संगीतकार जावेद अख्तर ने लाहौर में फैज फेस्टिवल के दौरान पाकिस्तान को मुंबई आतंकी हमले को लेकर उसे आईना दिखा दिया.  जावेद अख्तर का ये बयान काफी सकारात्मक रहा. मैं समझता हूं कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं कहा होता तो अच्छा न होगा. वो बड़े सोशलाइज हैं और भारत में जाना-पहचाना नाम है और फिल्म इंडस्ट्री की एक बड़ी हस्ती हैं. वह संसद के सदस्य भी रह चुके हैं. उन्होंने जो सवाल उठाया वो मैं समझता हूं कि बहुत ही जायज और टाइमली था. उनका पूरा परिवार राष्ट्रवादी है. उनके पिता भी राष्ट्रवादी और कवि थे. उनकी पत्नी शबाना आजमी भी राष्ट्रवादी है.


एक तो वे जिस फोरम में गए थे, फैज फेस्टिवल में वे लाहौर के अंदर आता है. फैज खुद भारत से दोस्ती के पक्ष में थे. फैज काफी प्रोग्रेसिव राइटर थे. इसलिए काफी अच्छा फोरम था, जहां से उन्होंने इस मसले को उठाया.


कट्टरपंथी ताकतों का बड़ा प्रभाव
खुशी की बात ये है कि लोगों ने उस पर ताली बजाई उनमें से अधिकतर लोग ये चाहते हैं कि भारत के साथ संबंध बेहतर हो. वहां पर जो कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाएं हैं वो भारत विरोधी काम करती रहती हैं. वो भारत विरोधी काम करती रहती है. कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाओं का वहां पर काफी प्रभाव है. सेना और कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाओं का बड़ा तालमेल हैं. ये आपस में एक दूसरे को बड़ा सपोर्ट करते हैं.


जब सेना पावर हासिल कर सत्ता में आती है तो यही कट्टरपंथी संस्थाएं उन्हें मान्यता देती है. पाकिस्तान में विभाजन है लेकिन अधिकतर जनता ये चाहती है कि भारत के साथ अच्छा संबंध हो. लेकिन भारत के साथ अगर संबंध बेहतर होते हैं तो सेना को वापस बैरक में जाना पड़ेगा. जो उसकी राजनीतिक भूमिका है वो खत्म हो जाएगा. सेना अक्सर पाकिस्तान की जनता को भारत का डर दिखाती रहती है.


जावेद अख्तर ने पाकिस्तान को दिखाया आईना


जावेद अख्तर ने मुंबई हमले को लेकर लाहौर में जाकर उन्हें आईना दिखा दिया. उन्होंने ये दिखा दिया का आतंकवाद के खिलाफ सब एकजुट है. उन्होंने ये अच्छी बात की. यही वजह है कि भारत में उनकी काफी तारीफ हो रही है. हालांकि, जिस वक्त वे पाकिस्तान जा रहे थे उस समय काफी आलोचना भी की गई.


पाकिस्तान में एक बड़ा धरा है जो कट्टरपंथी संस्थाओं का समर्थक है. लेकिन पाकिस्तान की आम जनता वहां की सेना और कट्टरपंथी संस्थाओं का जो गेमप्लान है उसे समझ गई है. वो जानती है कि इनके पास किसी तरह का कोई समाधान नहीं है, बल्कि ये समस्याओं का हिस्सेदार हैं.


दूसरी बात ये है कि पाकिस्तान पहले ही इतना भुगत रहा है आतंकवाद और गरीबी से, आर्मी इतना भ्रष्ट इंस्टीट्यूशन है, पॉलिटिशियन जो फेल हो चुके हैं, ऐसे में ये जानते हैं कि भारत के साथ बेहतर संबंध होंगे तभी हम बेहतर तरीके से रह पाएँगे.


जावेद अख्तर को बयान को कट्टरपंथी तो बेहतर तरीके से नहीं लेगा. लेकिन वहां की आम जनता चाहती है कि आतंकवाद खत्म हो. यही वो जनता है कि वो इमरान खान का समर्थन कर रही है. हालांकि, वो जानती है कि इमरान खान बहुत ज्यादा डिलीवर नहीं कर सकते, लेकिन इमरान खान लगातार आर्मी के खिलाफ बोलते रहे हैं. इसलिए बड़ी संख्या में लोग उनका सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान में इतना ज्यादा आपसी मतभेद है, ऐसे में कहां तक कामयाबी मिल पाएगी, ये कहना मुश्किल है. 


साहित्यकार का बड़ा प्रभाव


साहित्यकार का जब बात उठाते हैं तो मुल्क में बड़ा असर होता है. जब ये बात उठाते है तो हर मुल्क में प्रभाव होता है. जावेद अख्तर को पाकिस्तान से लेकर भारत तक बड़ा नाम है. बॉलीवुड की वजह से बड़ी हैसियत है उनकी. अगर अच्छे संबंध होना तो जब तक सांस्कृतिक तौर पर आदान-प्रदान नहीं होगा तब तक अच्छे संबंध नहीं हो सकते हैं. अगली बार हो सकता है कि जावेद अख्तर का पाकिस्तान में विरोध हो. लेकिन उनसे डरने की जरूरत नहीं है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)