम जिले के चादूरा इलाके में टीवी आर्टिस्ट अमरीन भट (Ambreen Bhat) की गोली मारकर हत्या करने की कायराना हरकत पहली बार नहीं की है,जिसमें उनका दस साल का भतीजा भी ज़ख्मी हुआ है.


इससे पहले मंगलवार को आतंकियों ने श्रीनगर के सौरा इलाके में एक पुलिस कांस्टेबल की उन्हीं के घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी थी.उस हमले में उनकी सात वर्षीय बेटी भी घायल हो गई.पुलिस के मुताबिक आतंकियों ने कांस्टेबल सैफुल्ला कादरी पर उस समय गोलीबारी की, जब वह अपनी बेटी को ट्यूशन छोड़ने जा रहे थे.


गौर करने वाली बात ये है कि पिछले कुछ महीनों में ये आतंकी कश्मीरी पंडितों या अप्रावसी हिंदुओं को ही अपना निशाना बना रहे थे लेकिन अब उन्होंने घाटी में रह रहे मुस्लिमों और खासकर महिलाओं व बच्चों को टारगेट करना शुरु कर दिया है.इससे निपटना हमारे सुरक्ष बलों के लिए बड़ी चुनौती तो है ही लेकिन इसके बैक ग्राउंड को भी समझना होगा कि आतंकी हमलों में एकाएक इतनी तेजी क्यों आ गई है.


दरअसल,जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद वहां बड़े बदलाव होने की शुरुआत हो चुकी है. सबसे बड़ा बदलाव ये है कि 33 साल के बाद घाटी की हसीन वादियों में बॉलीवुड फिर से लौटने लगा है. आतंक की वजह से अपनी फिल्मों की शूटिंग के लिए यूरोप जाने के लिए मजबूर हो चुके निर्माता-निर्देशकों का अब कश्मीर घाटी के प्रति फिर से रुझान बढ़ने लगा है. डर का माहौल खत्म हो रहा था और चाक चौबंद सुरक्षा इंतजामों के अलावा वहां के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की ओर से घोषित की गई  पहली फिल्म नीति के चलते जम्मू-कश्मीर में फिल्म शूटिंग के लिए कई निर्माता निर्देशक पहुंचना शुरु हो गए थे. फिल्म नीति घोषित होने के बाद एक साल से भी कम समय में एलजी प्रशासन की तरफ से  120 से भी अधिक फिल्मों की शूटिंग की अनुमति दी जा चुकी है. इनमें हिंदी के साथ ही दक्षिण भारतीय और पंजाबी फिल्में भी शामिल हैं.


प्रदेश में फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए गठित जम्मू-कश्मीर फिल्म विकास परिषद की ओर से शूटिंग लोकेशन भी जारी की गई हैं ताकि इच्छुक फिल्म निर्माताओं को किसी खास तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े.एलजी ने वहां की ब्यूरोक्रेसी में ऐसी व्यवस्था बना डाली है कि यदि किसी को भी घाटी में फिल्म शूटिंग के लिए अनुमति चाहिए, तो सारी प्रक्रिया महज चार से पांच दिनों में पूरी हो जाएगी. खास बात ये है कि शूटिंग स्थल और उनके ठहरने की जगह पर पूरी फ़िल्म यूनिट को समुचित सुरक्षा भी प्रदान की जा रही है.


अब जरा सोचिये कि पाकिस्तान में बैठे इन आतंकियों के आका कभी चाहेंगे कि कश्मीर फिर से गुलज़ार हो जाये? वो भला क्यों चाहेंगे कि श्रीनगर की डल झील में तैर रहे उन शिकारों में बैठे हमारे हीरो-हीरोइन पर कोई ऐसा गाना रिकॉर्ड हो जाये,जिस फ़िल्म को देखने के लिए पाकिस्तान का अवाम भी दीवाना हो जाए? इसलिये कड़वा सच तो ये है कि यासीन मलिक सिर्फ बहाना है, असली मकसद तो कश्मीर में और खतरनाक नफ़रत फैलाना है.



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)