"नफ़रत करने वालों ने हुकूमत की होगी, मगर शायरी तो मोहब्बत करने वालों ने की है." ये अल्फ़ाज़ उन्हीं मशहूर गीतकार व शायर जावेद अख्तर के हैं जिनके चर्चे इन दिनों पाकिस्तान से लेकर हमारे देश में भी हो रहे हैं. इसलिए कि वे लाहौर जाकर भी पाकिस्तान को उसका आईना दिखाने से न तो डरे और न ही अपने वतन के प्रति देशभक्ति की नुमाइश करने से जरा भी परहेज़ किया. इसलिए कि 78 बरस के इस शायर ने दुश्मन मुल्क की सरजमीं पर 26 /11 को मुंबई में हुए आतंकी हमले को लेकर उसे हकीकत का आईना दिखाने का जिगरा दिखाया है. 


वह बेहद काबिले तारीफ इसलिए भी है कि उनकी इस बात पर वहां मौजूद लोगों ने तालियां बजाकर इसकी ताक़ीद भी की है. शायद इसीलिए सोशल मीडिया पर उनकी तारीफों की जबरदस्त बाढ़ आई हुई है. हालांकि कोई भी शायर या गीतकार न तो किसी मज़हब की जंजीर में बंधा होता है और न ही मुल्कों की सरहदें उसकी लेखनी को रोक सकती है. बेशक जावेद अख़्तर मज़हब से एक मुसलमान हैं लेकिन उन्होंने पाकिस्तान में जाकर वहां के पूरे अवाम को ये अहसास कराया है कि उनकी रगों में आज भी हिंदुस्तानी खून दौड़ रहा है जो उनकी वतनपरस्ती को कोई छीन नहीं सकता. वैसे जावेद अख़्तर को सरकारों ने देश के दो नागरिक सम्मानों यानी पद्मश्री और पदमभूषण से सम्मानित किया हुआ है. लेकिन फिर भी उनकी लेखनी को लेकर एक बड़ा तबका यही मानता आया है कि वे वामपंथी विचारों से प्रभावित हैं लेकिन जावेद साहब ने कभी इसकी कोई परवाह नहीं की.


वैसे देखें, तो हमारे देश की संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा में मनोनीत होने वाले सदस्यों में पति-पत्नी के रूप में जावेद अख़्तर और शबाना आज़मी की जोड़ी इकलौती व अनूठी मिसाल है. शबाना को साल 1997 में मनोनीत किया गया था जबकि जावेद अख़्तर को मनमोहन सिंह सरकार ने 2010 में उच्च सदन का सदस्य नामित किया था. दोनों ने सदन के भीतर और बाहर अक्सर अपनी बेबाक राय से लोगों को ये अहसास कराया कि वे सच्चे हिंदुस्तानी हैं. बात करते हैं कि जावेद अख़्तर ने ऐसा क्या कह दिया जिसके लिए पाकिस्तान के लोगों ने तालियां बजाईं, तो वहीं हमारे देशवासी सोशल मीडिया पर उनकी तारीफ़ करते नहीं थक रहे हैं. दरअसल, बीते दिनों लाहौर में मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की याद में साहित्य का उत्सव था जिसे फैज फेस्टिवल कहते हैं. साल 2015 से ये सालाना जलसा मनाया जा रहा है. इस बार जावेद अख्तर भी वहां मेहमान थे.


उसी कार्यक्रम में उनसे एक सवाल पूछा गया कि "आप कई बार पाकिस्तान आये हैं. जब आप वापस अपने वतन लौटते हैं तो क्या अपने लोगों को बताते हैं कि पाकिस्तानी भी अच्छे लोग हैं, वे न केवल हम पर बमबारी कर रहे हैं बल्कि हमें माला पहनाते हुए प्यार से बधाई भी दे रहे हैं? जावेद अख़्तर ने खुले मंच से बेखौफ होकर इसका बेहद सटीक जवाब दिया. उन्होंने मुम्बई के 26/11 के आतंकी हमले को याद करते हुए जवाब दिया, "आइए हम एक-दूसरे को दोष न दें. इससे मुद्दों का समाधान नहीं होगा. जो गरम है फिजा, वो कम होनी चाहिए. हम पर हमला हुआ. हम तो बंबई के लोग हैं. हमने देखा, वहां कैसे हमला हुआ था. वो लोग नॉर्वे से तो नहीं आए थे और ना मिस्र से आए थे, वो लोग अभी भी आपके मुल्क में घूम रहे हैं. तो ये शिकायत अगर हिंदुस्तानी के दिल में हो तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिए. वे अभी भी आपके देश में मौजूद हैं, इसलिए अगर कोई भारतीय इस बारे में शिकायत करता है तो आपको नाराज नहीं होना चाहिए.''


भारत लौटने पर जावेद अख्तर से उनके इस बयान पर जब एक न्यूज चैनल ने बात की, तो उन्होंने बताया- हॉल में मौजूद लोग मेरी बातों से सहमत थे और सभी ने इस पर ताली भी बजाई. कई लोग हैं जो भारत की तारीफ करते हैं और वो भारत से बेहतर रिश्ते चाहते हैं. हम एक ऐसी दुनिया की बात करते हैं जहां बंटवारा न हो. हमें यह सोचना चाहिए कि पाकिस्तान के लाखों लोग जो हमसे जुड़ना चाहते हैं, उन्हें कैसे जोड़ा जाए. लेकिन ऐसा नहीं है कि जावेद अख्तर ने नफ़रत के दाग को मुहब्बत के पानी से धोने की कोशिश पहले कभी न की हो. वह अकेले ऐसे मुस्लिम सांसद रहे हैं जिन्होंने 16 मार्च 2016 को सदन से अपनी विदाई के वक्त राज्यसभा में सिर्फ एक बार नहीं बल्कि तीन बार 'भारत माता की जय' के नारे लगाकर तमाम कट्टरपंथियों को चौंका दिया था. तब उन्होंने अपने विदाई संबोधन में  AIMIM के नेता असदुद्दीनओवैसी का नाम लिए बगैर उन पर हमला बोलते हुए कहा था कि आंध्र प्रदेश में एक शख्स हैं, जिन्हें गुमान हो गया है कि वह राष्ट्रीय नेता हैं जिनकी हैसियत एक शहर या एक मुहल्ले से ज्यादा नहीं है. वह कहते हैं कि वह किसी भी कीमत पर ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलेंगे क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है.


जावेद अख्तर ने पूछा था कि वह बताएं कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने की बात कहां लिखी है. उन्होंने कहा, ‘बात यह नहीं है कि भारत माता की जय बोलना मेरा कर्तव्य है या नहीं, बात यह है कि भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है. मैं कहता हूं- भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय.’ इस पर उच्च सदन सदस्यों की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने सत्ता पक्ष को भी परोक्ष रुप से निशाने पर लेते हुए कहा था कि देश में ध्रुवीकरण और धार्मिक कट्टरता फैलाने की कोशिशों को भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. उन्होंने सत्तारूढ़ बीजेपी से कहा कि वह अपने उन विधायकों, सांसदों, राज्य मंत्रियों और मंत्रियों  को रोके, जो नफरत फैलाने वाले बयान देते हैं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)