लेबनान के मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान ने कहा था कि, "ये दुनिया सिर्फ दौलत से चलती है, जिसमें इतनी ताकत है कि वो सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई मुल्कों को बर्बाद कर सकती है. इसलिये सत्ता की ताकत और दौलत का मिलन ही एक दिन दुनिया को बर्बादी के कगार पर ले जायेगा." हम नहीं जानते कि तकरीबन एक सदी पहले उन्होंने अपनी ये बात किस संदर्भ में कही थी लेकिन आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हो रही उथल-पुथल और अपने से छोटे मुल्क पर कब्ज़ा करने की होड़ को देखकर तो यही लगता है कि ख़लील जिब्रान ने सौ आने सच ही कहा था.
बात करते हैं उस झारखंड की जो आदिवासी बहुल राज्य तो है लेकिन सियासी रुप से आज वो कुछ सहमा हुआ-सा दिखाई दे रहा है. राजधानी रांची के आसमान पर इन दिनों सियासी बिजली गिराने वाले कुछ ऐसे ही घटाटोप बादल मंडरा रहे हैं, जिन्होंने कुछ महीने पहले ही मुंबई की जमीन पर अपना नजारा दिखाया था. सियासी बादलों के भीतर छुपी इस बिजली फटने के खतरे का अंदेशा होते ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पार्टी के सभी विधायकों को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शिफ्ट कर दिया लेकिन खुद रांची में रहते हुए ही ये तय किया कि दिल्ली की हवा से आये इन बादलों को आखिर किस तरह से वापस मोड़ा जाए.
जाहिर है कि इसके लिए उन्होंने बेहद मगजमारी की होगी,जिसके बाद उन्हें लगा होगा कि इस हालात से निपटने का इससे बेहतर कोई और उपाय हो ही नहीं हो सकता. सीएम सोरेन को ये अहसास हो चुका है कि उनकी गठबंधन वाली सरकार पर खतरे के घने बादल मंडरा रहे हैं, इसलिये उन्होंने इससे निपटने के लिए एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक खेलने का जोखिम उठाया है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इससे वे अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो जाएंगे? वह इसलिये कि उन्होंने जो फैसले लिए हैं, वे जनता से तो जुड़े हुए हैं लेकिन फिलहाल राज्य में आया सियासी संकट विधायकों से जुड़ा हुआ है, जिनका बहुमत ही तय करता है कि सरकार बचेगी या फिर कोई और नयी बनेगी.
इसलिये विश्लेषक मानते हैं कि जनता के लिए लोक-लुभावन घोषणाएं करने से ज्यादा अहम ये है कि सीएम सोरेन अपनी सरकार में शामिल गठबंधन दलों के विधायकों को कब तक अपने पाले में रख पाते हैं. रांची में गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में सबसे महत्वपूर्ण फैसला ये लिया गया है कि अब राज्य में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू होगी. दुमका में एक बेटी की आग की लपटों में हुई हत्या के आरोपों से घिरे सोरेन ने हालांकि ये दावा किया कि पुरानी पेंशन को लागू करना, झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा था. अब सवाल ये बनता है कि सरकार में आने के बाद ही उन्हें इसकी याद क्यों नहीं आई और अब अचानक उन्हें ऐसा कौन-सा इहलाम हुआ कि इसे लागू करना है?
हालांकि सीएम हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की इस बैठक में जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर कुल 24 प्रस्ताव को मजूरी दी है. इसमें ये भी फैसला किया गया कि 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस के दिन झारखंड विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाया जाएगा. कहा जा रहा है कि बिहार और दिल्ली की तर्ज़ पर ही उस दिन हेमंत सोरेन सरकार विश्वासमत भी ला सकती है. सीएम सोरेन जानते हैं कि लाभ के पद के मामले में उनकी विधायकी को अयोग्य घोषित किये जाने के बाद उनकी पार्टी जेएमएम में भगदड़ मच सकती थी और उनमें से कुछ किसी भी लालच में आकर पाला बदलने में देर नहीं लगाते. इसीलिये उन्होंने अपने विधायकों को रायपुर शिफ्ट करके अपनी सरकार बचाने की ये कवायद की.
याद दिला दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की अगुवाई वाली अल्पमत वाली सरकार को बचाने के लिए उस वक़्त भी जेएमएम के चार लोकसभा सांसदों ने ही रिश्वत लेकर कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया था. तब सीबीआई द्वारा दर्ज उस केस के एक अभियुक्त सीएम हेमंत सोरेन के तत्कालीन सांसद पिता शिबू सोरेन भी थे, जिन्हें जेल भी जाना पड़ा था. हालांकि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संसद के भीतर होने वाले लेनदेन की परिभाषा ही बदल दी और उसे रिश्वत लेने-देने वाले अपराध के दायरे से ही बाहर कर दिया था.
अब सवाल ये उठता है कि हेमंत सोरेन को अपने विधायकों पर अगर इतना ही भरोसा था,तो रायपुर क्यों भेजा गया और दूसरा ये भी कि ऐसी लोक-लुभावन घोषणाएं करने से क्या वे अपनी सरकार बचा लेंगे? इसलिये कि खरीददारों की मंडी में अपना बिकाऊ सामान बचा पाना, एक बड़ी चुनौती होता है और वही अब हेमंत सोरेन के सामने भी है!
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